उत्तराखंडमुशायरा/कवि सम्मेलनसाहित्य

मुन्नीबाई के दीवाने थे दाग

    मशहूर शायर दाग़ देहलवी जितने शायराना थे उतने ही आशिकाना भी। मुन्नीबाई हिजाब नाम की गायिका-तवायफ से दाग़ के इश्क़ का किस्सा मशहूर है। दाग़ का यह इश्क़ आशिक़ाना कम था शायराना आधिक। हुआ यूं था कि दाग़ उस वक्त आधी सदी से अधिक उम्र जी चुके थे, जबकि मुन्नीबाई हर महफिल में जान-ए- महफिल होने का जश्न मना रही थी।

 

अपने इस इश्क़ को उन्होंने ‘फ़रयादे दाग़’ में मजे के साथ दोहराया है। मुन्नीबाई से दाग़ का यह लगाव जहां रंगीन था वहीं थोड़ा संगीन भी था। दाग़ उनके हुस्न पर कुर्बान थे और वह नवाब रामपुर के छोटे भाई हैदरअली की दौलत पर मेहरबान थी। रामपुर में हैदरअली को रक़ीब बनाकर  रामपुर में दाग़ का रहना मुश्किल था।

तीर-ए-नज़र का घायल है

मगर दिल फिर दिल था, वह हिजाब का घायल था। प्रेम ने ज्यादा सताया तो उन्होंने हैदरअली तक अपना पैग़ाम भिजवा दिया। पैग़ाम कुछ इस तरह था-

 

दाग़ हिजाब के तीर-ए-नज़र का घायल है

आपके दिल बहलाने के और भी सामान हैं

लेकिन दाग़ बेचारा हिजाब को न पाये तो कहां जाये ?

दाग़ के ख़त का जवाब

नवाब हैदरअली ने दाग़ की इस गुस्ताखी को न सिर्फ माफ़ किया, उनके ख़त का जवाब ख़ुद मुन्नीबाई उन तक लेकर आईं। उनका  जवाब था, ‘’ दाग़ साहब, आपकी शायरी से ज्यादा हमें मुन्नीबाई अज़ीज नहीं है।”

 

सबसे तुम अच्छे हो तुमसे मेरी किस्मत अच्छी,

ये ही कमबख़्त दिखा देती है सूरत अच्छी ।

मुन्नीबाई का जाना

मुन्नीबाई एक डेरेदार तवायफ़ थी। उनके पास अभी उम्र की पूंजी भी थी और रूप का ख़जाना भी था। वह घर की चारदीवारी में सीमित होकर पचास से आगे निकलती हुई ग़ज़ल का विषय बनकर नहीं रह सकती थीं। वह दाग़ के पास आयीं लेकिन जल्द ही उन्हें छोड़कर वापस कलकत्ते के बाज़ार की ज़ीनत बन गईं।

साभार : दाग़ देहलवी, ग़ज़ल का एक स्कूल, निदा फ़ाज़ली (वाणी प्रकाशन)

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