बहुत याद आएंगे अश्वघोष
प्रख्यात साहित्यकार अश्वघोष नहीं रहे, जनकवि डॉ. अतुल शर्मा समेत कई साहित्यकारों ने अश्वघोष जी से जुड़ी यादें साझा की, रविवार को होगा अंतिम संस्कार

देहरादून: छोटी बह्र के बड़े शायर अश्वघोष जी अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका लंबी बीमारी के बाद शनिवार को निधन हो गया। चर्चित कथाकार मुकेश नौटियाल जी की फेसबुक वॉल से इस दुखद समाचार के प्रसारित होने के बाद अश्वघोष जी को श्रद्धांजलि देने का तांता लग गया। कई लोगों ने अश्वघोष जी के साथ बिताए दिनों को याद किया।
जनकवि अतुल शर्मा ने अश्वघोष जी को याद करते हुए कहा कि वह एक ऐसे बुज़ुर्ग मित्र थे, जिनसे पचास वर्षों की जान-पहचान रही। पहली मुलाकात एक कवि सम्मेलन में हुई थी। यह सन् 70 की बात है। देहरादून में राष्ट्रीय कवि सम्मेलन था।
मैं युवा कवि के रुप में काव्य पाठ कर रहा था। जब एक वरिष्ठ कवि के रुप में उपस्थित भाई अश्वघोष ने काव्य पाठ किया, तो उन्होंने बहुत अपनेपन से प्रोत्साहित करते हुए कहा कि अतुल शर्मा की कविता की यह पंक्ति,,,, ” जिस घर में चूल्हा नहीं जलता वहाँ मशाल जलती है ” इस कवि सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण कविता की पंक्ति है। मैं अतुल को अपना आशीर्वाद देता हूँ। ये विनम्र भाव ही भाईसाहब की विशेषता रही। आकाशवाणी और दूरदर्शन में बहुत बार काव्य पाठ किया। पर उनसे पारिवारिक संबंधों का अपनापन हमेशा मिला। कविता, ग़ज़ल, दोहे और लघुकथा आदि की पुस्तकों को लगातार पढ़ा है। वे ऊर्जा और उत्साह से लबरेज़ रहे हमेशा। अंतिम मुलाकात आकाशवाणी देहरादून की एक कवि गोष्ठी में हुई। उसमें रुड़की से सशक्त कवयित्री बुशरा तबस्सुम जी ने संचालन किया था। वे मिलते ही हमेशा घर में सबके हाल ज़रूर पूछते। फिर मेरी किसी रचना का जिक्र ज़रूर करते। उनकी आदतों में से एक आदत थी,,, प्लेट में डाल कर चाय पीना। उसे मैंने क्लिक किया आकाशवाणी देहरादून की कैंटीन में। बहुत संस्मरण हैं उनके साथ। बहुत याद आयेंगे अश्वघोष जी।
अश्वघोष जी से हमारी भी कुछ माह पहले मुलाकात हुई थी। परममित्र शिवचरण शर्मा ‘मुज्तर’ और गुमनाम पिथौरागढ़ी और मैं दर्द गढ़वाली अश्वघोष जी के घर गए थे। काफी देर उनके पास बैठे और ग़ज़लों पर बात हुई। हालांकि उन्होंने ग़ज़लें कम कही, लेकिन छोटी बह्र पर उनका जबरदस्त दखल था। बाल कविताएं तो उनकी बहुत चर्चित हुई। 27 अक्टूबर 2024 को उनका दून में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
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अश्वघोष की कुछ ग़ज़लें
चुप्पी छाई बात करो अब
है तनहाई, बात करो अब
आतुर है ऊपर आने को
इक गहराई, बात करो अब
तोड़ रहा भीतर ही भीतर
ग़म हरजाई, बात करो अब
झूठ के महलों में बैठी है
चुप सच्चाई, बात करो अब
मन में डर, डर में सन्नाटा
मेरे भाई, बात करो अब !
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मुझमें ऐसा मंज़र प्यासा
जिसमें एक समंदर प्यासा
सारा जल धरती को देकर
भटक रहा है जलधर प्यासा
भूल गया सारे रस्तों को
घर में बैठा रहबर प्यासा
कोई दरिया नहीं इश्क़ में
दर्द भटकता दर-दर प्यासा
अश्वघोष से जाकर पूछो
लगता है क्यूँ अक्सर प्यासा !
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द्वार खोलो दौड़कर लो आ गया अख़बार
कुलमुलाती चेतना पर छा गया अख़बार ।
हर बसर ख़ुशहाल है इस भुखमरी में भी,
आँकड़ों की मार्फ़त समझा गया अख़बार ।
कल मरी कुछ औरतें स्टोव से जलकर,
आज उनको देखता हूँ खा गया अख़बार ।
हर तरफ़ ख़ामोशियों में रेंगते चाकू,
एक सुर्ख़ी फेंक के दिखला गया अख़बार ।
भूख से संतप्त होकर मर गई चिड़िया,
लाश ग़ायब है अभी बतला गया अख़बार ।
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