
साहित्यकारों में धड़ेबाजी कोई नई बात नहीं है। लेकिन वर्तमान में यह धड़ेबाजी जूतमपैजार पर उतर आई है। सत्ता के नजदीक आने की चाह में साहित्य का लबादा ओढ़े ‘साहित्यकार’ अपना दींन-ईमान तक गिरवी रख दे रहे हैं और यह जता रहे हैं कि वह सच के ‘साथ’ हैं। जबकि असल साहित्यकार और पत्रकार सत्ता के साथ हो ही नहीं सकता और न होना चाहिए। कारण, साफ है कि लड़ाई ‘कुर्सी’ के लिए होती है और सत्ताधारी वर्ग इसे बरकरार रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। वह सत्ता के विरोधियों को प्रलोभन दे सकता है या डरा-धमकाकर अपनी ओर आने के लिए मजबूर कर सकता है। लेकिन वह साहित्यकार हो ही नहीं सकता, जो इन प्रलोभन में आकर अपना मूल काम छोड़ दे। पाकिस्तान में शायर हबीब ज़ालिब हमेशा सत्ता के विरोध में रहे और तानाशाहों की आंख में खटकते रहे। उनकी पूरी उम्र जेल में कट गई। इसी तरह भारत की बात करें तो दुष्यंत कुमार का नाम सबसे ऊपर आता है, जिनकी शायरी आपातकाल के दौरान आंदोलनकारियों की ज़बान पर चढ़ गई थी। सरकारी नौकरी में होते हुए भी वह डरे नहीं और अपना कवि धर्म निभाया। अभी कल यानी 25 जुलाई को ही हमने अमर शहीद श्रीदेव सुमन का 80वां बलिदान दिवस मनाया, जिन्होंने टिहरी की राजशाही के आगे झुकने से इन्कार कर दिया था। राजा तो राजा था, उसने सुमन को जेल में डाल दिया और आखिरकार उनका मृत शरीर ही जेल से बाहर आ सका।
वर्तमान में राजधानी देहरादून में साहित्यिक संस्था’संवेदना’ हो या ‘हिंदी साहित्य समिति’ दोनों में साहित्य पर चर्चा कम और धड़ेबाजी ज्यादा हो रही है। हिंदी साहित्य समिति की लड़ाई तो कोर्ट तक जा पहुंची है। तथाकथित साहित्यकारों की इस लड़ाई में नुकसान साहित्य का हो रहा है। मंच हासिल करने और पुरस्कार पाने की होड़ के चलते अच्छी रचनाएं गौण हो जा रही हैं। हालांकि, बहुत ज्यादा समय नहीं बीता जब देहरादून उच्चकोटि के साहित्यकारों और आयोजनों के लिए जाना जाता था। इनमें मनोहर लाल उनियाल ‘श्रीमन’, श्रीराम शर्मा ‘प्रेम’, गिर्दा, और गिरिजा शंकर त्रिवेदी जैसे साहित्यकारों का नाम लिया जा सकता है, जिन्होंने कवि की आत्मा को मरने नहीं दिया। मौजूदा समय में भी ऐसे बहुत से साहित्यकार हैं, जो कवि धर्म का निर्वाह कर रहे हैं।
बहरहाल, संवेदना और हिंदी साहित्य समिति में चल रही ‘बहसबाजी’ का सुखद अंत हो, तो इससे देहरादून में ‘कवित्व’ खोज रहे नए कवियों को न केवल दिशा मिल सकेगी, बल्कि साहित्य जगत के लिए भी यह संजीवनी का काम करेगी।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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