कमाल: कार्रवाई के बजाय खेद, झाड़ा पल्ला
-उत्तराखंड भाषा संस्थान को वरिष्ठ साहित्यकार तारा पाठक ने लिखी थी चिट्ठी, जांच की मांग की थी, उत्तराखंड भाषा संस्थान के बैनर तले पुस्तक का विमोचन न कराने को बताया था अपमान

देहरादून: उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से बीती तीन-चार मार्च को आईआरडीटी आडिटोरियम में आयोजित समारोह में उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार वितरण और पुस्तक विमोचन में अव्यवस्था का मामला एक बार फिर चर्चा में है।उल्लेखनीय है कि तमाम साहित्यकारों ने पुरस्कारों में न केवल गड़बड़झाला की बात कही थी, बल्कि अव्यवस्था का भी मुद्दा उठाया था। इस समारोह में साहित्यकारों की पुस्तक विमोचन की भी बात कही गई थी। कहा गया था कि पुस्तकों का विमोचन राज्यपाल की ओर से किया जाएगा। लेकिन 10-11 पुस्तकों का विमोचन ही राज्यपाल की ओर से किया गया और शेष पुस्तकों के विमोचन के समय उत्तराखंड भाषा संस्थान का बैनर ही गिरा दिया गया। इसे कुछ साहित्यकारों ने अपना अपमान बताया था।
हल्द्वानी की वरिष्ठ साहित्यकार तारा पाठक ने तो उत्तराखंड भाषा संस्थान को पत्र लिखकर पूरे मामले पर विरोध भी जताया। बीते 17 मार्च को भाषा मंत्री सुबोध उनियाल को पत्र भेजकर पूरे समारोह में अव्यवस्था और बिचौलियों की भूमिका को लेकर मामले की जांच की भी मांग उठाई गई। इस चिट्ठी में उन्होंने पुस्तक विमोचन समारोह की दो फोटो भी भेजी थी, जिसमें एक फोटो में राज्यपाल पुस्तक का विमोचन कर रहे हैं, जबकि दूसरी फोटो में उत्तराखंड भाषा संस्थान का पर्दा गिराकर पुस्तक विमोचन किया जा रहा है। तारा पाठक ने इसे साहित्यकारों का अपमान बताया था और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।
करीब एक माह से भी ज्यादा समय के बाद उप निदेशक जसविंदर कौर की ओर से 23 अप्रैल की लिखी जो चिट्ठी तारा पाठक को मिली है, उसमें मामले में जांच या अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई के बजाय खेद व्यक्त करके पल्ला झाड़ लिया गया है। भाषा संस्थान ने तारा पाठक को लिखे जवाब में कहा है कि अपमान या भेदभाव की संस्थान की कोई मंशा नहीं थी, फिर भी यदि कोई असुविधा हुई हो, तो खेद है। तारा पाठक ने संस्थान की इस चिट्ठी को लीपापोती बताया है। उन्होंने कहा कि एक जिम्मेदार व्यक्ति से उन्होंने अव्यवस्था को लेकर सवाल भी उठाया था, लेकिन उसने उनके आने पर ही सवाल उठा दिया। तारा पाठक ने उक्त व्यक्ति को सदस्य पद से हटाने की भी मांग की थी, लेकिन उसके खिलाफ कार्रवाई पर चुप्पी साध ली गई। तारा पाठक ने पूरे मामले को लीपापोती बताया है।