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मैं और तुम ‘ से ‘ हम ‘ की अनूठी यात्रा : नवीन पंछी की कविताएँ

कविता के कथ्य और शिल्प से सम्बद्ध नवीनतम प्रयोग करने वाले प्रयोगधर्मी कवि हैं – नवीन पंछी।कवि पंछी मेड़ता रोड़ ( राज.) से आते हैं और दिल्ली में एक लंबा समय गुज़ारने के पश्चात जोधपुर ( राज.) में आ बसते हैं।
इनके अब तक पाँच कविता – संग्रह : क्रमशः’ दूसरे सूरज की तलाश ‘ , ‘ मौन दिशाएं ‘ , ‘ चीख के उस छोर तक ‘ , ‘ यहीं कहीं तुम ‘ और ‘ सफर जो शुरू ही नहीं हो सका ‘ तथा एक लघु कथा – संग्रह ‘ तेरा वजूद क्या है पार्टनर ‘ प्रकाशित हो चुके हैं ।

नवीन पंछी की कविताओं को पढ़ते हुए मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि यह कवि भिन्न -भिन्न मनः स्थितियों से गुज़रते हुए अलग – अलग शिल्प को तलाशता हुआ अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करता है। उदाहरण के लिए ‘ यहीं कहीं तुम ‘ की तमाम कविताएँ ‘ प्रेम और प्रेमिका ‘ के आत्मिक लगाव की सुंदर अभिव्यंजनाएँ हैं तो ‘ सफ़र जो शरू ही नहीं हुआ ‘ संग्रह की कविताएँ समय और समाज के अनेक ज्वलंत मुद्दों से रू – ब – रू होती कविताएँ हैं ।

अनुभवों के इस वैविध्य को जीना और जुदा – जुदा शिल्प और स्थापत्य में अभिव्यक्त करना विशेष प्रतिभा की मांग करता है।और विशेष बात तो यह है कि यह प्रतिभा कवि नवीन पंछी में पूरे उठाव के साथ मौजूद है।
पंछी की बहुत सी कविताएँ ‘ तुम ‘ को समर्पित हैं । यह ‘ तुम ‘ और कोई नहीं ‘ मैं ‘ की प्रेयसी ही है । उसे कभी जी भरके देखने की चाहत , कभी लंबी
प्रतीक्षा ,कभी उल्हाना तो कभी रूठना – मनाना चलता है तो कभी उनके बीच गहरा विश्वास , रूहानी लगाव और अटूट आस्था के दृश्य बिम्ब सहज और स्वाभाविक रूप में उभर आते हैं।

मैं ऐसी कविताओं को स्मृत्यावेग की कविताएँ कहना पसंद करूँगा ।क्यों कि अधिसंख्य भावावेग स्मरण के आवेग में ही चित्रित हुए हैं।
कवि नवीन ‘ अपनी ‘ बिल्कुल नहीं ‘ कविता में कहते हैं :

अकेला
कहाँ रहने दिया है
तुमने मुझे
दुनिया की हलचलों के
पिछवाड़े से
चली तो आती हो
जब तब पास मेरे
अकेला
कैसे छोड़ा तुमने
फिर मुझे !

****

कवि पंछी अटूट प्रेम करके अंत में इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि :

कहते हैं
वो जो हृदय के
सबसे क़रीब होता है
दरअसल
निहायत ग़रीब होता है।

****

होता है बहुत ज़रूरी
पास होना जिसका
वही एक नहीं होता
बाक़ी सब रहते हैं।

****

यहाँ एक प्रेमी दुनिया को प्रेमिका की नज़र से देखता है और हर वक़्त यादों में रखता है।सघन संवेदना के चलते कवि नवीन पंछी को यह भय निरंतर सताता है कि ऐसी कविता पढ़ लेने पर ये आंखें कहीं समंदर ही न हो जाए ! फिर तो वह यह चाहने लगता है कि :

कोई तो सूरत
नज़र आए
ये तड़प कभी
उसकी नज़्र हो जाए ।

****

जैसा मैंने पूर्व में कहा कि कवि नवीन पंछी प्रयोगधर्मा कवि हैं । इसकी फलश्रुति यह दिखाई देती है कि समय – समय पर कवि की सोच , संवेदना , शिल्प और सौंदर्यदृष्टि में नया विकास नज़र आने लगता है। वह अपने कमाए हर सत्य को कलात्मक अभिव्यक्ति में ढालने लगता है।

जीवन – यथार्थ की बदरंगी तस्वीर को देख कर भी अपनी आँखोँ में बेहतर दुनिया के ख़्वाब संजोने लगता है। स्वप्न और यथार्थ में द्वंद्व की जगह अनुपूरकता और सामंजस्य ले आता है।

नवीन पंछी का अपना कवि व्यक्तित्व है।अपनी काव्यभाषा और काव्य मुहावरा है। बाद की कविताओं में आए विचार खनिज और जीवन द्रव को पाकर पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । इस दृष्टि से कवि पंछी की इस कविता का अंश देखिए :

हर घुटन को
शब्द दो
शब्द को फिर
अर्थ दो
अर्थ को
विस्तार दो
वेदना को
सार दो
स्वयं को भी
तार दो।

****

नवीन पंछी अंत में स्वयं अपने कवि से मुख़ातिब होते हुए जो कुछ कहते हैं , वह रेखांकित करने योग्य है । वे लिखते हैं :

लिखना ही चाहे तो लिख
सच्ची – सच्ची बातें लिख
आँखों की गवाही लिख
प्यार भरा समंदर लिख
दिल सहारा है यह भी लिख
रह गई प्यास अधूरी लिख।।

****

अंत में , मेरा हिंदी – जगत के प्रबुद्ध पाठकों से यही निवेदन है कि कवि नवीन पंछी को एक बार अवश्य पढ़िए और उन्हें ‘ कविता – आज ‘ के दौर में समुचित रूप से परखिए । मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे आपकी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे ।

– डॉ.रमाकांत शर्मा

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