
- शायर मलिकज़ादा जावेद जितने प्यारे शायर हैं उतने ही प्यारे इन्सान भी हैं। उर्दू- अदब की अज़हद अज़ीमतरीन शख़्सियत डाॅ• मलिकज़ादा मन्ज़ूर साहब के फ़र्ज़न्दे-गिरामी जावेद भाई एक बेहद ख़ुशमिज़ाज, नेक सीरत और ‘यारों के यार’ टाइप आदमी हैं। हमेशा हर एक के दुख-सुख में बराबर के शरीक पाये जाते हैं।
- जावेद भाई कितने हरदिल अज़ीज़, कितने प्यारे इन्सान हैं यह राज़ बस इक ख़ुद जावेद भाई के इलावा सारी दुनिया जानती है। हज़रत पिछले काफ़ी अर्से से हर इतवार के रोज़ अदबी शख़्सियात पर आधारित एक बेहद मेआरशुद आनलाइन शो “मलिकज़ादा जावेद शो” कर रहे हैं जोकि इन दिनों बहुत चर्चित कार्यक्रम है।
हाँ तो मैं बात कर रहा था जावेद भाई की मासूम मस्तमौला तबीयत और उनके इस शे’र की। एक बार–
चन्दौसी शहर में मुशायरा था। यह मुशायरा शहरे-चन्दौसी से तअल्लुक़ रखने वाले अज़ीमुश्शान शाइर मोहतरम जनाब सर्वेश चन्दौसवी मरहूम की याद में उनके शागिर्दों ने मुनक़्क़िद किया था। मुशायरा अपनी ऊँचाईयों पर पहुँच चुका था। तभी, नाज़िमे-मुशायरा जोकि दौरे-हाज़िर में मुल्क के बेहद नाम-निहाद शायर और बहुत ही शानदार नाज़िमे-मुशायरा तस्लीम किये जाते हैं, ने हमारे जावेद भाई को बड़ी पुर-सताइश तम्हीद और बेहद ऐहतराम के साथ माइक पर कलाम पढ़ने के लिए आमन्त्रित किया।
जावेद भाई ख़रामा-ख़रामा चलते हुए माइक पर तशरीफ़ लाए और अपनी ग़ज़ल का आग़ाज़ फ़र्माया। ख़ूबसूरतो-मुरस्सा ग़ज़ल का हर शे’र सामईन से बेहिसाब दाद वसूल कर रहा था। तभी जावेद भाई ने ग़ज़ल के चौथे शे’र का मिसरा ऊला पढ़ा —
“अपने बच्चों पे क्यूँ करूँ ग़ुस्सा”
कि तभी,नाज़िमे-मुशायरा
ऊला मिसरे पर ही झूम कर दाद दे उठे–“वाहहहहह,क्या कहने हैं जावेद भाई !” जावेद भाई ने बेहद ख़ुश होकर अत्यन्त लाड़ भरी नज़रों से अपने बहुत ही प्यारे दोस्त और उस दिन के नाज़िमे-मुशायरा की जानिब देखते हुए पब्लिक से कहा– “हज़रात ! डाॅ• साहब की और हमारी दोस्ती बहुत पुरानी है। वो हमारे इतने प्यारे और इतने गहरे दोस्त हैं कि हम आप लोगों को बता नहीं सकते ” और ये कहने के फ़ौरन साथ ही, बग़ैर कोई कोमा- फुलस्टाॅप लगाए शे’र का मिसरा सानी इर्शाद फ़र्मा दिया–
“हर कमी उनमें ख़ानदानी है”
जावेद भाई का नाज़िमे-मुशायरा की ओर देख कर सानी पढ़ना ग़ज़ब ही ढा गया। अन्जाने ही उनका सानी मिसरा नाज़िमे-मुशायरा को सहला गया। जावेद भाई के सानी मिसरे की टाइमिंग ने हाॅल में हँसी का मानो तूफ़ान ही बर्पा कर दिया। स्टेज से लेकर सामईन तक हर शख़्स पेट पकड़ कर हँसे ही जा रहा था।
और क़ुर्बान जावेद भाई की मिसाली मासूमियत पर कि अगर आप हज़रात में से कोई उन्हें अब भी न बताए तो उन्हें आज भी नहीं पता कि उस रोज़ उनके इस ख़ासे संजीदा शे’र पर महफ़िल बेतरह ठहाकों में क्यूँ डूब गयी थी !!
साभार मंगल नसीम