साहित्य शून्यता के दौर में जी रहे हैं हम: जगूड़ी
- दिवंगत साहित्यकार डॉ. राजनारायण राय पर लिखी पुस्तक 'महार्घ्य' का हुआ लोकार्पण, दून लाइब्रेरी में 'महार्घ्य' के बहाने मौजूदा साहित्य की स्थिति पर जताई गई चिंता, भाषा संस्थान की भूमिका पर भी खड़े किए सवाल

देहरादून: प्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद् स्व. डॉ. राज नारायण राय के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखी पुस्तक ‘महार्घ्य’ के बहाने मौजूदा दौर में साहित्य की स्थिति पर चिंता जताई गई। मौका था सोमवार को नवाभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था के बैनर तले दून लाइब्रेरी में साहित्यकार डॉ. किरनपाल सिंह की ओर से संपादित पुस्तक ‘महार्घ्य’ के लोकार्पण का। वक्ताओं ने दिवंगत साहित्यकारों की स्मृति को बनाए रखने में जहां भाषा संस्थान की भूमिका को अहम बताया, वहीं कहा कि यह संस्थान का दायित्व है, लेकिन वह इसमें सफल नहीं रहा है।
इस मौके पर मुख्य अतिथि और प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने साहित्य की बदलती तस्वीर पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मौजूदा दौर साहित्य शून्यता का दौर है। धर्मयुग, हिंदुस्तान और दिनमान जैसी पत्रिकाएं बंद हो गई हैं। अखबारों में साहित्य की उपस्थिति नाममात्र की है। यह स्थिति साहित्य के उन्नयन के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने दिवंगत साहित्यकार डॉ. राजनारायण राय की स्मृति में ‘महार्घ्य’ पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए जहां उनकी पत्नी शांति राय और उनके परिवार के प्रयासों को सराहा, वहीं पुस्तक के संपादक डॉ. किरनपाल सिंह को साधुवाद दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि दिवंगत साहित्यकारों की स्मृति को चिरस्थाई बनाए रखने का काम भाषा संस्थान का है, लेकिन वह अपनी भूमिका भूल गया है।
इससे पहले, वरिष्ठ गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि डॉ. राय इस मामले में भाग्यशाली हैं कि उनके परिवार ने उनकी स्मृति में पुस्तक प्रकाशित कराने का बीड़ा उठाया। अन्यथा साहित्यकारों की स्थिति तो यह है कि उनके बच्चे ही उन पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने कहा कि यह लोकार्पण का मौका है, इसलिए डॉ. राय पर लिखी पुस्तक ‘महार्घ्य’ पर टिप्पणी नहीं की जा सकती, लेकिन यह कहा जा सकता है कि डॉ. राय का रचना संसार उत्कृष्ट कोटि का है।
वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ. विद्या सिंह ने डॉ. राय की रचनाओं पर चर्चा करते हुए उन्हें सरल और सहज व्यक्तित्व का धनी बताया। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य लिखना आसान नहीं है, क्योंकि इसके लिए बच्चे के लेवल पर जाना पड़ता है, लेकिन डॉ. राय ने यह कर दिखाया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. मुनिराम सकलानी ने कहा कि डॉ. राजनारायण राय का हिंदी साहित्य के प्रति बेहद लगाव था, जिसके चलते उन्होंने नवाभिव्यक्ति साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच का गठन किया। इस संस्था ने नवोदित कवियों को भी मंच प्रदान किया।
इस मौके पर पुस्तक के संपादक डॉ. किरनपाल सिंह ने कहा कि ‘महार्घ्य’ के बहाने उन्हें भी गुरु डॉ. राजनारायण राय के ऋण से उऋण होने का सौभाग्य मिला। वरिष्ठ कवि शिवमोहन सिंह ने कार्यक्रम का प्रभावी संचालन किया, जबकि कार्यक्रम का शुभारंभ शोभा पराशर की सरस्वती वंदना से हुआ। इस मौके पर डॉ. राय की पत्नी शांति राय, उनके पुत्र अमित राय, नीरज राय, पुत्र वधु शालिनी राय के अलावा प्रसिद्ध चित्रकार ज्ञानेंद्र कुमार, जनकवि डॉ. अतुल शर्मा, महेंद्र प्रकाशी, डॉली डबराल, बसंती मठपाल, अंबर खरबंदा, सत्यप्रकाश शर्मा सत्य, हर्षमणि भट्ट, राजेश डोभाल, सोमेश्वर पांडे, कविता बिष्ट, राकेश बहुगुणा, भारती पांडे, बीना बेंजवाल, डॉ. राकेश डंगवाल, जगदीश बाबला, भारती मिश्रा, दर्द गढ़वाली आदि मौजूद थे।
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व्यापक था डॉ. राय का रचना संसार
बिहार के गांव दोदीपुर में साधारण किसान परिवार में जन्मे डॉ. राजनारायण राय का रचना संसार व्यापक था। देहरादून के साहित्यिक मित्रों में वह राय साहब के नाम से जाने जाते थे। बकौल बुद्धिनाथ मिश्र डॉ. राय ने साहित्यिक, ऐतिहासिक और पौराणिक जैसे विषयों पर बहुत अध्ययन किया, जिसके प्रमाण उनके शताधिक लेख हैं। वैष्णव साहित्य के गूढ़ विषय ‘रास’ पर उनका ऐसा अधिपत्य है कि नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित विश्वकोश में उनका ही शोध निबंध ‘रासलीला’ प्रकाशित है।