” विकास की कहानी गांव से है दूर-दूर क्यों, नदी पास है मगर ये पानी दूर दूर क्यों। “
इंद्रमणि बडोनी को बहुत पसंद थे जनकवि डॉ. अतुल शर्मा के जनगीत, पृथक राज्य आंदोलन के दौरान हुई थी दोनों में घनिष्ठता, पर्वतीय गांधी इंद्रमणि बडोनी की नाट्य प्रस्तुति से मलेथा गूल से प्रभावित हुए थे डॉ. अतुल शर्मा

देहरादून: पर्वतीय गांधी व उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के प्रणेताओं में इन्द्रमणि बडोनी का नाम बहुत आदर से लिया जाता है। सोमवार को उनकी पुण्यतिथि है। सादर श्रद्धांजलि। हम आज 11 बजे घंटाघर देहरादून में उनकी मूर्ति पर श्रद्धासुमन अर्पित करने गये थे।
मुझसे उनकी मुलाकात एक संस्कृतिकर्मी के रुप में हुई थी। नरेंद्र नगर में उनकी टीम मलेथा की गूल नाटक का मंचन कर रहे थे। एक सिंह माधो सिंह और सिंह काहे का,,,,,। वीर भड़ माधो सिंह भंडारी के जीवन पर आधारित गढ़वाली नाट्य प्रस्तुति सभी के आकर्षण का केन्द्र रहती थी। उसमें कथा के साथ लोकरंग की केन्द्रीय भूमिका रहती।
उसके बाद वे कई बार मिले। घर भी आये। उन्होंने चुनाव भी लड़ा, पर घनिष्टता हुई उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के दौरान। जब मैं श्रीनगर गढ़वाल और रुद्रप्रयाग में अपने लिखे जनगीत के साथ रैली में था।
पौड़ी मे उनसे बातें हुई तो उन्होंने एक बात कही, जो मुझे भीतर तक छू गई। उन्होंने कहा कि मैंने इस जनगीत को लगभग सभी जगह सुना है । जिसमें से एक पंक्ति पर ध्यान खिंचती है,,, ” विकास की कहानी गांव से है दूर-दूर क्यों,
नदी पास है मगर ये पानी दूर दूर क्यों। ”
फिर उन्होंने इस जनगीत का कैसेट भी सुना, ,,, लड़के लेगे भिड़ के लेगे छीन के लेंगे उत्तराखंड/ शहीदों की कसम हमे है मिल के लेंगे उत्तराखंड। मेरी उनसे एक संस्कृति कर्मी व नाट्य कर्मी के रुप मे आधिक रही।
लगता है कि एक सांस्कृतिक चेतना की और सांस्कृतिक प्रतिबद्ध रचना कर्म की आज सबसे ज़्यादा ज़रुरत है।