उत्तराखंड
स्वस्थ समाज के लिए लड़के-लड़कियों में भेदभाव मिटाने पर जोर
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में 'जेंडर और समाजीकरणः हितधारकों की भूमिका और जिम्मेदारी' विषय पर चर्चा

- देहरादूनः पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में शुक्रवार को ‘जेंडर और समाजीकरणः हितधारकों की भूमिका और जिम्मेदारी’ विषय को लेकर मंथन किया गया। वक्ताओं का कहना था कि स्वस्थ समाज के लिए लड़के-लड़कियों में भेदभाव मिटाना होगा और इसकी शुरुआत हमें खुद अपने घर से करनी होगी।
शिक्षक और मोटिवेशनल स्पीकर रीना उनियाल तिवारी ने कहा कि लड़के-लड़कियों में भेदभाव न केवल स्कूल, बल्कि घर से ही शुरू हो जाता है। घर में बेटों को प्राथमिकता और स्कूलों में हर काम में शारीरिक दृष्टि से लड़कियों से भेदभाव करना गलत है। नाहिद प्रवीण ने कहा महिला के गर्भवती होते ही भेदभाव शुरू हो जाता है। बेटा ही होगा। या बेटा ही होना चाहिए जैसी मानसिकता लोगों में घर कर गई है। लड़कियों से खानपान में भी भेदभाव होता है। यही नहीं धर्म का खौफ भी महिलाओं में पैदा किया जाता है। धर्मगुरु खुद के तरीके से महिलाओं को चलने के लिए मजबूर करते हैं।
एडवोकेट चंद्रा ने महिला को लेकर कानूनी पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने जेंडर में स्त्री-पुरुष के अलावा ट्रांस जेंडर को भी शामिल किए जाने पर जोर दिया। जेंडर में विविधताओं को लेकर बात करनी चाहिए। थर्ड जेंडर का भी सम्मान होना चाहिए। भारतीय संविधान में स्त्री-पुरुष समान है, लेकिन समाज और परिवार में ऐसा नहीं है। कानून भी धर्म के अनुसार चलता है। तीन तलाक कानून के अनुसार जुर्म है, लेकिन यदि महिला अपने मायके चले जाए और एक-एक माह के अंतराल में यदि पति उसे तलाक का नोटिस भेजे तो उसे अदालत भी मना नहीं कर सकती। इस तरह तीन तलाक कानून का भी कोई मतलब नहीं रह जाता। अंकिता हत्याकांड की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए लीगल सैल होना चाहिए, लेकिन यह नहीं है। होटल मालिकों को तो ऐसी व्यवस्था के बारे में ही नहीं पता। अंकिता जिस रिसोर्ट में काम कर रही थी, यदि वहां लीगल सैल होता, तो वह शिकायत कर सकती थी, जिससे उसकी जान बच सकती थी।
- पत्रकार माधुरी दानू ने पत्रकारिता के क्षेत्र में लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को लेकर चर्चा की। कहा कि उन्हें प्रिंट मीडिया में कार्य के दौरान पुरुषवादी मानसिकता से जूझना पड़ा।
- कार्यक्रम आयोजक दीपा कौशलम ने कहा कि लड़के-लड़कियों में भेदभाव को रोकने की शुरुआत हमें खुद करनी होगी। कानून बनने से पहले ही उसका तोड़ निकाल लिया जाता है, जो भेदभाव का सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने बाल विवाह रोकने के दावों को हवाई बताते हुए कहा कि उत्तराखंड में ही 54858 बाल विवाह हुए हैं, जो सरकार के दावों को झुठलाने के लिए काफी है।
- इस मौके पर डीएवी पीजी कालेज के प्रवक्ता राजेश पाल, बीना बेंजवाल, चंद्रशेखर तिवारी, दर्द गढ़वाली आदि मौजूद थे।संचालन सामाजिक कार्यकर्ता जीत बहादुर बुरांस ने किया जबकि निकोलस ने आभार व्यक्त किया।