धराली आपदा: प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा
हिमालय का निर्माण भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराने से हुआ है। यह टक्कर लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुई थी और आज भी जारी है। इस टक्कर के कारण, भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे धंस गई, जिससे अत्यधिक दबाव और गर्मी पैदा हुई और हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ।

धराली (उत्तरकाशी) में 5 अगस्त को आई दैवी आपदा ने धराली गांव के एक बड़े हिस्से को मलबे में बदल दिया। इस सैलाब ने करीब 30 सेकेंड में धराली गांव को ध्वस्त कर दिया। हंसते-खेलते देश-दुनिया से आये कई पर्यटक और स्थानीय लोग काल के गाल में समा गए। धराली में आई यह पहाड़ में कोई पहली आपदा नहीं थी, बल्कि ऐसी आपदाएं पहाड़ के वासियों ने कई बार देखी हैं, परन्तु आज ये आपदा विशेष चर्चा में क्यों है? इसका कारण है विकास, पर्यटन और रोजगार। सरकार पहाड़ का विकास करने के नाम पर रोड, और निर्माण कार्य तेजी से करना चाहती है , ताकि पहाड़ को पर्यटन के तर्ज पर विकसित कर यहाँ रोजगार के अवसर पैदा कर सके। पर पहाड़ इस अनियमित विकास, निर्माण और पर्यटन को सहन करने में असमर्थ है।
हिमालय का निर्माण :
हिमालय का निर्माण भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराने से हुआ है। यह टक्कर लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुई थी और आज भी जारी है। इस टक्कर के कारण, भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे धंस गई, जिससे अत्यधिक दबाव और गर्मी पैदा हुई और हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ।
हिमालय नहीं झेल सकता अनियमित विकास:
हिमालय के निर्माण समुद्र में वलय के कारण हुआ है, इसलिए हिमालय की मिट्टी कमजोर है, हिमालय में विकास मैदान के तर्ज पर नहीं हिमालय के तर्ज पर ही करना पड़ेगा, हिमालय में निर्माण के लिए एक ढांचागत रणनीति बनाने की जरूरत है, इसके लिए सरकार को नये शिरे से सोचने की जरुरत है।
पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन के लिए मानव जिम्मेदार:
हाँ, मनुष्य पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। वनों की कटाई, प्रदूषण (औद्योगिक और रासायनिक), जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग, प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन, और अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि जैसी मानवीय गतिविधियाँ पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ती हैं, जिससे जैव विविधता का नुकसान होता है और पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
उत्तराकाशी में इस से पहले भी प्रकृति ने कई बार चेताया है। उत्तरकाशी जिले ने अतीत में कई प्राकृतिक आपदाओं का अनुभव किया है, जिनमें प्रमुख हैं:
-1991 का उत्तरकाशी भूकंप (6.8 तीव्रता का, जिसने 700 से अधिक लोगों की जान ली)
-2003 में वरुणावत पर्वत पर भूस्खलन
– 1978 की बाढ़ और 2021 में चमोली जिले के तपोवन में आई ग्लेशियर फटने वाली आपदा से मिलती-जुलती घटनाएँ
– नवंबर 2023 को, उत्तरकाशी जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 134 को जोड़ने वाली सिल्क्यारा बेंड-बरकोट सुरंग का एक हिस्सा निर्माण के दौरान धंस गया और कई मजदूर फंस गए थे। इन आपदाओं के कारण बड़े पैमाने पर तबाही और जानें गईं।
पहाड़ देवी देवताओं को पर्यटक बनकर नहीं, सम्मान और भक्ति लेकर ही जाएं:
उत्तराखंड में आये दिन कोई न कोई घटना होती रहती है, परन्तु मानसून के समय यह धरती हमेशा थर -थराती , जिसका एक कारण यहाँ रह रहे मूलनिवासी मानते हैं कि पहाड़ी संस्कृति, यहाँ की डेमोग्राफी में परिवर्तन, और देवी-देवता को भक्ति की इरादे से नहीं अपितु पर्यटन बनकर अपमानित करते जा रहे हैं, सरकार भी धार्मिक स्थलों को पर्यटन में बदलना चाहती है, जो कर भी रहे हैं, इसलिए इस प्रकार की आपदाएं आये दिन देखने को मिलती रहेंगी।
सरकार और कुछ स्वार्थी लोग पहाड़ को देख रहे हैं कुबेर का खजाना :
एक और जहाँ देश में गरीबी और बेरोजगारी चरम पर है, वहीं सरकार जब आय के स्रोत नहीं ढूंढ पाई, वहीं पहाड़ को आय का स्रोत बना रही है। कुछ लोग यहां पहाड़ काटकर होटल, एडवेंचर और नियम की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहे हैं। यहां का मूलनिवासी नियमों के दायरे में रहकर काम करता है, परन्तु डेमोग्राफी परिवर्तन इस तरह के हालात के लिए जिम्मेदार बन रहे हैं।
– उपेंद्र बहुगुणा ( लेखक भूगोल शोधकर्ता और यूजीसी-नेट क्वालीफाई हैं )