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सिस्टम को आइना दिखाते गीत

रामलखन शर्मा 'अंकित' के गीत संग्रह 'अधरों पर ताले' की समीक्षा

पुलिस की व्यस्ततम नौकरी के बाद भी एक पुलिसकर्मी का गीत जैसी कोमल विधा को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना यह दर्शाता है कि पुलिसिया दिल में भी संवेदना, करुणा, मानवता की कमी नहीं होती है। ग्वलियर निवासी श्री राम लखन शर्मा जी का गीत संग्रह ‘अधरों पर ताले’ पढ़ने के बाद यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि उनका व्यक्तित्व, उनकी छवि उस पुलिसिया छवि से अलग है जो एक सामान्य जन के मानस पटल पर प्राय: अंकित रहता है। उनकी सरलता, सहजता और आत्मीयता लोगों को बरबस अपना मित्र बना लेती है। हालांकि श्री राम लखन शर्मा उम्र में मुझसे काफी छोटे हैं फिर भी मैं उन्हें बड़े सम्मान की दृष्टि से देखता हूँ इसका कारण उनकी विभिन्न हिन्दी छन्दों जैसे 26 प्रकार की सवैया, श्रृंगार छन्द, महाश्रृंगार छन्द, पंच चामर छन्द, विधाता छन्द, भुजंग प्रयाग छन्द, छप्पय, दोहा, रोला,कुन्डलियाँ, सरसी छन्द , चौपाई , मधुमालती आदि का न केवल ज्ञान है बल्कि इन सब पर वे अपनी कलम बखूबी चला चुके हैं। वे ग़ज़लें भी बड़े सलीके से कहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि वे गद्य और पद्य लेखन पर समान अधिकार रखते हैं। उनकी गीत और ग़ज़ल की कुछ किताबें प्रकाशित हो चुकी है और कुछ प्रकाशन की कतार में हैं। सबसे खासबात है उनके लेखन की निरन्तरता और यह उनके लेखन की न समाप्त होने वाली भूँख। उनपर माँ वीणा वादिनी ज्ञान की देवी सरस्वती की महती कृपा है जिसके कारण वे साहित्यिक सेवा अपनी लेखिनी के द्वारा कर रहे हैं। कभी कभी मुझे ईर्षा होती है कि माँ सरस्वती ने मुझे रामलखन शर्मा जैसा हर विधा में पारंगत क्यों नहीं बनाया।
प्राय: देखा गया है कि गीतकार गीतों में अपने मूल उद्देश्य से भटक जाता है यहां तक कि एक गीत के प्रत्येक बन्द में एक ही छन्द का प्रयोग न कर दो या तीन छन्द के प्रयोग की गल्ती कर देता है लेकिन राम लखन शर्मा के गीतों में ऐसा नहीं है। मात्रा पतन भी कहीं भी देखने को नहीं मिलता। उनके गीत जहाँ राष्ट्रीयता से ओतप्रोत हैं वहीं आमजन की पीड़ा को भी बयान करते हैं। अंग्रेजी कैलेन्डर से मनाया जाने वाला नव वर्ष जिसे अभिजात्य वर्ग बड़े धूम धाम से मनाता है आम जनता के लिये उसकी सार्थकता पर कवि अपने गीत के माध्यम से व्यंग्यात्मक शैली में प्रश्न खड़े करता है। बन्द देखिये-
अमराई में आई न बौर,
कोयल ने गीत नहीं गाया।
मंजरियों में उत्साह नहीं,
इस अवसर हमको दिखलाया।
अनुरागी मधुपों ने छोड़ा,
फूलों से करना आलिंगन।
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन।।
कुव्यवस्था के ख़िलाफ़ गीत का एक बन्द देखें-
सहमी सी आँगन की तुलसी,
नागफनी खुशहाल।
कदम कदम पर लोग चल रहे,
शकुनी वाली चाल।।
अंधे बहरों का है शासन,
सुनता किसकी कौन।
दुनिया की आधी आबादी,
इसीलिए है मौन।
पंडित के अधरों पर ताले
मूर्ख बजाते गाल।
कदम कदम पर लोग चल रहे
शकुनी वाली चाल।।
जन जीवन में बहुत अधिक आपाधापी मारामारी है। आदमी दुखों के बोझ से दबा हुआ है। बेरोजगार नवयुवकों में निराशा छाई हुई है। कवि ने उनका वर्णन एक गीत के माध्यम से किया है।
सूरज को तम ने आ घेरा,
कैसे होगा भला सबेरा।
आशाओं के युग बीते हैं,
पनघट पर भी घट रीते हैं।
जिनके अपने निर्णायक हैं,
सारे खेल वही जीते हैं।
कुछ ऐसे तत्वों ने आकर,
पथ पर जमा लिया है डेरा।
कैसे होगा भला सबेरा।।
लेकिन गीतकार इसी गीत के अंतिम बंद में निराशा से निकलकर आशा की ओर जाने का मार्ग भी बताता है।
बन्द देखिये-
व्याकुल सारी दिखें दिशायें,
आओ इनका दर्द मिटायें।
कदम बढ़ाने से पहले हम,
बुझे हुये कुछ दीप जलायें।
जब ये दीपक रोशन होंगे,
तब होगा कुछ दूर अँधेरा।
कैसे होगा भला सबेरा।।
इसी क्रम में एक गीत का बन्द देखें-
विवश और लाचार सामने,
दिखता कोई दीना हो।
जिसके हिस्से का सूरज तक,
अँधियारों ने छीना हो।।
जहाँ अभावों में जीवन की,
यति, गति , लय तक खो जाती।
वहाँ किसी के कभी समझ में,
कोई युक्ति नहीं आती।
बिना सुई धागे के जब ये,
झीनी चादर सीना हो।
इस प्रकार सुन्दर आवरण के साथ साठ गीतों से सजी सँवरी यह किताब पाठक को अंत तक पढ़ने पर विवश करती है। सभी गीत प्रभावशाली और सार्थक हैं। पुस्तक संग्रहणीय है।
गीतकार से मोबाइल नंबर 7049110681 पर बात कर पुस्तक सहजता से प्राप्त किया जा सकता है।
पुस्तक का नाम – अधरों पर ताले
गीतकार – राम लखन शर्मा ‘अंकित’
प्रकाशक – अयन प्रकाशन, उत्तमनगर नई
दिल्ली-110059
समीक्षक- राम अवध विश्वकर्मा ग्वालियर
मो. 9479328400

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