साहित्य

बात करते हैं दिल दुखाने की

दर्द गढ़वाली की ग़ज़ल

ग़ज़ल

बात करते हैं दिल दुखाने की।
शर्त रक्खी है मुस्कुराने की।।

आइना देखना दिखाना है।
शर्त ये कैसी है ज़माने की।।

हमने तो दिल से तुमको चाहा था।
आपने ठानी आजमाने की।।

कौन सी नेमतें कभी बख्शी।
फ़िक्र हो क्यों हमें ज़माने की।।

आज आएंगे वो हमारे घर।
रात आई है घर सजाने की।।

रेत पर नाम वो मेरा लिखकर।
साजिशें रच रहे मिटाने की।।

‘दर्द’ ख़ारों से क्यों शिकायत हो।
हमको आदत है ज़ख़्म खाने की।।

दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094

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