- हिंदी ग़ज़ल के भी नायक थे दुष्यंत कुमार
“दुष्यंत की शायरी को मिथिलेश ने बहुत गंभीरता और बारीकी से देखा है” : नुसरत मेहंदी
भोपाल। “दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों पर यह आरोप सामान्य तौर पर लगाया जाता है कि उनकी ग़ज़लें छंद के अनुकूल नहीं हैं। उसका व्याकरण ठीक नहीं है। व्याकरण के आधार पर वह मुकम्मल नहीं हैं। लेकिन यह बात पूरी तरह गलत है। ये ग़ज़लें उर्दू ही नहीं बल्कि उर्दू व्याकरण पर भी खरी उतरती हैं। दुष्यन्त जी अरुज के जानकार थे।” ये बात अपनी पुस्तक ‘दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों का रचना विधान’ के लोकार्पण अवसर पर पुस्तक के लेखक मिथिलेश वामनकर ने कही। उन्होने छंद और व्याकरण के उदाहरण प्रस्तुत करते हुये ग़ज़लों के कुछ शेर गाकर भी सुनाये।
समारोह का आयोजन दुष्यन्त जयंती के अवसर पर दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय एवं शिवना प्रकाशन ने संग्रहालय के अंजय तिवारी सभागार मे किया।
अध्यक्षीय वक्तव्य मे डॉ नुसरत मेहदी ने कहा-“दुष्यंत की शायरी को मिथिलेश ने बहुत गंभीरता और बारीकी से देखा है। मिथिलेश ने इस किताब के जरिये ग़ज़ल के व्याकरण को आम लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया है।
पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त करते हुये डॉ आजम ने कहा कि यह दुष्यन्त कुमार को समझने के लिए एक ज़रूरी पुस्तक है। इस पुस्तक को मैं भोपाल के एक शायर द्वारा भोपाल के एक शायर पर कर्ज़ अदायगी के तौर पर देखता हूँ। उन्होने अन्य उर्दू शायरों के उद्धरण देते हुये दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों पर भी प्रकाश डाला।
विशेष अतिथि श्री पंकज सुबीर ने कहा कि लेखक को लोक की स्वीकृति ज़रूरी है। आलोचक कुछ भी कहे। दुष्यन्त को आलोचकों ने भले ही खारिज किया हो, लेकिन उन्हे लोक ने स्वीकार किया है। मिथिलेश जी ने इस स्वीकार को सरल रूप मे समझाने का प्रयास इस पुस्तक मे किया है।
आरंभ में संग्रहालय के निदेशक राजुरकर ने स्वागत वक्तव्य देते हुये आयोजन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। अध्यक्ष रामराव वामनकर ने आभार व्यक्त किया। संचालन युवा रचनाकार बलराम धाकड़ ने किया। समारोह मे दुष्यन्त संग्रहालय की स्मारिका ‘प्रणाम 2020’ का लोकार्पण भी किया गया।