गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा को संविधान की अनुसूची में शामिल कराया जाएगा: उनियाल
ग्राम पाली में हिंदी विषय के प्रथम डीलिट डा. बड़थ्वाल की जयंती मनाई

शब्द क्रांति लाइव ब्यूरो, ग्राम पाली (पौड़ी गढ़वाल): प्रदेश के भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा को संविधान की अनुसूची में शामिल कराने का पुरजोर प्रयास किया जाएगा। उनियाल बुधवार को उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से हिंदी विषय के प्रथम डीलिट डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल के गांव पाली में उनकी जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने ग्रामीणों का आह्वान किया कि डा. बड़थ्वाल की स्मृति को चिरस्थाई रखने की जिम्मेदारी जितनी भाषा संस्थान की है, उतनी ही ग्रामीणों की है।
उनियाल ने कहा कि अगले साल भी भव्य तरीके से डा.बड़थ्वाल की जयंती मनाई जाएगी और इसके संयोजक क्षेत्रीय विधायक महंत दिलीप सिंह रावत होंगे।
इससे पहले लैंसडौन विधायक महंत दिलीप सिंह रावत ने कहा कि अपनी बोली-भाषा का संरक्षण करना हम सबकी जिम्मेदारी है।
इस मौके पर इग्नू दिल्ली के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने हिंदी को समृद्ध बनाने के डॉ. बड़थ्वाल के प्रयास को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्हीं की वजह से वह हिंदी के शिक्षक बने हुए हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन लोहनी ने कहा कि डा. बड़थ्वाल ने हिंदी के साथ-साथ अपने गुरु का भी मान बढ़ाया। इस मौके पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार में हिंदी के प्रवक्ता नरेंद्र प्रताप सिंह ने भी विचार व्यक्त किए।
इससे पहले भाषा संस्थान की उप निदेशक जसविंदर कौर ने अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर डॉ.बड़थ्वाल के स्वजन का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार सत्यानंद बडोनी, हयात सिंह रावत, रमाकांत बेंजवाल, वीरेंद्र डंगवाल पार्थ, लक्ष्मी प्रसाद बडोनी, प्रवीण भट्ट, नारायण सिंह राणा आदि मौजूद थे। साहित्यकार बीना बेंजवाल ने संचालन किया।
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डॉ. बड़थ्वाल का मकान जर्जर, सड़क भी टूटी
उत्तराखंड भाषा संस्थान, देहरादून की ओर से बुधवार को हिंदी विषय के प्रथम डीलिट डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की जयंती पर उनके गांव पाली में समारोह का आयोजन किया गया। साहित्यकारों का जमघट तो लगा, लेकिन सरकार की ओर से ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई, जिससे डॉ. बड़थ्वाल का गांव समृद्ध हो सके।
डॉ. बड़थ्वाल के गांव जाने वाली सड़क जहां बदहाल है, वहीं उनका मकान भी जर्जर हालत में है। पुस्तकालय है, लेकिन उसमें भी ताला पड़ा था, जबकि सरकार को डा. बड़थ्वाल के मकान को स्मारक में तब्दील करना चाहिए, ताकि उनकी स्मृति हमेशा कायम रह सके।