साहित्य

धूप से होकर गुज़रती है

डा. शाहिदा की ग़ज़ल

धूप से होकर गुज़रती है।

ठंड में कितना सिहरती है।।

ज़िन्दगी देखो हमारी भी।
सीढ़ियाँ चढ़ती उतरती है।।

आँख पर कोई ग़ज़ल लिख दो।
गर्दिशों में ही छलकती हैं।।

याद सब बातें जवानी की।
ज़ेह्र में अब तो उभरती है।।

दर्द होता है बहुत दिल में।
फिर रूह क्योंकर तड़पती है।।

उम्र के इस दौर में देखो।
अब बुज़ुर्गी ही झलकती है।।

आख़री पड़ाव पर “शाहिद”।
रूप रंग अपना बदलती है।।

डॉ. शाहिदा

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