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विदेशी भाषा नहीं है उर्दू : सुप्रीम कोर्ट 

 मध्यप्रदेश सरकार और म.प्र. उर्दू अकादमी को भी ग़ौर से पढ़ लेना चाहिए सुप्रीम कोर्ट का ये अहम फ़ैसला क्योंकि अब इसी आधार पर हम करेंगे इन दोनों से सवाल, उर्दू भारत की समग्र सांस्कृतिक प्रकृति का सबसे अच्छा नमूना है, भाषा किसी धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करती:सुप्रीम कोर्ट-
उर्दू को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय महाराष्ट्र के अकोला जिले में पातुर स्थित नगर परिषद के नए भवन के साइनबोर्ड पर उर्दू के प्रयोग के खिलाफ दायर अपील पर आधारित था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मानना *“वास्तविकता से बहुत दूर जाना” है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है और उर्दू मुसलमानों की । भाषा सिर्फ़ संचार का एक ज़रिया है और यह किसी धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करती।*

इंदौर: भाषा धर्म नहीं है। भाषा धर्म का प्रतिनिधित्व भी नहीं करती। भाषा किसी समुदाय, क्षेत्र, लोगों की होती है; किसी धर्म की नहीं। भाषा संस्कृति है। भाषा किसी समुदाय और उसके लोगों की सभ्यता की प्रगति को मापने का पैमाना है। यही बात उर्दू के मामले में भी लागू होती है, जो गंगा-जमुनी तहजीब का बेहतरीन नमूना है, या हिंदुस्तानी तहजीब, जो उत्तर और मध्य भारत के मैदानी इलाकों की मिश्रित सांस्कृतिक प्रकृति है,” जस्टिस सुधांशु धूलिया और विनोद चंद्रन की बेंच ने अपने फैसले में कहा।
यह निर्णय महाराष्ट्र के अकोला जिले में पातुर नगर परिषद की नई इमारत के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल के खिलाफ दायर अपील से निकला है। साइनबोर्ड पर ‘नगर परिषद, पातुर’ लिखा हुआ था, जो मराठी में था और फिर उर्दू में। अपीलकर्ता, नगर परिषद की पूर्व सदस्य, वर्षताई ने कहा कि मराठी महाराष्ट्र राज्य की आधिकारिक भाषा है। उर्दू का इस्तेमाल “गलत” था।
*अदालत ने कहा कि उर्दू कोई विदेशी भाषा नहीं है। इसका जन्म और पालन-पोषण भारत में हुआ है, और यह अधिक परिष्कृत होते हुए भारत के कवियों की पसंदीदा भाषा बन गई है।*

*’गलत राय’*
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न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, *”उर्दू के खिलाफ पूर्वाग्रह इस गलत धारणा से उपजा है कि उर्दू भारत के लिए विदेशी है।* हमें डर है कि यह राय गलत है, क्योंकि मराठी और हिंदी की तरह *उर्दू भी एक इंडो-आर्यन भाषा है।”*
अदालत ने कहा कि *हिंदी और उर्दू मूलतः एक ही भाषा हैं।*

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, *”जब हम उर्दू की आलोचना करते हैं, तो हम एक तरह से हिंदी की भी आलोचना कर रहे होते हैं… सच है कि उर्दू मुख्य रूप से नस्तालिक में लिखी जाती है और हिंदी देवनागरी में; लेकिन फिर लिपियाँ किसी भाषा को नहीं बनातीं। भाषाओं को अलग बनाने वाली चीजें उनका वाक्यविन्यास, उनका व्याकरण और उनकी ध्वन्यात्मकता है। इन सभी मामलों में उर्दू और हिंदी में व्यापक समानताएँ हैं।”*

न्यायमूर्ति धूलिया ने स्पष्ट किया कि हिंदी और उर्दू, दो भाषाओं के सम्मिश्रण में दोनों पक्षों के शुद्धतावादियों के कारण बाधा उत्पन्न हुई और हिंदी अधिक संस्कृतनिष्ठ हो गई तथा उर्दू अधिक फारसीनिष्ठ हो गई।
न्यायाधीश ने लिखा, *”औपनिवेशिक शक्तियों ने धर्म के आधार पर दो भाषाओं को विभाजित करके एक विभाजन का फायदा उठाया। अब हिंदी को हिंदुओं की भाषा और उर्दू को मुसलमानों की भाषा समझा जाने लगा है, जो वास्तविकता से बहुत दूर है; विविधता में एकता से; और सार्वभौमिक भाईचारे की अवधारणा से।”*

न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि *आम आदमी की रोजमर्रा की हिंदी में उर्दू शब्दों की भरमार है।*

न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि *”शब्द ‘हिंदी’ खुद फ़ारसी शब्द ‘हिंदवी’ से आया है!* शब्दावली का यह आदान-प्रदान दोनों तरफ़ होता है क्योंकि उर्दू में भी संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं से कई शब्द उधार लिए गए हैं।”
संविधान के अनुच्छेद 345 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने उर्दू को अपनी दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया है। जिन राज्यों में उर्दू आधिकारिक भाषाओं में से एक है, वे आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं, जबकि इस प्रथा का पालन करने वाले केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और जम्मू और कश्मीर हैं।

*”हमें अपनी विविधता का सम्मान कर दोना चाहिए और उसमें आनन्दित होना चाहिए, जिसमें हमारी अनेक भाषाएँ शामिल हैं…* 2011 की जनगणना में मातृभाषाओं की संख्या बढ़कर 270 हो गई। यह संख्या भी केवल उन मातृभाषाओं को ध्यान में रखकर निकाली गई थी जिनके बोलने वालों की संख्या 10,000 से अधिक थी। इस प्रकार, यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में मातृभाषाओं की वास्तविक संख्या हज़ारों में होगी। भारत की भाषाई विविधता इतनी अधिक है!” सर्वोच्च न्यायालय ने ज़ोर दिया।

(‘द हिंदू ‘ से साभार)

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