पुस्तक समीक्षासाहित्य

भाई को अब भाई से डर लगता है

ग़ज़ल संग्रह 'पतवार तुम्हारी यादें' की समीक्षा

ज़िन्दगी के चौराहे से पुकारती महावीर सिंह ‘ दिवाकर ‘ की ग़ज़लें


महावीर सिंह ‘दिवाकर’ हिंदी और उर्दू दोनों भावभूमि में ग़ज़ल कहते हैं और हिंदी ग़ज़ल व छंदों का चिर-परिचित नाम है। हालाँकि ख़ुद को ग़ज़ल का एक नवसाधक कहते हैं लेकिन ग़ज़ल में इनकी पकड़ विलक्षण है। प्रीत प्यार से सनी, आशा और निराशा के मध्य झूलती ‘पतवार तुम्हारी यादें’ में संग्रहित ग़ज़लें, युवा पीढ़ी के पाठकों को ख़ास तौर से आकर्षित करेंगी क्योंकि इन ग़ज़लों में प्रेम बहुत विमल, निर्मल रूप में प्रकट हुआ है। प्रेम की मर्यादित व सौम्य परिभाषाएँ गढ़तीं हुई ग़ज़लें, नई सदी की युवा पीढ़ी को ठिठक कर कुछ सोचने को अवश्य विवश करेंगी। भावों की गंभीरता के साथ-साथ कथ्य की सुंदरता, संप्रेषणीयता शेरों में देखते ही बनती है। नया कहन, सोच की गहराई, विचारों की ऊंचाई, मासूमियत के साथ विवेकशीलता और अन्वेषण आपकी ग़ज़लों की विशिष्टता है। परंपरा से हटकर नये रदीफ़, क़ाफ़ियों का प्रयोग, अलंकारों की उपस्थिति, बिंबो और रूपकों की छटा, मिट्टी की महक, आत्मीयता की अविरल धार इस संग्रह को बहुत ऊँचाई तक लेकर जाएँगे। ग़ज़ल विधा को सीखने वालों के लिए कुछ नियम, कुछ बिंदु भी इस संग्रह में समझाए गए हैं, जो सोने पे सुहागा कहा जा सकता है।

मेरी नज़र में ग़ज़ल रूपी दरिया के एक कुशल गोताखोर का नाम है महावीर सिंह ‘ दिवाकर ‘ । ग़ज़ल के शास्त्रीय पक्ष पर इनका ज़बरदस्त अधिकार है। इसके लिए ‘ दिवाकर ‘ ने कठिन साधना की है।

इस युवा शाइर का एक ग़ज़ल – संग्रह ‘ पदचाप तुम्हारी यादों की ‘ पूर्व में प्रकाशित होकर चर्चित और प्रशंसित हो चुका है और अब दूसरा ग़ज़ल – संग्रह ‘ पतवार तुम्हारी यादें ‘ प्रकाशन के लिए तैयार है ।

महावीर सिंह की शाइरी की खूबी यह है कि वह ज़िन्दगी के चौराहे के बीचोबीच खड़े होकर आमजन से संवाद करती है । उनकी पीड़ा और दर्द को सुनती है और अपनी वेदना उन्हें सुनाती है ।

महत्वपूर्ण बात यह भी है कि शाइर महावीर सिंह की ग़ज़ल समाज और सत्ता से सीधे – सीधे कई सवाल – जवाब करती है।

मसलन वह खुलेआम समाज के ठेकेदारों से पूछती है :

इक मूरत के छप्पन भोग परोसे जाना
सच कहना क्या भूखे का उपहास नहीं !

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सच को सूली पर टांगा है इस दुनिया ने
राम के हिस्से किस युग में वनवास नहीं ।

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सत्ता तो यही चाहती है कि उससे कोई सवाल न किया जाय । कोई हिसाब न मांगा जाय । बस , हाँ में हाँ मिलाई जाय ।

सियासत के इसी मूल चरित्र को बेपर्दा करते हुए शाइर ‘ दिवाकर ‘ अपनी एक ग़ज़ल में कहते हैं :

सवाल न पूछ , जवाब न मांग
गुनाह न देख , हिसाब न मांग

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निज़ाम कहे कि , अदीब न बोल
ज़ुबान न खोल , किताब न मांग

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सियासत के पिछलग्गू – झंडा बरदार केवल उसकी हाँ में हाँ मिलाने का काम करते हैं । वे केवल सत्ता के ‘ यस मेन ‘ होते हैं , जिन्हें चालू भाषा में ‘ चमचे ‘ कहा जाता है ।
ऐसे लोगों पर तंज़ कसते हुए महावीर सिंह लिखते हैं :

आँखों पर पट्टी , होंठो पर ताला रक्खेंगे ओ के

हम इतिहास हमारे युग का काला रक्खेंगे ओ के ।

मरणासन्न विधायक जी को चमचों ने आश्वस्त किया

हाथ में माइक और गले में माला रक्खेंगे ओ के ।

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सियासत के साथ – साथ समाज , परिवार और घर भी इस शाइर की नज़र में रहते हैं।

हम यह बराबर देखते आए हैं कि घरबार हमेशा गृहणी की देखरेख में चलता आया है ।

शाइर महावीर सिंह ‘ दिवाकर ‘
भी इस बात को सहज रूप से स्वीकार करते हैं। वे अपनी बिटिया रिमझिम को संबिधित करते हुए कहते हैं :

तू भी खर्चीली , मैं भी खर्चीला
उस पर वेतन कम

फिर भी अपने घर में बरक़त
रिमझिम तेरी मम्मी से।

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महावीर सिंह को अपने पिता से भी बेहद लगाव है । स्मृतिशेष पिता उनकी नज़र से एक पल के लिए भी ओझल नहीं होते । वे पिता की याद को लेकर कहते हैं :

बिखरे हैं अख़बार बगल में इक चश्मा गुमसुम
कितनी ख़बरें इस कतरन में तुमसे थी पापा

छाया है घनघोर अँधेरा मन में ‘ दिवाकर ‘ के
भोर नई हर एक किरन में
तुमसे थी पापा ।

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हम यह बराबर देखते आए हैं कि पहले परिवार में भाइयों के बीच आपस में जहाँ प्रेमभाव होता था वहाँ आजकल मनमुटाव और रंजिश के चलते अनजाना भय भाई – भाई के बीच बना रहने लगा है ।
आपसी लड़ाई – झगड़े , मार – पीट और मुकद्दमे बाज़ी के दृश्य आम हो गये हैं ।
शाइर ‘ दिवाकर ‘ लिखते हैं :

साथ खड़े थे भाई तो जग डरता था
भाई को अब भाई से डर लगता है ।

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दर्दो ग़म के अलावा शाइर महावीर सिंह ने रोमांटिक शाइरी भी ख़ूब लिखी है और बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में लिखी है :

कर में माला घूम रही है।
उर में बाला घूम रही है।

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बहरहाल । जहाँ तक ग़ज़ल की भाषा की बात है , शाइर ‘ दिवाकर ‘ ने बिना किसी भेदभाव के उर्दू – हिंदी के शब्दों का मिलाजुला रूप अपनाया है ।

इसलिए इनकी काव्यभाषा सहज और संप्रेषणीय हो गई है।

एक बात और ।
‘ दिवाकर ‘ जी की ग़ज़ल के अशआर व्यापक अहसास और गहरी संवेदना से सम्बद्ध होने की वजह से अवाम के दिल में सीधे उतर जाते हैं ।

इसलिए मुझे पूरा यक़ीन है कि अदब की दुनिया में महावीर सिंह ‘ दिवाकर ‘ की शाइरी अपना मुकाम हासिल करने में ज़रूर क़ामयाब होगी।

  1. साभारः डॉ. रमाकांत शर्मा, 9414410367

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