विशेषज्ञों ने पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत पर किया मंथन
दून लाइब्रेरी में विरासत की सुदृढ़ता : चिरंतन विकास की संस्कृति" विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी शुरू

देहरादून: भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट इंटच और दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में दून पुस्तकालय के सभागार में “विरासत की सुदृढ़ता : चिरंतन विकास की संस्कृति” विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी में शिक्षाविदों, प्रोफ़ेसनल व्यक्तियों और नागरिक समाज को संरक्षण की उभरती प्रथाओं पर विचार करने के लिए एक साथ लाया गया, जिसमें विरासत के क्षेत्र में अद्वितीय चुनौतियों और अवसरों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अपने-अपने क्षेत्रों के शीर्ष विशेषज्ञ हैं। इंटैक उत्तराखंड की सह-संयोजक अंजलि भरतहरी ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज में इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वसुधा पांडे, वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की पर्यावरण अर्थशास्त्री प्रोफेसर मधु वर्मा, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय की रणनीतिक डॉ. कविता तिवारी, रिस्पॉन्सिबल टूरिज्म सोसाइटी ऑफ इंडिया के श्री रोमझुम लहरी, WRI इंडिया में शहरी विकास की एसोसिएट निदेशक प्रेरणा मेहता, उत्तराखंड सरकार के वाटरशेड प्रबंधन निदेशालय की परियोजना निदेशक नीना ग्रेवाल, वास्तुकार और परिवहन योजनाकार अमित सिंह बघेल, वास्तुकार, शहरी डिजाइनर और शिक्षक प्रो. तपन के चक्रवर्ती मुख्य वक्ता हैं जो अपने विषयों पर विस्तार से चर्चा की।
सुबह के प्रथम सत्र में इतिहासकार एवं एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. वसुधा पांडे ने पहाड़ की कथाओं को विरासत से जोड़ते हुए हिमालयी सांस्कृतिक विरासत और इतिहास पर व्यापक प्रकाश डाला। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. बी के जोशी, संस्थापक अध्यक्ष दून लाइब्रेरी एवं रिसर्च सेंटर ने की। चर्चा में विभा पुरी दास,पूर्व प्रमुख सचिव, इंदु कुमार पांडे, पूर्व मुख्य सचिव, मनोज सक्सेना, अधीक्षक पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रहे.
दूसरा सत्र उत्तराखंड की वन संसाधन का आर्थिक मूल्यांकन: संरक्षण और पर्यावरण वित्त पर केंद्रित था। इस पर प्रो. मधु वर्मा, वरिष्ठ आर्थिक सलाहकार और मुख्य पर्यावरण अर्थशास्त्री, आईओआरए ने अपना वक्तव्य दिया और वन संसाधन के महत्व व उसकी उपयोगिता के अनेक बिंदुओं को रेखांकित किया. इस स्तर का संचालन डॉ. विशाल सिंह, कार्यकारी निदेशक, सिडार ने किया और चर्चा में डॉ. धनंजय मोहन, पीसीसीफ, उत्तराखंड वन विभाग,प्रो. सरनाम सिंह, पूर्व डीन, आईआईआरएस और इसरो,डॉ. जस्टस जोशुआ, निदेशक, ग्रीन फ्यूचर फाउंडेशन रहे। इस सत्र में पांडव नृत्य पर लघु फिल्म और दरबार साहिब पर पीपटी प्रस्तुति भी दीं गयी।
तीसरा सत्र ग्रामीण स्मार्ट ग्राम्य केंद्र: पलायन समस्या का समाधान रहा इसमें कविता तिवारी, आरएसवीसी, सलाहकार, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय, भारत सरकार ने ऑन लाइन माध्यम से इस महत्वपूर्ण विषय पर अपना वक्तव्य दिया. इसमें श्री पूरन बर्त्वाल, प्रमुख, पीएसआई ने भी अपने विचार दिए . आज का अंतिम चौथा सत्र सतत पर्यटन पर केंद्रित रहा. इसमें रंजोन लाहिड़ी, निदेशक, भारतीय जिम्मेदार पर्यटन सोसायटी ने अपना वक्तव्य दिया.
अंजलि भरतरी ने बताया कि इस सेमिनार के साथ इंटैक अपने सहयोगियों जैसे दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर, सिडार, इंडियन रीजनल एसोसिएशन ऑफ लैंडस्केप इकोलॉजी के साथ मिलकर उत्तराखंड में विरासत के विभिन्न पहलुओं की सुरक्षा के लिए व्यापक समझ लाना चाहता है। देहरादून की संयोजक भारती जैन ने बताया कि विभिन्न स्कूलों और सहकर्मियों को भी आमंत्रित किया गया है, मसूरी की सह-संयोजक सुश्री सुरभि अग्रवाल और देहरादून की संयोजक सुश्री अपूर्वा जैन ने कार्यशाला का संचालन किया। इस अवसर पर देहरादून के गैरसरकारी संस्था के कार्यकर्ता, गणमान्य लोग, अध्ययनकर्ता, शोधार्थी, विद्यार्थी व युवा पाठक, उपस्थित रहे.