आम आदमी के दर्द को बयां करती हैं दर्द गढ़वाली की ग़ज़लें
वरिष्ठ पत्रकार और शायर दर्द गढ़वाली के ग़ज़ल संग्रह 'इश़्क-मुहब्बत जारी रक्खो' का विमोचन

देहरादूनः वरिष्ठ पत्रकार और शायर लक्ष्मी प्रसाद बडोनी ‘दर्द गढ़वाली’ के ग़ज़ल संग्रह ‘इश़्क-मुहब्बत जारी रक्खो’ का गुरुवार को परेड ग्राउंड स्थित दून लाइब्रेरी में विमोचन किया गया। मुख्य अतिथि और प्रसिद्ध शायर रवि पाराशर, कार्यक्रम अध्यक्ष इकबाल आजर, विशिष्ट अतिथि शादाब मशहदी, कुंवर गजेंद्र सिंह गरल, अमजद खान अमजद और मीरा नवेली ने संयुक्त रूप से ग़ज़ल संग्रह का विमोचन किया।
दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार एवं शायर रवि पाराशर ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि दर्द गढ़वाली की ग़ज़लें सहज और सरल हैं और वह समाज में घटती घटनाओं को कागज में उतारने का हुनर रखते हैं। ग़ज़ल संग्रह की समीक्षा करते हुए शादाब मशहदी ने कहा कि दर्द गढ़वाली की ग़ज़लें आसानी से समझ आ जाती हैं। उर्दू के भारी भरकम शब्दों से उन्होंने परहेज किया है और यही कारण हैं कि उनकी ग़ज़लें दिल में उतर जाती हैं। दर्द गढ़वाली ने कहा कि शायरी उनके जीवन में रच-बस गई है। वह इससे अलग होने की सोच भी नहीं सकते।
कार्यक्रम का संचालन मीरा नवेली ने किया। दून लाइब्रेरी के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर नदीम बर्नी, प्रेम साहिल, जनकवि अतुल शर्मा, राजेश आनंद असीर, प्रेस क्लब अध्यक्ष अजय राणा, राकेश जैन, राकेश बलूनी, कांति, डौली डबराल, शिवमोहन सिंह, महिमानंद भट्ट, बिजू नेगी, डा. विद्या सिंह, नीलमप्रभा वर्मा, नीरू गुप्ता, कल्पना बहुगुणा, मंजू काला, रंजना शर्मा, रेखा शर्मा, सोमेश्वर पांडे, महिंदर प्रकाशी, हर्षमणि भट्ट, अवनीश उनियाल, साख दूनवी, चंदन सिंह नेगी, सत्यानंद बडोनी, सीमा गुप्ता, रति अग्निहोत्री, नरेंद्र शर्मा, रविन्द्र सेठ, सुंदर सिंह, सुमति बडोनी, भुवन प्रकाश बडोनी, धनेश्वरी बडोनी, दुर्गा प्रसाद बडोनी, शशिभूषण बडोनी, प्रदीप बडोनी, उषा बडोनी, प्रवीण बडोनी, प्रीशा बडोनी आदि मौजूद थे।
दून पुस्तकालय की ओर से आयोजित मुशायरा में शायरों ने जीता श्रोताओं का दिल
देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से गुरुवार को आयोजित मुशायरा में दिल्ली और देहरादून के शायरों ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। शायरों ने जहां प्यार-मुहब्बत की बात की, वहीं मौजूदा माहौल पर भी शेर सुनाए। इस मौके पर दर्द गढ़वाली के ग़ज़ल संग्रह ‘इश़्क-मुहब्बत जारी रक्खो’ का विमोचन भी किया गया। देहरादून के शायर इम्तियाज ने तरन्नुम से ग़ज़ल सुनाकर समां बांध दिया।
दिल्ली से आए शायर कुंअर गजेंद्र सिंह गरल ने ‘जुबां यारो ये ऐसे ही नहीं कड़वी हुई अपनी।
कई मुद्दत उबाला है उसूलों की पतीली में।।’
और ‘मिरी मसरूफियत को देख वो भी मुड़ गई पीछे।
मुझे फुर्सत न थी मैं मौत के जाकर गले लगता।।’ सुनाकर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया।
युवा शायर अमजद खान अमजद ने शेर
‘आओ पैदा करें हर दिल में मुहब्बत अमजद,
आज नफरत है ज़माने में कहीं प्यार नहीं।’ सुनाकर वाहवाही बटोरी।
दिल्ली से आए शायर रवि पाराशर ने अपनी ग़ज़लों से श्रोताओं को सोचने को विवश कर दिया। उन्होंने
‘सेठ के घर की दुधारु गाय है बाबू।
तब कहीं जाकर हमारी चाय है बाबू।।’ सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही लूटी।
दर्द गढ़वाली ने दो शेरों
‘हमें मालूम है फितरत तुम्हारी।
मगर फिर भी भरोसा कर रहे हैं।। और
सुना है फ़िक्र है उनको नदी की।
समंदर को जो ख़ारा कर रहे हैं।।’ सुनाकर वाहवाही लूटी।
प्रसिद्ध शायर इक़बाल आज़र के दो शेर ‘मसनद शोहरत रुतबे क्या-क्या।
इनमें डूबे रिश्ते क्या-क्या।।’
कैसे छुपा लेता है आज़र।
दर्द हंसी के पीछे क्या- क्या।।’ भी खूब पसंद किए गए।
देहरादून के हरदिल अजीज शायर शादाब मशहदी ने
‘क्या बोल दिया तुमने, ये अपने बयानों में।
नफ़रत का तसलसुल है, लोगों की ज़ुबानों में।। और
हर सम्त उदासी है, हर ओर है सन्नाटा,
सहमे हुए बैठे हैं, लोग अपने मकानों में।’ सुनाकर श्रोताओं की दाद बटोरी।।
इसके अलावा, कार्यक्रम का संचालन कर रही मीरा नवेली ने तरन्नुम से ग़ज़ल
‘जिसके नग़्मों में ख़ुशबू प्रेम की है पीर की भी।
वो मीरा कृष्ण की है और वही मीर की भी।।
और
बहुत काम आई है तस्वीर तेरी।
मैं आँखों की जब भी दवा चाहती हूँ।।’ सुनाकर श्रोताओं के दिलों को छू लिया। इस मौके पर राजकुमार, केके बख्शी ने भी ग़ज़लें सुनाई।