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अभी भी आधा धंसा हुआ है कल्प केदार मंदिर

- सतह से करीब 12 फुट नीचे खोदकर इस मंदिर का आधा हिस्सा निकाला गया था

देहरादून: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का धराली गांव इस वक्त दर्द से कराह रहा है। पहाड़ों से सैलाब के साथ बहकर आए पानी और मलबे ने यहां भारी तबाही मचाई है। यहां पर पहले भी भीषण प्राकृतिक आपदा आ चुकी है। इतनी भीषण कि उस वक्त यहां पर जो कुछ भी रहा होगा, सब जमींदोज कर दिया था। इसका सबूत है धराली का कल्प केदार मंदिर। सतह से करीब 12 फुट नीचे खोदकर इस मंदिर का आधा हिस्सा निकाला गया था। मंदिर का आधा हिस्सा अभी भी धरती के नीचे है।

 

गंगोत्री से करीब 20 किमी दूर धराली

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से करीब 75 किलोमीटर दूर गंगोत्री हाइवे पर स्थित है धराली गांव। यह चार धाम यात्रा के प्रमुख तीर्थस्थल गंगोत्री से करीब 20 किलोमीटर दूर है। धराली और इसके पास का हर्षिल गंगोत्री की यात्रा का आखिरी पड़ाव माना जाता है। गंगोत्री जाने वाले यात्री आमतौर पर हर्षिल में पड़ाव करते हैं, जो लोग हर्षिल में नहीं रुक पाते, वो धराली में रुकते हैं। धराली कस्बे के बाद गंगोत्री तक पहाड़ी रास्ता है। हर्षिल से धराली गांव लगभग तीन-चार किलोमीटर दूर है।

भागीरथी नदी के किनारे स्थित धराली का कल्प केदार मंदिर न सिर्फ प्राचीन वास्तुकला और समृद्ध इतिहास का प्रतीक है, बल्कि इलाके में आई भीषण महाआपदा का सबूत भी है। स्थानीय लोग और इतिहासकार बताते हैं कि ये मंदिर कभी 240 मंदिरों के समूह का हिस्सा हुआ करता थी। इन्हें पांडवकालीन बताया जाता है। बरसों पहले आई भीषण आपदा में ये मंदिर जमीन के नीचे दब गए। बाद में मंदिर का शिखर नजर आने के बाद खुदाई की गई।

आधा धंसा हुआ है कल्प केदार मंदिर

कल्प केदार मंदिर के आसपास करीब 12 फुट तक खुदाई करके मंदिर के द्वार तक जगह बनाई गई। मंदिर के चारों तरफ मिट्टी हटाकर आने-जाने का रास्ता बनाया गया। मंदिर आज भी जमीन के नीचे आधा धंसा हुआ है। यहां शिव की प्रतिमा स्थापित है। आसपास नंदी, शेर आदि की प्रतिमाएं भी हैं।

 

17वीं सदी का है कल्प केदार मंदिर

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी बताते हैं कि कल्प केदार मंदिर और आसपास जो अवशेष मिले हैं, वह 17वीं सदी के हैं। ये मंदिर पुरातत्व विभाग की सूची में है। बताया जाता है कि ये मंदिर कत्यूर शैली में बना है। इसका गर्भगृह मंदिर के प्रवेश द्वार से करीब सात मीटर नीचे है। मंदिर के चारों तरफ नक्काशियां हैं। स्थानीय लोगों में इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं। गंगोत्री की यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्री भी इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं।

 

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