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भारत का वो गांव जहां मां बनने आती हैं विदेशी महिलाएं

लद्दाख में है यह गांव, शुद्ध आर्य की तलाश में आती हैं महिलाएं

हर कपल चाहता है कि उसकी होने वाली संतान तंदरुस्त, स्वस्थ, सुंदर और अच्छे रूप-रंग वाली हो। हालांकि बच्चे का रूप-रंग कैसा होगा, ये तो माता-पिता पर निर्भर करता है. इसी वजह से कुछ लोग आज के वक्त में अपने बच्चों का रंग-रूप सुधारने के लिए कुछ ऐसा करते हैं जो सुनने में बहुत अजीब लगता है। प्रेग्नेंसी टूरिज्म भी एक अजीब विचार है। जो भारत का एक हिस्सा है।

भारत के कुछ क्षेत्रों में कुछ गांव विदेशी महिलाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। यहां ये महिलाएं प्रेग्नेंट होने के लिए आती हैं। हालाँकि ये भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि आज इसे सिर्फ कल्पना और अफवाहें बताया जाता है, लेकिन कई लोगों ने इसके बारे में कहा है। ऐसे में तय करिए कि दावे सही या गलत हैं।

 

दुनिया में आखिरी बचे हुए सबसे शुद्ध आर्य

अल जजीरा, ब्राउन हिस्ट्री और कर्ली टेल्स की रिपोर्ट के अनुसार लद्दाख की राजधानी लेह से करीब 160 किलोमीटर दूर बियामा, डाह, हानू, गारकोन, दारचिक नाम के कुछ गांव हैं. जहां करीब 5,000 लोग रहते हैं. ये एक खास समुदाय है जो लद्दाख के इन इलाकों में रहता है।

इनका नाम है ब्रोकपा। ब्रोकपा लोगों का दावा है कि वो दुनिया में आखिरी बचे हुए सबसे शुद्ध आर्य हैं। यानी उनका खून आर्यों का है। पहले आर्य लिए इंडो-इरानी मूल के लोगों को कहा जाता था, लेकिन बाद में इन्हें इंडो-यूरोपियन मूल के लोगों कहा गया।

काफी अलग है इनकी बनावट

 

माना जाता है कि ये लोग सिकंदर महान की सेना में थे। सिकंदर की सेना में से कुछ लोग सिंधु घाटी में रह गए जब वह भारत आया। मास्टर रेस भी उनका नाम है। लद्दाख के अन्य लोगों से उनका बनावट बहुत अलग है। ये मंगोल और तिब्बती लोगों की तरह नहीं दिखते।

ये लंबे होते हैं, गोरे रंग के होते हैं, उनके बाल लंबे होते हैं, उनके जबड़े उठे हुए होते हैं और उनकी आंखों का रंग हल्का होता हैं। इसलिए ये लोग सुंदर दिखते हैं। ये जिस जगह पर रहते हैं, वो भी बेहद खूबसूरत स्थान है.

यहां आती हैं यूरोपियन महिलाएं

हैरानी की बात है कि अभी तक कोई वैज्ञानिक जांच या डीएनए टेस्ट नहीं हुआ है कि इस समुदाय के लोग असली आर्य हैं। इसके बावजूद, महिलाएं जर्मनी और यूरोप के अन्य देशों से यहां आती रही हैं। वह यहां आते हैं ताकि शुद्ध आर्य बीज ग्रहण कर सकें जिससे उनके होने वाले बच्चों का रंग-रूप उन्हीं लोगों का होगा।

इसलिए इसे प्रेग्नेंसी टूरिज्म कहा गया। साल 2007 में Achtung Baby: In Search of Purity नामक एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज हुई थी जिसे फिल्ममेकर संजीव सिवन ने बनाया था। उस लेख में एक जर्मन महिला मानती है कि वह लद्दाख में “शुद्ध आर्य बीज” की तलाश में आई है।

विभिन्न रिपोर्टों में प्रेग्नेंसी टूरिज्म का जिक्र किया गया है, लेकिन कई लोगों का कहना है कि ये सिर्फ उस समुदाय का बदनाम करने की साजिश है। आईटीबीपी ने उनकी तस्वीर कुछ समय पहले पोस्ट की थी। क्या आप इसके बारे में कुछ जानते थे?

 

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