उत्तराखंडकाम की खबर

अतुल के बहाने उत्तराखंड की दशा और दिशा पर मंथन 

- दून लाईब्रेरी में जनकवि डॉ. अतुल शर्मा पर डाक्यूमेंट्री फिल्म का प्रदर्शन और उत्तराखंड राज्य पर बातचीत

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सभागार में मंगलवार सायं जनकवि डॉ. अतुल शर्मा के व्यक्तित्व व कृतित्व पर केंद्रित एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बंजारा जनकवि डॉ. अतुल शर्मा प्रदर्शित की गई। इसका निर्देशन सुशील यादव ने और सम्पादन शान्तनु ममगाईं ने किया है। इसके बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलन का निर्णायक मोड़ व उत्तराखंड राज्य: वर्तमान और भविष्य पर एक चर्चा आयोजित हुई इसमें मुख्य वक्ता रविन्द्र जुगरान व वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र नेगी रहे।

   कवयित्री रंजना शर्मा ने बताया कि इस डाक्यूमेंट्री फिल्म डॉ. अतुल शर्मा की दिनचर्या में सामाजिक प्रतिबद्ध चेतना दर्शाती है। साहित्य में वैचारिक परिक्वता जनगीतों के माध्यम से सामने आयीं। सामाजिक कार्यकर्ता रविन्द्र जुगरान ने कहा कि जनकवि के रूप में डॉ. अतुल शर्मा ने इस डाक्यूमेंट्री फिल्म में नदी और पर्वतीय जनजीवन की ज़रूरतों पर भी विचार व्यक्त किए हैं।

डाक्यूमेंट्री फिल्म के निर्देशक सुशील यादव ने कहा कि यह फिल्म एक वर्ष में तैयार हुई है। देहरादून ऋषिकेश खलंगा दून लाईब्रेरी में इसकी शूटिंग की गई है, जिसमें डॉ. अतुल की सहजता उभर कर सामने आयी है। डॉ. शर्मा की पचास साल की साहित्य साधना को आधे घंटे में बांधना एक चुनौती रही। साहित्य को सरलता और संघर्ष के साथ जीना ही उनकी कला है।

   इसके बाद उत्तराखंड राज्य: वर्तमान और भविष्य पर एक विशेष चर्चा की गई। मुख्य वक्ता रविन्द्र जुगरान और  उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के सांस्कृतिक परिदृश्य पर वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र नेगी ने सवाल पूछे। उत्तराखण्ड की दिशा और दशा पर गहन चर्चा की। रविन्द्र जुगरान ने कहा कि रामपुर तिराहा कांड उत्तराखंड आन्दोलन का महत्वपूर्ण मोड़ था। उन्होंने उस वक्त का आंखों देखा हाल भी सुनाया। उन्होंने कहा कि यह अफसोस की बात है कि अभी तक आन्दोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड नहीं बन पाया है। सत्ता बदलती रहीं पर हालात नहीं बदले। आज हमें मिलकर भ्रष्टाचार और अवसरवादिता के विरुद्ध आवाज उठानी होगी और एक खुशहाल राज्य की ओर अग्रसर होना होगा।

  जनकवि डॉ. अतुल शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड राज्य आन्दोलन ने उनके लिखे जनगीत लड़ के लेंगे उत्तराखंड में पांच बातों पर बल दिया गया था, पानी, पलायन, पर्यावरण, पहचान व पर्यटन। आज भी वह इस उत्तर की तलाश में है। उन्होंने इस जनगीत की पंक्ति सुनाई नदी पास है मगर ये पानी दूर दूर क्यों।

  इससे पहले दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोगाम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने सभागार में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया और कहा कि डॉ. शर्मा पर बनी यह डाक्यूमेंट्री पहाड़ों में हुई घटनाओं की कविता का एक दस्तावेज है।

कार्यक्रम के अंत में सुशील यादव ने जनकवि डॉ. अतुल शर्मा का लिखा जनगीत अपनी राह कबीलों वाली जाये सभी के द्वारे, हम बंजारे गाया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लेखक आन्दोलनकारी, कवि, समाजसेवी और बुद्धिजीवी मौजूद रहे।

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