गजब! आप चुप रहो…बस घाम तापो
- उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार को लेकर उजागर हो रहे नए गड़बड़झाले, साहित्यकार गुणानंद पथिक की कृति को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने वालों को किया जा रहा पुरस्कृत

देहरादून: उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से हाल ही में वितरित साहित्य गौरव पुरस्कार को लेकर नित नए गड़बड़झाले उजागर हो रहे हैं। एक सज्जन ने तो पुरस्कार ही अपने गुरु की कृति को तोड़-मरोड़ कर उड़ा लिया। कहा जा रहा है कि इन सज्जन का साहित्य में दीर्घकालीन योगदान रहा है, इसलिए इस श्रेणी में पुरस्कार दिया जा रहा है। एक सज्जन को उस विधा में पुरस्कार दे दिया गया, जिसमें उनका काम ही नहीं था। लेकिन आप चुप रहो, बस घाम तापो।
उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कारों को लेकर भेदभाव का यह दर्द धीरे-धीरे छलक रहा है। अंतरराष्ट्रीय शायर और रुड़की निवासी अफजल मंगलौरी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वह सीधे सवाल उठाते हैं कि सोशल मीडिया के इस दौर में किसी भी साहित्यकार का काम छिप नहीं सकता। पुरस्कार के लिए पारदर्शी व्यवस्था बहुत ज़रूरी है। पुरस्कार देते समय उसके काम के साथ-साथ लोकप्रियता का पैमाना भी एक मापदंड होना चाहिए। कुमाऊंनी साहित्यकार रत्न सिंह किरमोलिया तो आवेदन की व्यवस्था पर ही सवाल उठाते हैं। उनका मानना है कि आवेदन मांगने की जगह एक कमेटी ऐसी बनाई जानी चाहिए, जो उस साहित्यकार के काम का समग्र मूल्यांकन कर सके और उस हिसाब से पुरस्कार दिए जाएं, ताकि पुरस्कार की गरिमा बची रहे और सम्मानित होने वाले व्यक्ति पर भी सवाल न उठे। संस्कृति विभाग के ए ग्रेड आर्टिस्ट चंद्र सुयाल अपने गुरु गुणानंद पथिक का जिक्र करते हुए कहते हैं कि उनका गढ़वाली साहित्य में अमूल्य योगदान रहा। उन्होंने गढ़वाली रामलीला को एक अनूठी पहचान दी। टिहरी में राजशाही के खिलाफ आंदोलन में खुद गुणानंद पथिक और उनके गीतों की अहम भूमिका रही, लेकिन उनके योगदान को भुला दिया जा रहा है। उनकी कृतियों को तोड़-मरोड़ लोग पुरस्कार झटक ले रहे हैं।
बकौल साहित्यकार हेमचंद्र सकलानी पुरस्कार का मतलब अब जुगाड़बाजी हो गया है। कहानीकार कुसुम भट्ट भी बेहद नाराज़ हैं। वह भी चयन कमेटी की निष्पक्षता पर सवाल उठाती हैं। साहित्यकार तारा पाठक का कहना है कि वह इतनी दूर से भाषा संस्थान के कार्यक्रम में आई, लेकिन व्यवस्था से खिन्न हो गई। भाषा संस्थान ने कुछ ‘बड़के’ साहित्यकारों की पुस्तक का विमोचन तो भाषा संस्थान के बैनरतले राज्यपाल महोदय से करा दिया, लेकिन हमारे समय पर्दा ही गिरा दिया, ऐसे में कैसे पता चले कि पुस्तक का लोकार्पण कहां हुआ।