कुमाऊंनी साहित्य के लिए मील का पत्थर भारती पांडे की ‘विनय पत्रिका’
- भारती पांडे की तुलसीदास कृत विनय पत्रिका के कुमाऊंनी अनुवाद का हुआ लोकार्पण, डॉ. सुधा रानी पांडेय, डॉ. कमला पंत और डॉ. अल्गका पांडे ने किया लोकार्पण, ढ़वाली और कुमाऊंनी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पैरवी

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के बैनर तले रविवार को एक गरिमामय कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध कवयित्री भारती पांडे की गोस्वामी तुलसीदास कृत विनय पत्रिका के कुमाऊंनी अनुवाद का लोकार्पण किया गया। पुस्तक का प्रकाशन दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र और समय साक्ष्य ने किया है। गोस्वामी तुलसीदास जी की 527 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पैरवी भी की गई। कार्यक्रम के दौरान बीना जोशी,रमा जोशी, कमला पंत और बीना भट्ट नेे विनय पत्रिका के पदों का सुमधुर गायन कर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। गीत गायन में तबले पर राघव ने साथ दिया।
विशिष्ट अतिथि और शिक्षाविद् कमला पंत ने कहा कि भारती पाण्डे ने अपनी कुमाऊंनी बोली में तुलसीदास कृत विनय पत्रिका का अविकल अनुवाद करने का साहस जुटाया है। अनुवाद की पाण्डुलिपि जब मेरे हाथ में आई तो मुझे भारती के अथक परिश्रम और अटूट लगन का कायल होना पड़ा। विनय-पत्रिका का अपनी दुदबोली कुमाऊंनी में अनुवाद करने का जो उपक्रम उन्होंने किया है उसे बड़ी सरलता से स्वीकारा भी है कि राम की आज्ञा में भला कौन बाधक हो सकता है। उन्होंने कहा कि भारती पांडे ने विनय पत्रिका जैसी गूढ़, धार्मिक और आध्यात्मिक कृति का कुमाऊंनी बोली में अनुवाद कर कुमाऊंनी साहित्य को एक अमूल्य भेंट दी है। आज की सामाजिक स्थितियों में संस्कृति, परम्पराओं और जीवन मूल्यों का जिस तरह ह्रास हो रहा है, उस स्थिति में अपनी बोली को सहेजने का यह प्रयास सचमुच वंदनीय और अभिनंदनीय है। उन्होंने अपने वक्तव्य में उत्तराखंड की बोली-भाषा के विषय पर भी प्रकाश डाला।
साहित्यकार डॉ. अल्का पाण्डेय ने कहा कि विनय पत्रिका के कुमाऊंनी अनुवाद की पुस्तक स्कूलों के पाठ्यक्रमों में लगाने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए। हिंदी-कुमाऊंनी भाषा के शोधार्थियों के लिए यह उपयोगी पुस्तक होगी। कुल मिलाकर यह पुस्तक भाषा के संवर्धन के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. सुधारानी पाण्डे ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारती पांडे द्वारा संत तुलसीदास की विनय पत्रिका का कुमाऊंनी लोकभाषा में अनुवाद सुंदर सार्थक पहल है। तुलसीदास की चरम साधना की परिणीति ही है विनय पत्रिका, यानी वह राम के चरणों में लोक मंगल की याचिका है। तुलसीदास के रामचरित मानस से जो लोकप्रियता मिली, उससे राम जान जान के करुणा वत्सल प्रिय बन गए। राम चरित मानस सहित विनय पत्रिका भी रामसाहित्य भक्तों और पाठकों का आधार बनी है। इसी लोकप्रियता के वजह से राम साहित्य की प्रस्तुति कई बोली भाषाओं में हुई है।
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने कहा कि भारती पांडे ने तुलसीदास जी द्वारा रचित विनय पत्रिका को कुमाऊंनी में अनुवाद करके स्तुत्य कार्य किया है। कुमाऊंनी बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले अनेक पुराने शब्द जो विलुप्त के कगार में पहुंच गए हैं, उन्हें भारती पांडे ने इस कुमाऊंनी भावानुवाद में सहज रुप से समावेश कर महत्वपूर्ण कार्य किया है।
इससे पहले लेखिका भारती पांडे ने अपनी इस पुस्तक के बारे में कहा कि विनय पत्रिका में तुलसीदासजी ने देवताओं की स्तुति व गुणगान कर अन्ततः उनसे रामभक्ति की याचना की है। विनय पत्रिका के पद विभिन्न रागों में लिखे गए हैं। उन्होंने कहा कि विनय-पत्रिका में आये हुए विविध कथा प्रसंगों की जानकारी आमजन को बहुत कम है। अतः इस उद्देश्य से उन्होंने इसके कुमाऊंनी अनुवाद की ओर कदम उठाया। हिन्दी की व्याकरणिक संरचना, पदों की गेयता और कुमाऊंनी बोली के शब्दों के उच्चारण की जटिलता के कारण हालांकि पदों का अनुवाद बहुत सरल नहीं हो पाया है, लेकिन एक प्रयास के रूप में इसे पूर्ण करने का कार्य किया है।
कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार शिवमोहन सिंह ने किया। इस अवसर पर, डॉ. लालता प्रसाद, रजनीश त्रिवेदी, वीरेंद्र डंगवाल पार्थ,शांति प्रसाद जिज्ञासु, रमाकांत बेंजवाल, दर्द गढ़वाली, चन्दन सिंह नेगी, बीना बेंजवाल, प्रवीन भट्ट, बबीता शाह लोहनी, विवेक तिवारी, डीके.पाण्डे, महेश चन्द्र पांडे, कमल रजवार, गोविंद पांडे,अवतार सिंह, सुन्दर सिंह बिष्ट, शोभा पांडे, दिनेश चंद्र जोशी, सुमित पांडे आदि मौजूद थे।