
ज्ञान का मूल
क्या आपने कभी सोचा कि दुनिया इक्कीसवीं में जहां खड़ी है, वहां तक पहुंची कैसे। हममें यह सब सोचने-विचारने की शक्ति कहां से आई। सृष्टि और ब्रह्मांड के बारे में हमने कैसे और कहां से ज्ञान अर्जित किया। इसका सीधा-सपाट जवाब है, अंक और अक्षर की बदौलत। लिपियों की बदौलत। सुविधा-संपन्न हो चुकी दुनिया में हम किसी भी भाषा की वर्णमाला को जरा भी अहमियत देना जरूरी नहीं समझते, जबकि यही वो बीज है, जो सृष्टि को व्यवस्थित ढंग से संचालित करने में सहायक बना। उदाहरण के लिए नज़र डालते हैं देवनागरी लिपि की वर्णमाला पर, जो अनेक भारतीय भाषाओं की मूल भी है।
देवनागरी के वर्णाक्षर
स्वर : अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ
अं अः
व्यंजन : क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
क्ष त्र
(ऋ श्र)
शब्द ब्रह्म
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मनुष्य पहले आज के जैसा नही था। लाखों साल के संघर्ष और तमाम बदलाओं के बाद वह वर्तमान स्वरूप में आया। पहले वह जानवरों के जैसे चलता-फिरता था, खाता-सोता और रहता था। धीरे-धीरे वह आग जलाना, मांस व कंद-मूल को भूनकर खाना, समूह में रहना, घर बनाना, खेती करना, मनोरंजन के लिए नृत्य व स्वांग करना आदि कार्य सीखते चला गया। लेकिन, भावों की अभिव्यक्ति अब भी वह इशारों में और उछल-कूदकर ही करता था यानी उसके पास शब्द नहीं थे। वक़्त बदला और बुद्धि के विकास के साथ उसकी ज़ुबान से स्वर फूटने लगे। यही स्वर कालांतर में अक्षर बने और अक्षर से अक्षर मिलकर शब्द। मानवता के लिए यह एक विराट उपलब्धि थी। शब्दों ने जीव-जगत में मनुष्य की श्रेष्ठता साबित कर दी थी। इसीलिए ‘शब्द’ को ‘ब्रह्म’ कहा गया है।
सच भी यही है, ईश्वर, भगवान, गॉड, अल्लाह, ख़ुदा जैसे संबोधन भी अक्षर की उत्पत्ति के बाद ही अस्तित्व में आए। जरा दिमाग पर जोर डालकर सोचिए, अक्षर के बिना क्या हम कभी ईश्वर की कल्पना भी कर सकते थे। आखिर यह ईश्वर, यह भगवान जैसे शब्द कहां से आए। क्या भाषा की उत्पत्ति से पहले यह शब्द मौजूद थे। इसका जवाब कोई भी समझदार व्यक्ति ‘हां’ में नहीं देना चाहेगा। वेद, पुराण, उपनिषद आदि लिखने के लिए भी तो भाषा लिपि की ही जरूरत पड़ी होगी। स्पष्ट है कि पहले भाषा लिपि अस्तित्व में आई और फिर ये धार्मिक ग्रंथ। यानी ईश्वर ईश्वर, भगवान भगवान, गॉड गॉड, अल्लाह अल्लाह इसलिए कहलाए, क्योंकि मनुष्य ने उन्हें ये संबोधन दिए। वास्तविकता यही है कि भाषा लिपि ही सृष्टि के विकास का आधार है। अगर अक्षर की उत्पत्ति नहीं हुई होती तो आज ईश्वर-धर्म, ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला आदि कुछ भी नहीं होते।
मानव की देन हैं लिपि
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लिपियां मानव की ही देन हैं, उन्हें ईश्वर या देवता ने नहीं बनाया। प्राचीन काल में किसी पुरातन और कुछ जटिल वस्तु को रहस्यमय बनाए रखने के लिए उस पर ईश्वर या किसी देवता की मुहर लगा दी जाती थी। लेकिन, वर्तमान में हम जानते हैं कि लेखन-कला किसी ‘ऊपर वाले’ की देन नहीं है, बल्कि वह मानव की ही बौद्धिक कृति है।
-दिनेश कुकरेती