‘लड़ के लेंगे भिड़ के लेंगे उत्तराखंड’
- डॉ. अतुल शर्मा ने खटीमा गोलीकांड के बहाने शब्दक्रांति से यादें की साझा, उत्तराखंड आंदोलन में रही कविता की उपस्थिति

देहरादून: पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों में जनगीतों ने भी उत्साह का संचार किया। आंदोलन के दौरान गिर्दा, बल्ली सिंह चीमा, ज़हूर आलम और नरेंद्र सिंह नेगी के गीत आंदोलनकारियों ने गुनगुनाए, वहीं जनकवि डॉ. अतुल शर्मा के गीत भी लोगों की जुबान पर थे।
डॉ. शर्मा ने आज खटीमा गोलीकांड के बहाने शब्दक्रांति से उत्तराखंड आंदोलन में अपनी कविताओं की संघर्षशील उपस्थिति यादें साझा की। उन्होंने बताया कि आंदोलन में शामिल होकर गीत जो लिखे, वह जनगीत हो गए। लोगों के लिए अभिव्यक्ति का सफल माध्यम हो गए।
खटीमा गोली कांड एक सितम्बर 1994 को हुआ। फिर मसूरी रामपुर तिराहा देहरादून श्रीयंत्र टापू मे लोग शहीद हुए। रामपुर तिराहा तो महिलाओं के अपमान निर्मम इतिहास है।
मेरा लिखा जन गीत लड़ के लेंगे उत्तराखंड,,,, की पक्षियों है,,,, विकास की कहानी गांव से है दूर दूर क्यों/ नदी पास है मगर ये पानी दूर दूर क्यों”। ये सवाल सड़क पर मशाल जुलूसों प्रभात फेरियों में गाया गया। उसी जनगीत की एक पंक्ति है ” नयी कहानी तिरंगे के साथ बुनी जायेगी, ससुरी और दरातियों की बात सुनी जाएगी ।
जनसमुदाय उद्वेलित था। तब उसी जनगीत की पक्षियों की याद आती है,,, ” एक दिन नई सुबह उठेगी यहाँ देखना, दर्द भरी रात भी कटेगी यहाँ देखना / जीत के रुमाल को हिला के लेगे उत्तराखंड”।