संवेदनाओं के दलदल में अनसुलझे रिश्ते
Raymon के कहानी संग्रह 6.45 pm की समीक्षा

- कथाकार अमरीक सिंह दीप द्वारा पंजाबी से हिंदी में अनुदित व 6.45 pm की युवा लेखिका raymon के कहानी संग्रह को पढ़ने का मौका मिला।
अमूमन अनूदित रचनाओं में शब्दों व भावों की छानबीन खूब होती है, लेकिन अनुवादक/ कथाकार अमरीक जी ने इस संग्रह को नितांत दुर्बोध क्लिष्टता से बचाए रखा, ये स्वागत योग्य है।
Raymon के इस कहानी संग्रह में कुल जमा चौदह कहानियाँ हैं,जो फेमिनिज्म की बात करती हैं। स्त्री अस्मिता को केंद्र में रखकर यह तमाम कहानियाँ आज अपनी जगह बनाती हैं। स्त्री पुरुष के सापेक्ष है। एक चेतना, एक आकर्षण है ,तथापि पुरुष उसे उपयोगितावाद के धरातल पर ला खड़ा कर देता है। यही विडंबना इस कृति का प्रयोजन है। लेखिका को पुरुष का अहं उद्वेलित करता है, जो नारी के लिए कहीं भी समानांतर दृष्टिकोण नहीं रखता। लेखिका कुछ इसी तरह के यथार्थ खिंचती हैं।
चौधरी साहब का हवेली का गर्व ,गर्त में मिल जाता है। यहाँ ‘आग’ शब्द अपने अर्थपूर्ण संवाद के साथ उपस्थित है। लेखिका ने नारी के दैहिक और मानसिक स्थितियों को बखूबी कहानी में उकेरा है।
संवेदनाओं के दलदल में अनेक रिश्ते अनसुलझे रह जाते हैं बस ‘बात एक नुक्ते पर खत्म होती है’ …ये यौन-मनोविज्ञान है। यह रोजमर्रा की जिंदगी में हादसे हैं।
Raymon स्त्री और पुरुष के बीच का मध्यांतर अपनी ही शैली में ,बखूबी गढ़ती हैं। ये संधि है। कुल जमा 6:45 p.m कहानी संग्रह की कहानियाँ जीवन का अर्ध- सत्य सामने रखती हैं, जिसे स्त्री पुरुष दोनों आधा-आधा जीते हैं। ये कहानी संग्रह काव्यांश प्रकाशन ऋषिकेश से प्रकाशित है, जिसे पढ़ा जाना चाहिये।
(सुरेंद्र जी की कलम से )