गजब: सूचना के लिए आवेदक से मांगे 55 हजार रुपए
- राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने सूचना देने में बाधा उत्पन्न करने पर लोक सूचना अधिकारी आनंद एडी शुक्ल पर लगाया 25 हजार जुर्माना, तल्ली हल्द्वानी निवासी राजेंद्र सिंह ने 13 बिंदुओं पर मांगी थी सूचना, पत्रावली का अवलोकन कराने के बजाय सूचना को 27,650 पेज बताते हुए शुल्क जमा कराने को भेज दिया पत्र

– लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
देहरादून: लोक सूचना अधिकारी आरटीआई के तहत सूचना दिए जाने में किस तरह बाधा खड़ी कर रहे हैं, इसका अंदाजा राज्य सूचना आयोग में निस्तारित एक अपील से लगाया जा सकता है। मामले में लोक सूचना अधिकारी ने आवेदक को न केवल समय पर सूचना नहीं दी, बल्कि तमाम प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए सूचना को 27,650 पृष्ठों की बताते हुए शुल्क जमा कराने को कहा। इस हिसाब से यह शुल्क 55 हजार 300 रुपए बनता है, जो आवेदक के लिए संभव न था। नियमानुसार लोक सूचना अधिकारी को शुल्क की मांग न करते हुए आवेदक को कार्यालय में संबंधित सूचना के अवलोकन के लिए बुलाया जाना चाहिए था, जो उसने नहीं किया। बुधवार को इस मामले का निस्तारण करते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने परियोजना निदेशक स्तर के आरोपित लोक सूचना अधिकारी आनंद एडी शुक्ल की लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए न केवल उन पर 25 हजार रुपए जुर्माना किया है, बल्कि उन्हें भविष्य में इस तरह की लापरवाही न बरतने की चेतावनी भी दी गई।

दरअसल, तल्ली हल्द्वानी (जनपद नैनीताल) स्थित फ्रेंड्स कॉलोनी निवासी राजेंद्र सिंह ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत अयोध्या प्रसाद लोक सूचना अधिकारी/अपर जिला सहकारी अधिकारी, सहकारी समितियां, उत्तराखंड, देहरादून से 28 फरवरी 2024 को पत्र प्रेषित कर 13 बिंदुओं पर सूचना मांगी। यह आवेदन दो मार्च 2024 को मिला। सभी सूचनाएं राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना, राजपुर रोड, देहरादून के परियोजना निदेशक से संबंधित थी। इस पर करीब 14 दिन बाद 16 मार्च 2024 को यह आवेदन राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना, देहरादून के परियोजना निदेशक/ लोक सूचना अधिकारी, आनंद एडी शुक्ल को भेज दिया गया।
लोक सूचना अधिकारी आनंद एडी शुक्ल ने पांच अप्रैल 2024 को आवेदक को पृष्ठों की संख्या बताते हुए सूचना के लिए इतना शुल्क बता दिया कि आवेदक असमर्थ हो गया। आवेदक को बताया गया कि बिंदु संख्या एक से संबंधित पत्रावली 850 पेज, बिंदु संख्या 03, 05, 06, 07, 08, 09 और 10 से संबंधित पत्रावली में लगभग 23000 पेज हैं। बिंदु संख्या चार से संबंधित पत्रावली 800 पेज और बिंदु संख्या 11, 12 एवं 13 से संबंधित पत्रावली में करीब तीन हजार पेज हैं। इस हिसाब से यह पेज 27650 होते हैं, जबकि इसके लिए दो रुपए के हिसाब से 55,300 रुपए जमा कराने होंगे। प्रत्युत्तरदाता के मुताबिक आवेदक को 05 अप्रैल 2024 को नियमानुसार वांछित पत्रावली को चिन्हिकरण के लिए बुलाया गया, लेकिन वह नहीं आए। इधर, आवेदक राजेंद्र सिंह ने सूचना न मिलने पर प्रथम अपील दायर कर दी। आवेदक को प्रथम अपील की सुनवाई के लिए 10 जून 2024 को नोटिस जारी करते हुए 18 जून 2024 को कार्यालय निबंधक, सहकारी समितियां, उत्तराखंड, मियांवाला, देहरादून में उपस्थित होने को कहा गया, जबकि हैरत की बात यह है कि अपील की सुनवाई से पहले ही 06 जून 2024 को सूचनाएं प्रेषित कर दी गई, जबकि प्रथम अपील का निस्तारण 26 जून 2024 को किया गया।
तमाम किंतु-परंतु के बाद मामला राज्य सूचना आयोग तक पहुंचा। आयोग ने 13 फरवरी 2025 को द्वितीय अपील की सुनवाई शुरू की। नोटिस पर लोक सूचना अधिकारी आनंद एडी शुक्ल ने आयोग में अपनी सफाई दी, लेकिन अपीलकर्ता ने भी 17 मार्च 2025 के पत्र के माध्यम से कहा कि उससे जानबूझकर अतिरिक्त शुल्क की मांग की गई, ताकि वह इतना ज्यादा शुल्क जमा न कर सके। आयोग में सुनवाई के दौरान अयोध्या प्रसाद लोक सूचना अधिकारी/अपर जिला सहकारी अधिकारी, सहकारी समितियां, उत्तराखंड, देहरादून ने भी सफाई दी। बुधवार को राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने तमाम साक्ष्यों को लेकर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि लोक सूचना अधिकारी शुक्ल के स्तर से लापरवाही हुई है और जानबूझकर प्रश्नगत प्रकरण में सूचना देने में बाधा उत्पन्न की गई है, जिस पर उन्हें 25 हजार रुपए जुर्माना किया जाता है। साथ ही इस तरह के मामले में लापरवाही न बरतने को चेतावनी भी दी गई। हालांकि अयोध्या प्रसाद लोक सूचना अधिकारी/अपर जिला सहकारी अधिकारी, सहकारी समितियां, उत्तराखंड, देहरादून को चेतावनी देते हुए उनके खिलाफ जारी नोटिस को वापस ले लिया गया।
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प्राथमिकी दर्ज करने का नहीं दिया आदेश
देहरादून: तल्ली हल्द्वानी (जनपद नैनीताल) स्थित फ्रेंड्स कॉलोनी निवासी राजेंद्र सिंह ने सूचना आयोग में अपील दाखिल करते हुए राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना, देहरादून के परियोजना निदेशक आनंद एडी शुक्ल पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की, लेकिन सूचना आयुक्त ने इसे यह कहकर खारिज कर दिया कि यह सूचना अधिकार अधिनियम के तहत ग्राह्य नहीं है।