
- ग़ज़ल
आंख पर चश्मा चढ़ाया जा रहा है।
मनमुताबिक खेल खेला जा रहा है।।
झूठ होंठों पर सजाया जा रहा है।
और सच सबसे छिपाया जा रहा है।।
शहर में साया नजर आता नहीं अब।
धूप का जंगल उगाया जा रहा है।।
नफरतों के बीज बोए जा रहे बस।
प्यार का गुलशन उजाड़ा जा रहा है।।
शर्त रक्खी जा रही है प्यार में भी।
जीस्त को बेमौत मारा जा रहा है।।
दुख नहीं है ‘दर्द जी’ कोई मुझे अब।
हिज्र की शब को सजाया जा रहा है।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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