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‘समाज के कई चेहरे दिखाती हैं डॉ. विद्या सिंह की लघुकथाएं’

दून पुस्तकालय में हुआ डॉ.विद्या सिंह के लघुकथा संग्रह ‘ढाई कमरे‘ का विमोचन

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से गुरुवार को संस्थान के सभागार में सुपरिचित साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ. विद्या सिंह के सद्य प्रकाशित लघु कथा संग्रह ढाई कमरे का लोकार्पण किया गया। इस मौके पर लघु कथा संग्रह पर सार्थक चर्चा की गई। वक्ताओं का कहना था कि डॉ. विद्या सिंह की लघुकथाएं समाज के तमाम चेहरे को दिखाती हैं। मूल रूप से यह लघु कहानियां समाज में विद्यमान अंधविश्वास, कुरीतियों कुप्रथाओं के साथ ही विषमता, शोषण, क्रूरता, अमानवीयता पर कड़ा प्रहार करती हुई दिखायी देती हैं।

यह सभी लघु कथाएं एक तरह से समकालीन समाज के विविध परिवेश और पारिवारिक स्थितियों को साफ तौर पर रेखांकित करती हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. सुधारानी पाण्डे ने की। मंचासीन अतिथि के रूप विख्यात नवगीतकार श्री असीम शुक्ल, पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. सविता मोहन मौजूद रहे। जबकि अतिथि वक्ताओं के तौर पर विचारक व राजकीय महाविद्यालय सुद्धोवाला के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. धीरेन्द्र नाथ तिवारी, साहित्यकार और डीएवी कालेज के प्रोफेसर राजेश पाल तथा कवि चन्द्र नाथ मिश्रा मौजूद रहे। कार्यक्रम में उपस्थित वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में लघु कथा संग्रह ढाई कमरे पर सार्थक विमर्श किया। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार शिव मोहन सिंह ने किया।


कार्यक्रम की कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. सुधारानी पाण्डे ने कथाकार को बधाई देते हुए कहा कि डॉ विद्या सिंह के लघु कथा संग्रह ढाई कमरे की कहानियां लघु कथा विधा की श्रेष्ठतम रचनाएं हैं। आकार में लघु होने के बाद भी ये कथाएं अपने समकालीन पाठकों के बहुत नजदीक हैं। डॉ. विद्या सिंह की सभी कथाएं समकालीन समाज के विभिन्न चित्रों विशेष रूप से नारी जगत की वर्तमान स्थिति को रेखांकित करती सशक्त कहानियां हैं। सरल सहज भाषा और प्रवाह के साथ जीवन के भोगे हुए यथार्थ की सशक्त कहानियां हैं। डॉ. तिवारी ने कहा कि साहित्यकार का काम समाधान देना नहीं, बल्कि पाठक को द्वंद्व में डालना है।
वरिष्ठ साहित्यकार असीम शुक्ल ने कहा कि मूल्यों के समकक्ष मनःचेतना को रखते हैं तो बरबस ही अभिव्यक्ति की आवश्यकता अनुभव होने लगती है और लघुता पूर्वक विराट मूल्य की प्रतिष्ठा की स्थिति का परिवेश बन जाता है, जैसा कि विद्या जी की अनेक लघुकथाओं से परिलक्षित हो रहा है। इसके अतिरिक्त मैं यह आवश्यकता और अनुभव करता हूं कि लघुकथा के माध्यम से मूल्य की प्रतिष्ठा और विस्तार का दायित्व लेखक से अधिक पाठक का हो जाता है।
शिक्षाविद डॉ. सविता मोहन ने कहा कि लेखिका की कथात्मक निष्ठा प्रशंसनीय है। दरअसल लघुकथाएं जीवन के समय, मन की व्यथा व प्रसन्नता के प्रभाव को सूक्ष्म रूप में व्यक्त करती हैं। सशक्त कथातत्व के साथ कम शब्दों में मन पर पड़े प्रभाव को कह देना सशक्त कथाकार ही कर सकता है। ढाई कमरे पुस्तक को पढ़कर यह स्पष्ट है कि डॉ विद्या सिंह एक श्रेष्ठ शब्द शिल्पी हैं। उनके ढाई कमरे की सभी कथाएं स्त्री मन की अलग-अलग तस्वीरें प्रदर्शित करती हैं।
अतिथि वक्ताओं में डॉ. धीरेन्द्र नाथ तिवारी ने ‘ढाई कमरे‘ लघुकथा संग्रह को मध्यवर्गीय जीवन के नाना प्रसंगों को एक आधुनिक नज़रिए से देखने की कोशिश बताया और कहा कि यह कथाएँ, पढ़े लिखे समाज में स्त्रियों और दलितों के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण कोे भी सामने लाती हैं। वहीं कवि चन्द्रनाथ मिश्रा ने इन लघु कथाओं को मानव जीवन की उष्मा से ओतप्रोत बताया। कहा कि विभिन्न पात्रों के माध्यम से मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं और संवेदनाओं को व्यक्त करती यह लघु कथाए दिलचस्प और पठनीय हैं।
साहित्यकार राजेश पाल ने कहा कि ढाई कमरे की लघु कथाएं संस्मरणात्मक शैली में लिखी गई हैं, जो पाठकों में संवेदनाएं एवं जिज्ञासा जगाती हैं। इनमें तार्किकता पर भावनात्मक आदर्शवाद ज्यादा प्रबल दिखाई देता है। ये लघु कथाएं रोजमर्रा के जीवन से अनचिन्हे विषय और संदर्भ उठाती है अतः अपनी पठनीयता एवं रोचकता बनाए रखने में सफल है। कुल मिलाकर ये लघु कथाएं सामाजिक विसंगतियों और मानवीय संबंधों के अंतर्द्वंद की परतें खोलती है।
कथा संग्रह की लेखिका विद्या सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता के कई दशक बीत जाने पर भी हमारा समाज अंधविश्वासों, कुरीतियों और कुप्रथाओं से ग्रस्त है। साहित्य सदैव इन समस्याओं को अपने लेखन में उजागर करता रहा है। लघु कलेवर और प्रभावात्मकता की वजह से लघुकथाएं मुझे सदैव आकृष्ट करती रहीं, अतः सामाजिक विसंगतियों के प्रति अपना प्रतिरोध दर्ज़ करने के लिए मैंने इस विधा का चयन किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर जनकवि डॉ. अतुल शर्मा, शादाब मशहदी, डॉ. रामविनय सिंह, डॉली डबराल, सुरेंद्र सिंह सजवाण, कृष्णा खुराना, डॉ.सत्यानन्द बडोनी, हर्षमणि भट्ट कमल, मनमोहन चड्ढा, कुसुम भट्ट,, नीता कुकरेती, गुरुदीप खुराना, डी.एन.भटकोटी, मंजू काला, तन्मय ममगाईं, भारती पांडे, संगीता शाह, माहेश्वरी कनेरी, कल्पना बहुगुणा, रमाकांत बेंजवाल, मणि अग्रवाल मणिका, कविता बिष्ट, वंदिता, आभा सक्सेना, अर्चना डिमरी, कांता डंगवाल, मनोज पंजानी, सत्यप्रकाश शर्मा, रजनीश त्रिवेदी, प्रो. उषा झा, दर्द गढ़वाली, सुंदर सिंह बिष्ट, वीरेन्द्र डंगवाल, बीना बेंजवाल, दयानन्द अरोड़ा आदि मौजूद थे।

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