पुस्तक समीक्षासाहित्य

हिंदी ग़ज़ल के प्रश्न-प्रति प्रश्न: कमलेश भट्ट कमल

कमलेश भट्ट की पुस्तक की समीक्षा

  • हाल ही में कमलेश भट्ट कमल जी की पुस्तक ‘हिंदी ग़ज़ल के प्रश्न-प्रतिप्रश्न’ प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक से पूर्व विभिन्न विधाओं में उनकी 23 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें हिंदी ग़ज़ल के 6 संग्रहों के साथ हिंदी ग़ज़ल पर एक सैद्धांतिक पुस्तक भी शामिल है। कमलेश हिंदी ग़ज़ल की पहचान और उसकी आलोचना को लेकर बहुत गंभीर रचनाकार हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में हिंदी भाषा में लिखी गई गज़लों के इतिहास को भी व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया गया है जो श्रमसाध्य और ज़िम्मेदारी का काम है। बेशक दुष्यंत कुमार हिंदी ग़ज़ल के बेंचमार्क हैं लेकिन उसके एतिहासिक संदर्भ को समझना जरूरी है।ग़ज़ल के समकालीन रचनाकारों के लेखन पर समीक्षात्मक और आलोचनात्मक दृष्टिकोण से हो रहे काम पर अपनी स्पष्ट राय रखी है। वे इस तथ्य को ज़ोर देकर कहते हैं कि हिंदी ग़ज़ल न उर्दू ग़ज़ल की प्रतिद्वंदिता में है न उसके पीछे पीछे चल रही है। हिंदी भाषा में लिखी गई अब तक की ग़ज़लों के साहित्यिक मूल्यांकन की दिशा में यह एक गंभीर और निष्पक्ष प्रयास है।
वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि ग़ज़ल किसी भाषा में लिखी जाए, ग़ज़ल के व्याकरण, शिल्प और कहन के साथ छेड़छाड़ करके ग़ज़ल विधा के साथ न तो न्याय किया जा सकता है न हिंदी ग़ज़ल को लोकमानस तक पहुंचाया जा सकता है। वे हिंदी भाषा में लिखी जा रही ग़ज़लों के समकालीन परिवेश की पड़ताल बड़े निष्पक्ष रूप से करते हैं। वे इस बात को समझ रहे हैं, समकालीन गजल के समर्थ रचनाकारों पर ग़ज़ल के कथ्य के साथ उसके कलात्मक मूल्यों के संदर्भ में बात हो। गजल विधा के शिल्प और व्याकरण से आनभिज्ञ लोग नई कविता के मानकों और केवल कथ्य को केंद्र में रखकर जो बात कर रहे हैं, वह एक भ्रम की स्थिति बनाती है। यह एक बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसे उन रचनाकारों को अवश्य पढ़ना चाहिए जो ग़ज़ल विधा के प्रशंसक है। इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए में कमलेश जी को बधाई देता हू। 326 पृष्ठ की इस पुस्तक को ‘श्वेतवर्णा प्रकाशन’ नईदिल्ली, ने प्रकाशित किया है। बैक कवर के फोटो पर प्रकाशक का पूरा पता है।

अशोक रावत

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