बुजुर्ग साहित्यकारों की अनदेखी पर सवाल
- साहित्य गौरव पुरस्कार की चयन प्रक्रिया को लेकर साहित्यकारों में आक्रोश, भाषा विभाग के सचिव के पास दर्ज कराएंगे आपत्ति

देहरादून: उत्तराखंड में पिछले दिनों घोषित साहित्य गौरव सम्मान की चयन प्रक्रिया को लेकर साहित्यकारों का आक्रोश कम नहीं हो रहा है। भाषा संस्थान से आरटीआई के तहत जहां पुरस्कार चयन समिति से जुड़े सदस्यों के उत्तराखंड कनेक्शन की जानकारी मांगी जा रही है, वहीं कुछ पुरस्कारों में घालमेल को लेकर सीधे आपत्ति जताई जा रही है। कुछ साहित्यकार यह भी सवाल उठा रहे हैं कि पचास साल से ज्यादा समय से साहित्य सृजन में लगे बुजुर्ग साहित्यकारों की अनदेखी क्यों की जा रही है। युवा शायर बादल बाजपुरी ने भी काव्य विधा में ग़ज़लकारों की अनदेखी को लेकर नाराजगी जताई है। कुछ साहित्यकारों ने सचिव भाषा से मिलकर पूरे मामले में आपत्ति दर्ज कराने का फैसला भी किया है।
उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से पिछले दिनों उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार दिए गए थे। इनमें कुछ पुरस्कारों पर साहित्यकारों ने सवाल उठाए हैं। कुछ साहित्यकारों ने जहां पिता-पुत्र के चयन को लेकर चयन समिति पर सवाल खड़े किए हैं, वहीं पुस्तक अनुदान के मानकों में शिथिलता पर भी आपत्ति जताई है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि आखिर पुस्तक अनुदान के लिए वार्षिक आय सीमा 15 लाख क्यों की गई। भाषा संस्थान को यह सुझाव देने वाले कौन लोग थे। अनुदान की पात्रता की आय सीमा को पांच लाख से सीधे 15 लाख रुपए वार्षिक करने की क्या जरूरत थी। जिसकी आमदनी 15 लाख रुपए सालाना है, क्या वह बिना अनुदान के अपनी किताब नहीं छपवा सकता। जाहिर है कि कुछ लोगों ने मनमाना अनुदान हासिल करने के लिए पात्रता आय सीमा बढ़वाई है।
देश-विदेश में अपनी ग़ज़लों से पहचान बनाने वाले युवा शायर बादल बाजपुरी भी भाषा संस्थान की अनदेखी से ख़फ़ा हैं। उनका कहना है कि भाषा संस्थान ने काव्य विधा के लिए दो पुरस्कार रखे हैं, लेकिन इनमें से कभी भी किसी हिंदी ग़ज़लकार को पुरस्कार नहीं दिया। बकौल बादल, उनके साथ उत्तराखंड में ही कई ऐसे युवा शायर हैं, जो देवनागरी लिपि में ग़ज़लें कह रहे हैं। यदि भाषा संस्थान का मकसद युवा साहित्यकारों को बढ़ावा देना है, तो हिंदी ग़ज़लकारों से परहेज़ क्यों? क्यों अब तक एक भी हिंदी ग़ज़ल संग्रह को पुरस्कार के लिए नहीं चुना गया। ऐसे में पुरस्कार प्रक्रिया में निष्पक्ष चयन को लेकर सवाल उठने स्वाभाविक हैं।