
♥कवि , कथाकार , यायावर और ‘ किरसा ‘ पत्रिका के संपादक सतीश छिम्पा मूलतः रोमांटिक भावबोध और उसके साथ मार्क्सवादी विचारधारा के कवि हैं , इनकी रचनाओं में आए कलाबोध के अतिरिक्त विचारबोध और इतिहासबोध ने उन्हें रोमांस से रियलिटी की ओर अग्रसर किया ।
इसके चलते कवि सतीश छिम्पा केवल ‘ राग ‘ के ही नहीं ,बल्कि ‘ आग ‘ के और दूसरे शब्दों में कहूँ तो सिर्फ़ ‘ प्रीत ‘ के ही नहीं,वरन ‘ जीत ‘ के कवि भी बनते चले गए ।
कवि के अब तक तीन कविता – संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं :
1.लिखूंगा तुम्हारी कथा
2.लहू उबलता रहेगा ।
3.आधी रात की प्रार्थना
इनके अलावा सतीश छिम्पा के राजस्थानी और हिंदी में कविता , कहानी , उपन्यास एवं डायरी के अंश भी प्रकाशित हैं।
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शाइरी की तरह इनकी कविताई भी रोमांस से रियलिटी और रियलिटी से रोमांस में आवाजाही करती है। जिसके परिणामस्वरूप इनकी कविताओं में
‘ महबूब की मुहब्बत ‘ और ‘ सामाजिक – सियासी ‘ सरोकार हमराही और हमसफ़र बन सके हैं ।
यहाँ यह उल्लेखनीय होगा कि प्रगतिशीलों के लिए प्रेम – प्रीत को वर्जित क्षेत्र मानने की भूल होती रही है । परंतु हम यह क्यों भूल जाते हैं कि प्रेम ही जीवन का आधार है।
यह माना कि अभी मौसम प्रेम के अनुकूल नहीं है , फिर भी हमारी प्रगतिशील प्रबुद्धता अनुकूल मौसम को हासिल करने की जद्दोजहद ही तो है। बहरहाल ।
सतीश छिम्पा ऐसे कवि का नाम है जो राग और आग से एक साथ मुख़ातिब होते हैं ।
‘लिखूंगा तुम्हारी कथा’ की प्रेम कविताओं में कवि सतीश कहते हैं :
कर जाती हो
हरा
मुझ सूखे
ठूंठ को ।
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जब प्रेम पक जाता है तो वही सोने जैसा प्रेम कुंदन सरीखा पाक़ – साफ़ हो कर मातृत्व भाव तक की यात्रा करता है :
मैं हर बार
तुम्हारी कथा लिखूंगा
उतरूंगा
तुम्हारे जीवन में
पहुँचूँगा वहाँ
जहाँ बची रहेगी रोशनी
प्यार में गुंथी
तुम्हारी मातृत्व भावनाएँ
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एक बात ओर । युवा कवि सतीश छिम्पा को प्रिय के समान ही अपनी धरती , अपने लोग प्रिय लगते हैं ।
लगभग यही संवेदना उनकी ‘ तुम होती हो सिर्फ़ कविता ‘ शीर्षक कविता में व्यक्त हुई है।
जहाँ प्रकृति , प्रेम , प्रेयसी सब मिलकर एक हो जाते हैं -‘ प्यार से धरती पर लेटा / तुम्हारी गोद में लेटे जैसा है । ‘
दिलचस्प बात यह है कि छिम्पा की कविताओं का बीज शब्द ‘ धरती ‘ ही है।
जब यह कवि जीवन – यथार्थ यानी कि रियलिटी की ओर बढ़ता है तब कविता का स्वर , मूड , मिज़ाज सब बदल जाते हैं।
‘ आधी रात की प्रार्थना ‘ कविता में सतीश कहते हैं :
आधी रात के बाद
इस समय जब मैं
थार को लांघ कर अरावली में घुस चुका हूँ
…..अँधेरा बहुत गाढ़ा है जैसे डूंगरपुर की अरावली हो और
मैं थका हुआ
इस सफ़र के कभी न ख़त्म होने की प्रार्थना कर रहा हूँ ।
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कवि वर्षों से चली आ रही व्यवस्था से पूरी तरह असन्तुष्ट है ।
इसलिए वह इसे सिरे से खारिज़ कर आमूलचूल
परिवर्तन का आकांक्षी है । वह कहता है :
कुत्तों का तंत्र
मरा हुआ जनतंत्र
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आग और जीत के हिमायती कवि सतीश छिम्पा ‘ सड़े हुए समाज के मरे हुए इंसानों के नाम ‘ अपनी कविता में लिखते हैं :
मरे हुए लोग
ज़िंदा नहीं हो सकते
हम कोशिश भी
नहीं कर रहे हैं …..
युद्धों के इस दौर में शामिल होइए
और अपने हक़ों को छीनिये ।
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कवि सतीश का यह मानना है कि कवि को भी किसी मुग़ालते में नहीं रहना चाहिए । कोई कविता मजदूर के पसीने से महान नहीं है।
वो मुखराम के रेवड़ की भेड़ की तरह आम है।
कवि प्रतिकार की आग में दहकता हुआ कहता है :
अब लूँगा मैं तुझसे अपनी सूनी रातों के उजड़े ख़्वाबों का हिसाब , क्यों कि
अब मैंने गाँधी की लाश पर चढ़
अहिंसा के पार खड़ी हिंसा से
हाथ मिला लिया है।
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जब दिल्ली के मजदूरों पर लाठीचार्ज हुआ तब कवि ने लिखा :
ग़लत के ख़िलाफ़ चुप रहना खतरनाक है। आने वाली पीढ़ियां पूछेंगी जब ये हो रहाथा
तब तुम क्या कर रहे थे !
इसलिए कवि का उम्मीदों से भरा यह आह्वान है कि :
हर शै पर छाए …….
अँधेरे की छाती फाड़ कर एक दिन उगेगा लाल सूरज ।
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हमें इस युवा कवि से भविष्य में और अधिक श्रेष्ठ सृजन की अपेक्षा है ।
फ़िलवक्त बस इतना ही।
– डॉ. रमाकांत शर्मा
94144 10367