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दिल्ली में भाजपा की धमाकेदार वापसी, केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठे

नई दिल्ली: दिल्ली की सत्ता में भाजपा की 27 साल बाद धमाकेदार वापसी हुई है। भाजपा की इस जीत ने केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य पर ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा कर दिया है। जो आम आदमी पार्टी 2013 से सत्ता पर काबिज थी, जो अरविंद केजरीवाल चुनाव दर चुनाव अजय बनते जा रहे थे, अब मोदी ब्रिगेड ने उन्हें हरा दिया है। एक ऐसी करारी शिकस्त दी गई है जिससे उभर पाना आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल के लिए काफी मुश्किल रहने वाला है।
इस बार के चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली में दो तिहाई बहुमत हासिल करते हुए 48 सीटें जीत ली हैं, वही आम आदमी पार्टी महज 22 सीटों पर सिमट चुकी है। कांग्रेस ने उम्मीद के मुताबिक तीसरी बार भी अपना खाता नहीं खोला है। अब बीजेपी के जीत के कारण सभी को पता हैं, आम आदमी पार्टी की हार की समीक्षा भी हो चुकी है। लेकिन एक सवाल सभी के जहन में लगातार आ रहा है- आम आदमी पार्टी का भविष्य क्या होगा? अरविंद केजरीवाल का भविष्य क्या होगा? क्या आम आदमी पार्टी फिर से वापसी कर सकती है? क्या अरविंद केजरीवाल फिर राष्ट्रीय पटल पर जीत की पटकथा लिख सकते हैं?
अब राजनीति में वैसे तो कुछ भी नामुमकिन नहीं होता और वैसे भी कई नेता ऐसे ही हार के बाद वापसी कर दिखा चुके हैं। लेकिन अरविंद केजरीवाल के सामने चुनौतियां अनेक हैं, ये चुनौतियां ही उनकी वापसी पर, आम आदमी पार्टी के भविष्य पर एक प्रश्न चिन्ह लगा रही हैं।
विचारधारा का आभाव AAP की चुनौती
आप आदमी पार्टी के सामने एक बड़ी चुनौती तो यह है कि उसकी कभी भी कोई विचारधारा नहीं रही। भाजपा अगर हिंदुत्व की विचारधारा के साथ बीजेपी आगे बढ़ती रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस खुद को सेकुलर बताकर उस पिच पर खेलने की कोशिश करती है। वही आम आदमी पार्टी तो कांग्रेस को रिप्लेस कर दिल्ली में सत्ता में आई थी, ऐसे में जो कांग्रेस का वोट था, वहीं आम आदमी पार्टी का जनाधार भी बन गया। इसके ऊपर जानकार तो यहां भी कहते हैं कि आम आदमी पार्टी ने खुद को ऐसे सेट किया है कि उसमें राइट और लेफ्ट विंग दोनों के गुण दिखाई पड़ जाते हैं।
लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान यही है कि आम आदमी पार्टी की खुद की एक विचारधारा नहीं बन पा रही है। उसने कहने को खुद को कट्टर ईमानदार बताया, उसने खुद को आम आदमी की राजनीति करने वाला भी कहा, लेकिन अब इन दोनों ही नेरेटिव्स को तगड़ी चोट पहुंच चुकी है। बात अगर कट्टर ईमानदारी की है तो शराब घोटाले की वजह से आम आदमी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। बात अगर ईमानदारी की है तो अरविंद केजरीवाल खुद अपनी सीट से हार चुके हैं। बात अगर कट्टर सच्चाई की है तो मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा में बुरी तरह हारे हैं। ऐसे में विचारधारा के सहारे आम आदमी पार्टी के लिए वापसी करना काफी मुश्किल हो सकता है।
केजरीवाल पर निर्भरता और केजरीवाल की ही हार
आम आदमी पार्टी के भविष्य पर सवाल इस वजह से भी उठ रहे हैं क्योंकि यह पार्टी पूरी तरह एक चेहरे पर निर्भर करती है। आम आदमी पार्टी का जन्म ही अरविंद केजरीवाल के चेहरे के साथ हुआ है और अब जब दिल्ली चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा है तो उसका दोष भी अरविंद केजरीवाल पर मढ़ा जा रहा है, यानी कि उनकी खुद की छवि को सबसे बड़ा नुकसान और आघात पहुंच चुका है। अब इस नुकसान की भरपाई कौन कर सकता है- क्या आम आदमी पार्टी में केजरीवाल का भी कोई विकल्प है? चेहरे कई हो सकते हैं लेकिन अगर किसी और को मौका मिलेगा तो आम आदमी पार्टी में बिखराव का खतरा भी उतना ही ज्यादा बड़ा हो जाएगा। कुछ ऐसी ही स्थिति से इस समय कांग्रेस भी जूझ रही है क्योंकि वहां पर गांधी परिवार के अलावा अगर किसी और के हाथ में पार्टी की बागडोर आ जाती है तो बिखराव का खतरा हमेशा बना रहता है।
दिल्ली मॉडल ध्वस्त, अब क्या नेरेटिव सेट होगा?
अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के भविष्य पर सवाल उठने का कारण यह भी है जिस मॉडल के दम पर राजधानी में पिछले कई सालों से सरकार चलाई जा रही थी, अब उस मॉडल को ही हार का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। असल में अरविंद केजरीवाल जिन फ्रीबीस को अपनी ताकत बता रहे थे, जिसके दम पर वे फिर महिला वोट को एकमुश्त तरीके से हासिल करने का सपना देख रहे थे, अब इस फ्री के दांव ने एक करारी हार का सामना करवा दिया है। इन फ्री की योजनाओं की वजह से दिल्ली दूसरी बुनियादी सुविधाओं से दूर हो चुकी थी, बात चाहे अच्छी सड़कों की हो, बात चाहे यमुना के साफ पानी की हो या फिर बात चाहे अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर की हो, दिल्ली सिर्फ इंतजार करती रह गई।
अब क्योंकि दिल्ली का वह मॉडल हार चुका है, ऐसे में आम आदमी पार्टी उसके सहारे देश के दूसरे राज्यों में कैसे सियासत करेगी या अपने आप में एक बड़ा सवाल है। समझने वाली बात यह भी है आम आदमी पार्टी ने ऐसा कोई दूसरा मॉडल तैयार भी नहीं किया जिसे वो अपना नया विकल्प बना सके, ऐसे भी आम आदमी पार्टी किस आधार पर खुद को अब कट्टर ईमानदार बताएगी, आखिर किस आधार पर अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेंगे, अगर समय रहते इन सवालों का जवाब नहीं मिला, अस्तित्व का संकट बड़ा हो जाएगा।
इंडिया गठबंधन में कम हुआ केजरीवाल का कद
आम आदमी पार्टी के लिए राह तो अब इंडिया गठबंधन में भी मुश्किल हो जाएगी। अब तक तो महाराष्ट्र-हरियाणा हार की वजह से सिर्फ कांग्रेस को निशाने पर लिया जा रहा था, लेकिन अब आम आदमी पार्टी भी उसी निशाने पर आ जाएगी। अब समझने वाली बात यह है कि कांग्रेस के पास तो एक मजबूत हाईकमान है, पूरे देश में संगठन है, उसके दम पर वो हर स्थिति में अपनी अकड़ भी दिखा सकती है और बड़े फैसले भी ले सकती है। इसी वजह से इतने चुनाव हारने के बाद भी कोई राहुल गांधी के खिलाफ नहीं बोलता है, कोई कांग्रेस की लीडरशिप को उस तरह से सवालों में नहीं लाता है। लेकिन अरविंद केजरीवाल को यह रियायत नहीं मिलने वाली है। पहले तो उनका संगठन सिर्फ दिल्ली और पंजाब तक सीमित चल रहा है, इसके ऊपर केजरीवाल ने जैसी राजनीति की है, वहां उन्होंने इंडिया गठबंधन के ज्यादातर नेताओं को समय-समय पर कोसा है, भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।
ऐसे में उन्हें उठने का मौका इंडिया गठबंधन का कोई नेता देना चाहेगा, मुश्किल लगता है। इसी वजह से कहा जा रहा है कि यहां सिर्फ दिल्ली नहीं गंवाई गई है, राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्वीकृति को भी कम कर दिया गया है।
दिल्ली में दिखा ट्रेलर, पंजाब में पूरी फिल्म?
यह दिल्ली हार अरविंद केजरीवाल को इसलिए भी काफी चुभने वाली है क्योंकि पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की हालत ज्यादा अच्छी नहीं मानी जा रही। वहां पर भी विपक्ष हमलावर है, वहां भी मुफ्त वाली योजनाएं ही अब सवालों के घेरे में आ चुकी हैं, बीजेपी ने तो लंबे समय से नेरेटिव सेट कर रखा है कि महिलाओं को अभी तक महीने के अंत वाले पैसे मिले ही नहीं हैं। इसी तरह दूसरे कई वादों पर भी अभी तक आम आदमी पार्टी पंजाब में वो काम नहीं कर पाई जिसकी उम्मीद थी। भगवंत मान भी समय-समय पर विवादों में फंसते रहते हैं, केजरीवाल का शीशमहल तो उनका रहने का अंदाज विपक्ष के निशाने पर आ जाता है। ऐसे में दिल्ली के बाद अगर आम आदमी पार्टी को पंजाब में भी झटका लगा, उसका हाल बेहाल हो जाएगा।(साभार जनसत्ता)

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