दून लाईब्रेरी में गूंजे अतुल शर्मा के जनगीत
-भारतीय संविधान फिल्म के चौथे एपिसोड का भी हुआ प्रदर्शन

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से शुक्रवार को भारतीय संविधान और संवैधानिक मूल्यों पर आधारित कार्यक्रम में जनकवि डॉ.अतुल शर्मा के जनगीतों ने समां बांध दिया। इस मौके पर अगस्त क्रान्ति दिवस के मौके पर राज्यसभा टीवी पर दस साल पहले प्रसारित किए गए भारतीय संविधान के कुल दस एपिसोड की श्रंखला के चौथे एपिसोड का भी सभागार में प्रदर्शन किया गया। इस संविधान धारावाहिक का निर्देशन सुपरिचित फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल द्वारा किया गया है। आज का यह कार्यक्रम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और हमारा संविधान, आजादी से पहले व बाद में जनगीतों के माध्यम से जनशिक्षण पर आधारित था।
इस कार्यक्रम में लेखक व जनकवि डॉ. अतुल शर्मा ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संविधान और जनगीतों के माध्यम से जन शिक्षण पर अपनी बात रखते हुए कहा कि जब गीत को लोक अपना ले और किसी विशेष प्रयोजनों में उसका प्रयोग करे, तो वह जनगीत हो जाता है। ऐसा हर आन्दोलन में हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम में सैकड़ों जनगीतों ने जनता को उद्वेलित किया था। रामप्रसाद बिस्मिल के लिखे गीत को गाते हुए क्रांतिकारी फांसी के फन्दे पर झूल गये ’सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना, बाज़ुए कातिल में है’।
बंकिमचन्द्र चंद्र चटर्जी का लिखा गीत वंदेमातरम तो स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक ही बन गया था। इन गीतों ने लोगों का लोक शिक्षण करने के साथ ही उनमें जोश भी भरा। सन् 1942 का अंग्रेजों भारत छोडो़ आन्दोलन की शुरुआत नौ अगस्त को हुई, जिसपर महान स्वतंत्रता सेनानी एवं राष्ट्रीय कवि श्रीराम शर्मा प्रेम ने 1942 में एक ऐतिहासिक गीत लिखा ’लाठियां चली गोलियां चली, गोले बरसे बम बरस पड़े, गोदी के छोटे लाल बन गये आफत के परकाले थे। बहुत से स्वाधीनता सेनानियों सहित कवि प्रेम ने जेलों में कविताएं लिखी। आज़ादी के बाद विषमता, समानता शोषण आदि के लिए आन्दोलन हुए। इनमें बहुत से जनगीतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जनकवि शैलेन्द्र का लिखा जन गीत ’हर जोर जुल्म की टक्कर से हड़ताल हमारा नारा है।’ साहिर लुधियानवी ने लिखा’ वो सुबह कभी तो आयेगी’। उत्तराखण्ड के गौर्दा सहित कैफी आज़मी, सफदर हाशमी, माहेश्वर बृज मोहन के साथ बहुत से लोगों के जनगीतों ने लोक शिक्षण किया। शलभ श्रीराम सिंह का चर्चित गीत ‘नफस नफस कदम कदम बस एक फिक्र दम ब दम’ तो कालजयी है। सैकड़ों जनकवि लोक शिक्षण में आगे आये, जिनमें बल्ली सिंह चीमा, गिर्दा, ज़हूर आलम दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी, घनश्याम सैैलानी आदि के अलावा अहिंदी भाषी कवियो ने जनगीतों से लोक शिक्षण किया है।
जनकवि डॉ. अतुल शर्मा ने कहा कि संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। उत्तराखंड में चिपको आन्दोलन कुली बेगार प्रथा, नशा नहीं रोजगार दो, उत्तराखंड आन्दोलन, नदी बचाओ आन्दोलन में जनगीतों ने लोक शिक्षण ही नही किया, दिशा भी दी और जन आन्दोलनों को गति भी प्रदान की। इस तरह कहा जा सकता है कि जन गीत आज़ादी से पहले और बाद में हर जगह मुखर रहे हैं।
जन संवाद समिति के प्रमुख सतीश धौलाखंडी ने कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि आगे भी संविधान पर आधारित हर माह दो एपिसोड इसी तरह सिलसिलेवार प्रस्तुत किये जायेंगे, जो युवाओं व सामान्य जनों के लिए निसंदेह महत्वपूर्ण साबित होगा।
कार्यक्रम के अंत में आजादी व संवैधानिक मूल्यों पर जागरूकता लाने हेतु नाटक-‘उपलब्धियाँ’ का कलाकारों ने शानदार मंचन भी किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी आज जिस तरह समता, समानता, गरीबी के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, व नागरिक सुविधाओं की आजादी की मांग समाज में बरकरार है, उसी सामाजिक समस्या पर यह नाटक केन्द्रित रहा। नाटक के कलाकारों में धीरज रावत, अनिता नौटियाल, गायत्री, विनीता, गरिमा, अमित, इफ्तियार अली, गौरव का महत्वपूर्ण अभिनय रहा। नाटक का निर्देशन सतीश धौलाखंडी ने किया। सतीश धौलाखंडी ने बताया कि 1992 में सहारनपुर की एक कार्यशाला में सामूहिक रूप से तैयार यह नाटक त्रिपुरारि शर्मा जी के निर्देशन में किया गया था।
कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने सभी लोगों का स्वागत किया। इस कार्यक्रम का संचालन इप्टा के उत्तराखण्ड अध्यक्ष डॉ. वीके डोभाल ने किया। इस अवसर पर प्रदीप कुकरेती, दर्द गढ़वाली, राकेश अग्रवाल, रेखा शर्मा, रंजना शर्मा, दयानंद अरोड़ा, शोभा शर्मा, कमलेश खंतवाल, विजय कुमार भट्ट, सुंदर बिष्ट, हिमांशु आहूजा, मनोज कुमार पंजानी, हर्षमणि भट्ट, अवतार सिंह आदि मौजूद थे।