उत्तराखंड में भाषाई विवाद से साहित्य को पहुंच रहा नुकसान: हलधर
साक्षात्कार: ओज कवि जसवीर सिंह हलधर से शब्दक्रांति लाइव की बातचीत, दूरदर्शन अधिकारियों पर गिने-चुने चेहरों को ही बुलाने का आरोप, हिंदी-उर्दू ग़ज़लों के विवाद को भी बताया ग़लत

देश भर में ओज कवि के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले वरिष्ठ कवि जसवीर सिंह हलधर का मानना है कि उत्तराखंड में भाषाई विवाद से साहित्य को नुकसान पहुंच रहा है। दूरदर्शन-आकाशवाणी में भी कुछ गिने-चुने चेहरों को ही बार-बार बुलाए जाने से भी वह आहत हैं। उनका कहना है कि 24 साल में देहरादून दूरदर्शन ने उन्हें एक बार भी कवि गोष्ठी में आमंत्रित नहीं किया। साहित्यकारों से साक्षात्कार की श्रृंखला में पिछले दिनों shabdkrantilive.com ने हलधर साहब से उनके एमडीडीए स्थित आवास पर मुलाकात की और उनके साहित्यिक सफर पर लंबी बातचीत की। इसी बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं।
सवाल: आपका साहित्यिक सफर अब और कैसे शुरू हुआ?
जवाब: सही कहूं तो मुझे रागिनी गाने का शौक था, लेकिन इस काम को अच्छा नहीं समझा जाता था। वर्ष 1988 में पढ़ने के लिए मेरठ आया, तो बाबा टिकैत की सभा में गया, वहां ओज कवि हरिओम पंवार कविता सुना रहे थे, तो बहुत अच्छा लगा, लेकिन बात आई-गई हो गई। बाद में देहरादून में नौकरी लग गई, तो यहां आ गया। कविताएं लिख तो रखी थी, लेकिन प्रकाशित नहीं की थी। इस दौरान श्रीकांत श्री, जो हरिओम पंवार जी के शिष्य हैं, से किसी सिलसिले में मुलाकात हुई तो अपनी कविताओं की डायरी दिखाई, तो उन्होंने इसे छपवाने की बात कही। इस तरह पहली किताब शंखनाद नाम से छपी। इसके बाद आठ और किताबें छपी, जिनमें से एक महाकाव्य है, जो भगवान राम से संबंधित है और जिसका नाम ‘भगवान राम: जन्म से जलसमाधि तक’ है। इसके अलावा, अमर जवान ज्योति नाम से एक किताब आई, जो इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुई। मैं ऐसा पहला कवि हूं, जो किताब छपने के बाद मंचों पर आया।
सवाल: आपके प्रेरणा स्रोत कौन कवि रहे?
जवाब: डॉ. हरिओम पंवार मेरे तात्कालिक प्रेरणा के स्रोत रहे, लेकिन मुझे लेखन में सबसे ज्यादा किसी ने प्रभावित किया तो वह तीन लोग हैं। इनमें पं. श्याम नारायण पांडेय और दिनकर जी के अलावा दुष्यंत कुमार। मैं ग़ज़लें भी लिखता हूं, ऐसे में लोगों का मानना है कि मेरी ग़ज़लों में दुष्यंत कुमार का प्रभाव है, जिसे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी माना और मेरे ग़ज़ल संग्रह को 2021 में दुष्यंत पुरस्कार के लिए चुना गया।
सवाल: आपको किन विषयों पर कविताएं लिखना अच्छा लगता है। सामाजिक, ऐतिहासिक या धार्मिक चरित्रों पर। आपका एक ग्रंथ भगवान श्रीराम पर भी है?
जवाब: मेरी कविता में आपको द्वंद्व मिलेगा। अब उन्हें वीर रस का मानें या करुण। मैं श्रृंगार रस में कम ही लिखता हूं। मेरी दो हिंदी ग़ज़ल की पुस्तकें आ चुकी हैं, जिनके नाम ‘रेत की नदी’ और ‘पेट का भूगोल’ है और सभी में द्वंद्व है।
सवाल: हिंदी और उर्दू ग़ज़ल में आप क्या अंतर पाते हैं। अंतर है भी या नहीं?
जवाब: दोनों में अंतर बनाया गया है। कुछ लोग अरबी और फ़ारसी के कठिन शब्दों का प्रयोग कर यह जताने की कोशिश करते हैं कि वह उर्दू के शायर है। यही हिंदी वाले करते हैं और संस्कृत के कठिन शब्दों का प्रयोग कर ख़ुद को हिंदी का विद्वान दर्शाने की कोशिश करते हैं। सही मायने में किसी भी भाषा की आत्मा उसका व्याकरण है। जब आत्मा यानी व्याकरण एक है, तो फिर शरीर अलग-अलग कैसे हो सकते हैं। यह तो हम कपड़ा पहनाते हैं, जो अलग लिपि के होते हैं।
सवाल: इन दिनों शब्दों को लेकर एक और विवाद चल रहा है। विवाद का कारण यह है कि अगर आप उर्दू के शब्दों का हिंदी में प्रयोग करेंगे तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा। जैसे जलील शब्द है। इसे आप बिना नुक्ते के कहेंगे तो उसका मतलब श्रेष्ठ है और यदि नुक्ता लगाएंगे तो तुच्छ हो जाएगा। ऐसे में यदि आप हिंदी ग़ज़ल कहते हैं और उसमें तुच्छ शब्द का प्रयोग करते हैं तो आपको नुक्ता (ज़लील) लगाना पड़ेगा। ऐसे में ग़ज़ल में नुक्ते का प्रयोग होता है। आप इसे गजल नहीं कह सकते हैं?
जवाब: सनातन संस्कृति पांच हजार साल पुरानी है, जबकि अरबी संस्कृति को 1400 साल हुए हैं। जिन शब्दों को हिंदी ने बिना नुक्ते के अंगीकार किया है, उसे तो हिंदी के हिसाब से माना जाना चाहिए। हिंदी की किसी कहानी में कहीं भी जलील शब्द को देवता या श्रेष्ठ नहीं माना गया, उसे हमेशा तुच्छ के रूप में ही प्रयोग किया गया। यह केवल उर्दू शायरी में मिलेगा। वैसे भी कोई शब्द अकेला नहीं होता, वह वाक्य में प्रयोग होता है। नुक्ते वाले सौ-डेढ़ सौ शब्दों को छोड़ दें, तो कोई ऐसा साफ्टवेयर ही नहीं बना, जो इन दोनों भाषाओं को अलग कर दे। इसलिए यह देखा जाना चाहिए कि उस शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है और ऐसे में उर्दू वालो को बड़ा दिल दिखाना चाहिए, जिससे विवाद की स्थिति नहीं होगी। शब्द यात्रा करते हैं और यात्रा करते-करते उनके अर्थ बदल जाते हैं। एक शब्द है औरत, जो अरबी का है। इस शब्द का अर्थ इतना इतना गन्दा है कि आप इसका प्रयोग करना बंद कर दोगे। अरबी में इसका अर्थ वैश्यावृत्ति से जुड़ा हुआ है। शब्द ने यात्रा की और उसने अपना रूप बदल लिया है। अब सब जगह औरत शब्द का प्रयोग होता है, लेकिन कोई महिला बुरा नहीं मानती। इसी तरह, राक्षस शब्द है, जो रक्षित से निकलकर बना है। लेकिन यात्रा करते-करते इस शब्द का अर्थ ही बदल गया। अब यह शब्द बहुत बुरे इंसान के लिए प्रयोग होता है। अरबी में कमीन और कमीना शब्द है, दोनों का अर्थ अलग है। कमीन का अर्थ कमेरा से है। जब वस्तु विनिमय होता था, तब सेवा के बदले हम किसी को अनाज देते थे, जिसे देते थे, वह कमीन कहलाता था, लेकिन कालांतर में इसका अर्थ कमीना हो गया है।
सवाल: मंचीय कवियों पर आरोप लगाया जाता है कि वह स्तरहीन कविता दर्शकों और श्रोताओं पर थोप रहे हैं?
जवाब: इसमें थोड़ा सच्चाई है, लेकिन ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर कहा जा रहा है। स्तरहीन चुटकुले तो हो रहे हैं, लेकिन कविता को स्तरहीन नहीं कहा जा सकता। दरअसल, अब मंचों पर सिंडिकेट बन गए हैं। जिस बच्चे ने दस गोष्ठी न पढ़ी हों अपने जीवन में वह तथाकथित बड़े कवियों के पांव छूकर उनके साथ दो मंच साझा कर लें, चाहे उसे पांच हजार रुपए ही मिले हों, लेकिन वह तो सेलेब्रिटी हो गया ना। वह हलधर को बड़ा कवि क्यों मानेगा, जबकि हलधर की 10 किताबें आ चुकी हैं, जबकि उसने तो गिनती की चार कविताएं ही लिखी हैं ना। प्राब्लम यहीं आ रही है। कहानियों में ऐसा नहीं है। कहानी में कोई शार्टकट नहीं है। चार दिन में कोई बड़ा कहानीकार नहीं बन सकता, लेकिन वह जोड़-तोड़ कर मंचों का बड़ा कवि तो बन सकता है। लेकिन, ज़रूरी नहीं कि उसके जीवन में ही कोई उसे याद कर सके। साहित्य अजर अमर है, चार सौ साल बाद नहीं पढ़ा जाने का वो। वह जयशंकर प्रसाद की तरह नहीं पढ़ा जाने का। वह रामधारी सिंह दिनकर की तरह नहीं पढ़ा जाने का। वह श्याम नारायण पांडेय की तरह नहीं पढ़ा जाने का। वो जैसे ही मंच से उतरेगा कविता खत्म।
सवाल: पुराने और मौजूदा दौर के कवि सम्मेलन में बहुत अंतर आ गया है। अबके कवि सम्मेलन में पहले जैसी बात नहीं रही। पहले श्रोता कवि सम्मेलन में आकर कुछ न कुछ अपने साथ लेकर जाता था, लेकिन अब ऐसी बात नहीं है?
जवाब: दरअसल, कितनी बार कोई आपके मिसरों को घर लेकर जाएगा। आप पचास जगह तो वही पढ़ रहे हैं और आपसे वही पढ़ने की डिमांड की जा रही है। इसलिए दोष दोनों जगह का है। आयोजकों का भी और कवियों/शायरों का भी। शायर को भी यह कहना चाहिए कि मैंने कुछ नया लिखा है। पहले वह सुनाऊंगा और फिर जो आपकी डिमांड है, वह सुनाऊंगा। पहले कवियों में वह साहस होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है, जो मंच पर साफ दिखाई देता है।
सवाल: साहित्य समाज का दर्पण होता है। कवि सम्मेलन के माध्यम से समाज की समस्याएं सरकार तक पहुंच सकती हैं, लेकिन सरकारी संस्थाओं ने तो कवि सम्मेलन ही बंद करा दिए हैं। ऐसे में उत्तराखंड में कविता का भविष्य आप कैसा देखते हैं?
जवाब: यह विषय बड़ा गहन विषय है और इस पर मंथन की बहुत जरूरत है। भले ही हमारा अलग प्रदेश बन गया हो। समाज के अन्य मापदंडों पर भले ही तरक्की की हो, लेकिन साहित्य के मापदंड के मामले में तो मैं दावे से कह सकता हूं कि प्रदेश पीछे गया है। उत्तर प्रदेश की तुलना में पिछले 24 साल में साहित्य के मामले में एक भी ऐसा काम नहीं हुआ है, जो उत्तर प्रदेश के मुकाबले में बेहतर हो। उत्तर प्रदेश की जो भाषाई संस्थाएं हैं, वह बहुत बेहतर काम कर रही हैं। मैं 35 साल से उत्तराखंड में हूं, जबकि उत्तर प्रदेश का मूल निवासी हूं, लेकिन मेरे ग़ज़ल संग्रह को उत्तर प्रदेश हिंदी भाषा संस्थान ने पुरस्कृत किया, जबकि मेरे जैसे आदमी का यहां बैठकल लखनऊ में क्या जुगाड़ हो सकता है। लखनऊ में कम हैं जुगाड़ वाले या हिंदी शायरी कम लिखी जा रही है। बाबजूद इसके मुझे दुष्यंत पुरस्कार मिला। दरअसल, यहां आपसी खींचतान ज्यादा है। भाषाई विवाद ज्यादा है। हिंदी के लिए सरकार यदि कोई काम करना भी चाहती है, तो उसके विरोध में गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी वाले आ जाते हैं, जबकि हिंदी की यह तीनों भाषाएं बेटियां हैं, लेकिन यहां बेटियां ही मां का गला दबाने में लगी हैं। मैं इन तीनों क्षेत्रीय भाषा का विरोधी नहीं हूं, लेकिन यह स्थिति साहित्य को नुकसान पहुंचा रही है। मैं नाम नहीं लूंगा, लेकिन यह बात उत्तराखंड के ही एक मंत्री ने कही है। जहां तक कवि सम्मेलन की बात है तो पहले बड़े-बड़े कवि सम्मेलन देहरादून में होते थे। कौन सा बड़ा कवि हैं, जो देहरादून न आया हो, लेकिन अब क्या हो गया। इसका सबसे बड़ा कारण क्षेत्रवाद है। पिछले छह-सात साल से यहां थोड़ा माहौल बदला है। श्रीकांत श्री कुछ बड़े कवि सम्मेलन यहां करवा रहे हैं, लेकिन वह भी कुछ लोगों को अखर रहा है।
सवाल: उत्तराखंड सरकार के भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने लेखक गांव बनाने की घोषणा की थी। थानो में जो लेखक गांव है, क्या यह वही सरकारी लेखक गांव है। क्या फायदा इस लेखक गांव से स्थानीय लेखकों को हो रहा है?
जवाब: यह लेखक गांव तो निशंक जी का निजी है, जिसके लिए उन्होंने गांव वालों से जमीन लेकर अपने लोगों के नाम रजिस्ट्री कराई है। जहां तक लेखक गांव से लेखकों को फायदा होने की बात है, मुझे तो कुछ ऐसा लगा नहीं। कोई बड़ा लेखक इस लेखक गांव से निकला हो कि जिसे मुंबई में किसी फिल्मकार ने अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने को बुलाया हो। या ऐसा कोई बड़ा मंचीय कवि निकला हो, जिसे कुमार विश्वास ने बुलाया हो कि तू बड़ा अच्छा पढ़ता है, लेखक गांव में सीखता है। तुझे मैं पढ़वाता हूं अपने साथ।
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आत्म परिचय:-
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नाम- जसवीर सिंह हलधर
जन्म तिथि -1 जनवरी 1967
जन्म स्थान – गहना जजला बुलंद शहर उत्तर प्रदेश
वितमान तनवास – देहरादून उत्तराखिंड
शिक्षा -बी ,एस, सी,कृषि,(ऑनसस) एम,ए,(समाज शास्त्र)
प्रकाशित पुस्तकें –
-शंखनाद(काव्य संग्रह) – 2016
-मेघनाद (काव्य संग्रह) -2019
-पेट का भूगोल (ग़ज़ल संग्रह)-2020
– रेत की नदी (2020)
-अमर जवान ज्योति (काव्य संग्रह) -2021
– सिंहनाद (2022)
-राम कथानक महाकाव्य ( 2024)
– काव्यनाद – गीत संग्रह 2023
सम्मान:
1-राष्ट्रीय कवि संगम दिल्ली द्वारा साहित्य सेवा सम्मान
2-हिंदी समिति देहरादून द्वारा हिंदी सेवा सम्मान
3-ओ एन जी सी देहरादून द्वारा(कविता लेखन -2017) द्वितीय पुरस्त्कार
4 -एल आई सी देहरादून द्वारा हिंदी सम्मान
5-पूवोत्तर हिंदी अकादमी मेघालय द्वारा शिखर सम्मान
5-सद्भावना ट्रष्ट व राष्ट्र एकता परिषद दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय गौरव सम्मान
6-पटेल नेशनल कालेज पटियाला द्वारा पटेल सम्मान
7-हिंदी भाषा डॉट कॉम द्वारा – हिंदी सेवा सम्मान
8.-काया कल्प सादहत्य कला फाउंडेशन नोएडा द्वारा साहित्य श्री सम्मान
9- स्वदेशी जागरण मंच उत्तराखंड द्वारा छंद श्री सम्मान
10- बहुविधा साहित्य मंच एटा द्वारा – छंद शिरोमणि
11 -दुष्यंत पुरस्कार (रेत की नदी -ग़ज़ल संग्रह) 2021- उत्तर प्रदेश हिंदी भाषा संस्थान लखनऊ
12– इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज “ अमर जवान ज्योति “ काव्य संकलन – 2022
13- ओ एन जी सी तेल भवन द्वारा दहिंदी सेवा सम्मान -2022
14- हिमालय पर्यावरण संरक्षण समिति द्वारा हिंदी सेवा सम्मान – 2023
15- मुंबई भाषा परिषद द्वारा साहित्य रत्न सम्मान 2023
18- जयपुर साहित्य संगीत सम्मान – 2024
प्रकाशन:-
1-समस्त भारत में प्रकाशित विभिन्न समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में कविता प्रकाशन
वाचन:-
विभिन्न टीवी चैनलों व मंचों पर कविता पाठ
सांप्रति-भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत
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साक्षात्कारकर्ता: लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485894