यूपी के तदर्थ शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, वर्ष 2000 के बाद नियुक्त शिक्षक होंगे बहाल

– लक्ष्मी बडोनी
नई दिल्ली/लखनऊ/देहरादून:सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के 1111 तदर्थ शिक्षकों को बड़ी राहत देते हुए राज्य सरकार द्वारा 2000 के पश्चात तदर्थ शिक्षकों के खिलाफ दिए गए आदेश को ग़लत ठहराया, जिससे अब वर्ष 2000 के बाद नियुक्त तदर्थ शिक्षकों की सेवाएं बहाल होंगी । यह फैसला राज्यभर के तदर्थ शिक्षकों के लिए एक मील का पत्थर माना जा रहा है, जो लंबे समय से न्याय की लड़ाई लड़ रहे थे।
◆ क्या था मामला ?
उत्तर प्रदेश सरकार ने 9/11/2023 को एक आदेश जारी कर 7 अगस्त 1993 के बाद नियुक्त लगभग ढाई हजार तदर्थ शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर दी थी । इस आदेश के खिलाफ प्रदेशभर में तमाम विरोध-प्रदर्शन हुए । बाद में विनोद श्रीवास्तव बनाम राज्य सरकार के मामले में हाईकोर्ट ने 2000 के पहले के तदर्थ शिक्षकों को अलग कर दिया और उनके वेतन की बहाली कर दी । जबकि 2000 के बाद के तदर्थ शिक्षकों के लिए 7 जुलाई 2024 को यूपी सरकार के मानदेय आदेश को बरकरार रखा । सरकार की सेवा समाप्ति व मानदेय सम्बन्धी आदेश को इलाहाबाद के मनौरी इंटर कॉलेज के तदर्थ शिक्षक प्रशांत पाठक ने हाईकोर्ट में चुनौती दी । जिसमें आयोग के कंडीडेट आने तक वेतन बहाली का आदेश पारित हुआ । फिर भी सरकार ने याची का वेतन बहाल नहीं किया । अवमानना याचिका में वेतन देने सम्बन्धी आदेश होने पर सरकार डिवीजन बेंच गई तो डिवीजन बेंच ने सरकार के फ़ैसले पर आंशिक मुहर लगाते हुए 2000 के पहले के शिक्षकों को वेतन, और बाद के तदर्थ शिक्षकों को मानदेय का आदेश जारी कर दिया । डिवीजन बेंच के इस आदेश को प्रशांत पाठक ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की ।
◆ सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गम्भीरता से लिया और सरकार के मानदेय सम्बन्धी आदेश पर तत्काल रोक लगाते हुए प्रशांत पाठक की प्रेयर को स्वीकार किया, और उत्तर प्रदेश सरकार को 4 सप्ताह में जबाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है । जैसे ही सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की जानकारी हुई, इसको लेकर खबरें वायरल होने लगीं । इस मामले में याची प्रशांत पाठक ने कहा कि राज्य सरकार का मानदेय सम्बन्धी आदेश तर्कहीन, शिक्षकीय अधिकारों का उल्लंघन करने वाला और संविधान की शिक्षासंबंधी मूल भावना के विपरीत था, जिसे आज सुप्रीम कोर्ट ने मानने से इंकार कर दिया ।
◆ शिक्षकों में खुशी की लहर
फैसले के बाद प्रदेशभर के तदर्थ शिक्षकों में ख़ुशी का माहौल रहा । लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के प्रति आभार जताया ।
◆ तदर्थ शिक्षक नेताओं की प्रतिक्रिया
तदर्थ शिक्षकों के हक के लिए लड़ने वाले तदर्थ शिक्षक नेताओं ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर कहा कि “यह न्याय की जीत है । सर्वोच्च न्यायालय ने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र में आवाज़ें सुनी जाती हैं । शिक्षा के मंदिर में अब कोई शिक्षक अन्याय का शिकार नहीं होगा, यह संदेश सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने ऐतिहासिक फैसले से दिया है।”