तुम्हारी महफिल में हम न होंगे
आज ही के दिन वर्ष 2011 को जगजीत सिंह इस दुनिया से विदा हो गए थे

ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह इस दुनिया से रुख्सत हो गए। आज ही के दिन 2011 की सुबह सवेरे इस खबर को सुनकर गजल प्रेमी स्तब्ध रह गए थे। जगजीत सिंह का गजल गाने का अंदाज जितना उम्दा था, उतना ही वह गजल के चयन में भी ख्याल रखते थे। यही कारण था कि सत्तर साल के जगजीत आखिरी सांस तक लोगों के दिलों में अपनी गजलों के जरिये जगह बनाए रहे।
जगजीत सिंह ने जब गजल गायिकी की दुनिया में कदम रखा था, उस समय मेहंदी हसन और गुलाम अली जैसे हरदिल अजीज गायकों की तूती बोलती थी। इन सब गजल गायकों के बीच वह खुद की पहचान बनाने में कामयाब रहे तो यह उनका हुनर ही था। वर्ष 1965 में जगजीत सिंह मायानगरी मुंबई में आए और फिर वहीं के होकर रह गए। जगजीत सिंह को जग-जीत बनाने में उनकी पत्नी चित्रा सिंह का भी हाथ रहा। जगजीत और चित्रा की गाई नज्म .. ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी.. मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी.. को भला कौन भुला सकता है। लोगों को यह नज्म इतनी पसंद आई कि कोई भी महफिल हो लोग उनसे इसे सुनाने की फरमाइश जरूर करते थे। यह नज्म भले ही सुदर्शन फाकिर ने लिखी, लेकिन यह जगजीत सिंह के नाम से ज्यादा मशहूर हुई।
बरसों पहले की वह शाम मुझे भी याद आ रही है जब जगजीत सिंह नई दिल्ली के फिक्की आडिटोरियम में अपने सुरों का जादू बिखेर रहे थे। गजलों की इस महफिल में उन्होंने अपनी गायिकी से ऐसा समां बांधा कि लोगों को समय का पता ही नहीं चला। इस दौरान गाई उनकी गजल मुहब्बत करने वाले कम न होंगे, तेरी महफिल में लेकिन हम न होंगे.. रह-रह कर याद आ रही है। मशहूर शायर हफीज होशियारपुरी की यह गजल तमाम गायकों ने गाई लेकिन जो दर्द जगजीत सिंह के सुरों में था, वह किसी और में नहीं महसूस हुआ। हिंदी फिल्मों में गाए उनके गीतों …होंठों से छू लो तुम मेरे गीत अमर कर दो बन जाओ मीत मेरे ये संगीत अमर कर दो.. और.. तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो, क्या गम है जिसको छिपा रही हो.. कौन भुला सकता है। जगजीत की चर्चित गजलों में .. वो चौधवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा.. ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना हो गर तो पहले आके मांग ले तेरी नजर मेरी नजर.. तुम ताजमहल में आ जाना.. उसके होंठों पे कुछ कांपता रह गया…शामिल हैं।
आखिर में अठारह वर्षीय बेटे की सड़क हादसे में मौत ने जगजीत सिंह और चित्रा सिंह दोनों को तोड़कर रख दिया था। चित्रा सिंह ने तो गाना ही बंद कर दिया जबकि जगजीत सिंह के सुरों में दर्द और उभर आया। सैफुद़दीन सैफ की गजलों को जो सुर जगजीत सिंह ने दिए शायद ही कोई और गजल गायक उसे दे पाता। सैफ की यह गजल ..राह आसान हो गई होगी, जान पहचान हो गई होगी। मरने वालों पे सैफ हैरत क्यों, मौत आसान हो गई होगी। इन शब्दों को जितनी आसानी से जगजीत सिंह सुरों में पिरो गए, उसे दुनिया बहुत देर तक याद रखेगी। मशहूर गजलकार फजल करीम फजली के दो शेर भी यहां मौजूं हैं…..आगाजे शबाबे शब है प्यारे, जाने का यह वक्त कब है प्यारे। आंखों का तो काम ही है रोना, यह गिरया-ए-बेसबब है प्यारे। और अंत में मौत अंतिम सत्य है और इस सत्य को मानना ही होगा। सुर सम्राट जगजीत सिंह तुम हमेशा याद आओगे। बहुत याद आओगे।
जगजीत सिंह की गाई और निदा फाजली की कही यह ग़ज़ल मुझे बेहद पसंद है। आप भी पढ़िए।
हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
सुब्ह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी
हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते
हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी
रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ
हर नए दिन नया इंतिज़ार आदमी
घर की दहलीज़ से गेहूँ के खेत तक
चलता फिरता कोई कारोबार आदमी
ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र-दर-सफ़र
आख़िरी साँस तक बे-क़रार आदमी
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094