इको सेंसिटिव जोन से छेड़छाड़ का नतीजा है धराली आपदा
- उत्तरकाशी जिले का धराली क्षेत्र भागीरथी पारिस्थितिक-संवेदनशील क्षेत्र में है स्थित, वर्ष 2012 में गौमुख से उत्तरकाशी तक 135 किमी क्षेत्र को अधिसूचना में किया था शामिल, वर्ष 2018 में अधिसूचना में संशोधन के बाद इस संवेदनशील क्षेत्र में होने लगी अनियमित गतिविधियां

देहरादून : उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के जिस क्षेत्र यानी धराली में आपदा आई है, वो क्षेत्र भागीरथी पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 18 दिसंबर 2012 को गौमुख से उत्तरकाशी तक करीब 4179.59 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भागीरथी इको सेंसिटिव जोन घोषित करने की अधिसूचना जारी की थी, लेकिन साल 2018 में अधिसूचना में संशोधन किया गया। जिसके बाद इस संवेदनशील क्षेत्र में अनियमित गतिविधियां होने लगीं, जिसका नतीजा है कि इस क्षेत्र में प्राकृतिक घटना ने भयंकर आपदा का रूप ले लिया।
उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं। खासकर मॉनसून सीजन के दौरान भारी बारिश के कारण प्रदेश के तमाम क्षेत्रों की स्थितियां काफी गंभीर हो जाती है। हालांकि, वैज्ञानिक शुरू से ही इस आपदा की वजह मानव जनित मानते रहे हैं, क्योंकि जो क्षेत्र संवेदनशील है, उन क्षेत्रों की संवेदनशीलता को दरकिनार कर डेवलपमेंट के कार्य किया जा रहे हैं, जो आने वाले समय में एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
कुछ साल पहले जोशीमठ में भी भू-धंसाव का एक बड़ा मामला सामने आया था, जिस दौरान वैज्ञानिकों ने इस बात पर जोर दिया था कि भू-धंसाव की मुख्य वजह यही है कि जोशीमठ शहर में अनियंत्रित तरीके से डेवलपमेंट के कार्य किए गए हैं।
भागीरथी इको सेंसिटिव जोन की निगरानी समिति: अब उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में बादल फटने की वजह से बनी आपदा की स्थिति भी मानव जनित मानी जा रही है। उत्तरकाशी का ये क्षेत्र पहले से ही संवेदनशील है, जिसके चलते वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने साल 2012 में गंगोत्री से उत्तरकाशी तक के इस क्षेत्र को भागीरथी इको सेंसिटिव जोन घोषित करते हुए अधिसूचना जारी की थी। निगरानी समिति की सदस्य मल्लिका भनोट ने बताया, साल 2006 में भागीरथी और गंगा नदी के तट पर तीन जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी. लेकिन इन तीनों जल विद्युत परियोजनाओं के खिलाफ स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध किया था. जिसके चलते केंद्र सरकार ने तीनों जल विद्युत परियोजनाओं को रद्द कर दिया था. साथ ही केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र को पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र भी घोषित करने का निर्णय लिया, जिसके तहत, केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में दिए गए प्रावधानों के तहत गोमुख से उत्तरकाशी तक करीब 4179.59 वर्ग किलोमीटर (करीब 135 किलोमीटर) क्षेत्र को भागीरथी इको सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया। साथ ही केंद्र सरकार ने 18 दिसंबर 2012 को भागीरथी इको सेंसिटिव जोन की अधिसूचना भी जारी कर दी।
भारत सरकार के इस निर्णय के बाद उत्तराखंड में तमाम विपक्षी नेताओं ने अपनी आपत्ति जताते हुए इसे विकास विरोधी बताया था. इसके बाद उत्तराखंड सरकार ने संवेदनशील घोषित क्षेत्र में विकास के लिए एक क्षेत्रीय मास्टर प्लान बनाने का निर्णय लिया था। ताकि स्थानीय लोगों के अधिकारों और विशेषाधिकारों को बिना प्रभावित किए बुनियादी ढांचे के विकास की गति को बरकरार रखा जा सके।
2018 में अधिसूचना पर संशोधन किया गया: साल 2012 में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी की गई अधिसूचना में साल 2018 में संशोधन किया गया। इस संशोधन में इस बात का जिक्र किया गया कि भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में पर्यावरण संरक्षण को बनाते हुए विकास को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों को अनुमति देने की मांग की गई है, जिसके चलते पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन करने के साथ ही राज्य सरकार ने जनहित और राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए नागरिक सुविधाओं और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास समेत अन्य स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने का निर्णय लिया. जिसके दृष्टिगत भूमि उपयोग परिवर्तन को मंजूरी दी गई है। इसके साथ ही स्थानीय लोगों को सुविधा देने के लिए भागीरथी इको सेंसिटिव क्षेत्रों में पहाड़ियों के काटने और असाधारण मामलों में खड़ी ढलानों पर भी निर्माण की अनुमति दी गई।
ऑलवेदर रोड भी रही मुख्य वजह: इसके साथ ही अधिसूचना में संशोधन करने की एक मुख्य वजह चारधाम ऑलवेदर रोड भी था। ऐसे में 17 जुलाई 2020 को पर्यावरण मंत्रालय ने गोमुख से उत्तरकाशी तक पहले करीब 135 किलोमीटर क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए क्षेत्रीय मास्टर प्लान को भी मंजूरी दे दी। इसकी मुख्य वजह यही थी कि भागीरथी पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र का संरक्षण करने के साथ ही इस क्षेत्र में विकास गतिविधियां शुरू की जा सके। साथ ही चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना भी धरातल पर उतर सके। उत्तराखंड सरकार के इस मंजूरी यानी भारत सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में संशोधन किए जाने के बाद भागीरथी पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों में विकास की बाढ़ सी आ गई।
हालांकि, जब उत्तराखंड चारधाम ऑल वेदर रोड के परियोजना का कार्य शुरू हुआ तो उस दौरान भागीरथी पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के संरक्षण का मामला काफी अधिक चर्चाओं में रहा, क्योंकि उस दौरान तमाम पर्यावरण प्रेमियों ने इसका विरोध किया था। उस दौरान यह बातें सामने आई थीं कि ऑलवेदर रोड का हिस्सा भागीरथी पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में भी आ रहा है।
मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा और तमाम सुनवाई और दलीलों के बाद फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना को मंजूरी दे दी। इसके बाद ऑलवेदर रोड के निर्माण कार्य ने रफ्तार पकड़ी और वर्तमान समय में ऑलवेदर रोड का काम पूरा हो चुका है।
इको सेंसिटिव जोन में आने वाला क्षेत्र: अगोड़ा, भटवाड़ी, धराली, गंगोत्री, ग्वाना, जादुंग, मनेरी, मुखबा, नलांग, पाला मनेरी, सारी, जोशियाड़ा, कुरोली, सुख्खी, उत्तरकाशी और हर्षिल समेत 89 गांव शामिल हैं।