साहित्य
ग़ज़ल

ग़ज़ल
- और भी तो थे यहां मुझको सताने के लिए।
जिंदगी में आ गया वो ये बताने के लिए।।
वो कभी छत पर मिले तो बात फिर आगे बढ़े।
ख्वाब में आता मुझे है बस सताने के लिए।।
पूछते हैं लोग मुझसे है कहां तेरा सनम।
मिल कभी बाजार में उनको बताने के लिए।।
शर्त पर जीना मुझे हरगिज नहीं मंजूर था।
मौत भी आई मुझे यूं तो मनाने के लिए।।
छोड़कर वो चल दिया किसको पता जाने कहां।
याद ही बस रह गई उसकी रुलाने के लिए।।
काट खाने दौड़ते हैं ये दरो-दीवार तो।
छोड़ जा तस्वीर अपनी दिल लगाने के लिए।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094