उत्तराखंडपुस्तक समीक्षासाहित्य

औरत की दशा और दिशा को उजागर करता उपन्यास 

सुषमा चौहान ' किरण ' के महत्वपूर्ण उपन्यास : पंख खोलती डायरी की समीक्षा

डायरी और उपन्यास गद्य की दो सर्वथा भिन्न विधाएँ हैं। डायरी का चरित्र सर्वथा व्यक्तिगत होता है , जिसमें कुछ बातों को सार्वजनिक होने से लेखक जानबूझ कर बचा लेने का उपक्रम करता है अर्थात् स्वयं को अप्रिय प्रसंगों से बचा लेता है । जैसे कि वरिष्ठ साहित्यकार ‘ उद्भ्रांत ‘ जी ने ‘ वह ‘ ( थर्ड पर्सन ) की शैली अपना कर किया है जबकि उपन्यास का स्वभाव सार्वजनिक होता है। यहॉं लेखक फैक्ट्स और फॉल्स ( यथार्थ और कल्पना ) को मिलाकर कथा बुनता है।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि केवल यथार्थ अथवा कल्पना से उपन्यास नहीं लिखा जा सकता।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि आजकल ‘ फ़्यूजन ‘ का युग चल रहा है। अलग – अलग चीज़ों को मिलाकर ‘ कॉकटेल ‘ तैयार किया जा रहा है और इसे बेहद पसंद भी किया जा रहा है। बतौर बानगी – जैसे शास्त्रीय संगीत और पॉप म्युज़िक का मिलन ।

इसकी फलश्रुति को हम एक नए कथा – अनुभव के जन्म लेने के रूप में देख सकते हैं।


लेखिका सुषमा चौहान ‘ किरण ‘ का उपन्यास ‘ पंख खोलती डायरी ‘ , वस्तुतः डायरी का आस्वाद लिए आधी दुनिया की औपन्यासिक व्यथाकथा है। और ख़ास बात तो यह है कि प्रस्तुत उपन्यास में डायरी स्वयं भी स्त्री पात्र उषा , संध्या , मीना और चित्रा की तरह जीवंत पात्र की भूमिका निभाती है । सबकी अपनी – अपनी राम कहानी है । डायरी भी मानो बोलती – बतियाती है । वह तमाम घटनाओं – दुर्घटनाओं की साक्षी ही नहीं बनती , बल्कि उन्हें डायरी के पृष्ठों पर स्वयं दर्ज़ भी करती है। डायरी चुप नहीं रहती – सबकुछ कहती भी है।

लेखिका सुषमा चौहान का यह मानना है कि हर लड़की के पास डायरी होनी चाहिए।

उपन्यास के प्रारंभ में ही वे ‘ मन की बात ‘ में ज़ोर देकर कहती हैं – ” परिवार वाले लड़कियों को लक्ष्मी कहते हैं , जिसे माता – पिता घर में नहीं रखना चाहते हैं । उनका कहना है कि इसकी सुरक्षा पति ही कर सकता है।
घर में कोई भी लड़की की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने से कतराता है।
—– अक्सर अख़बार में ख़बर पढ़ने को मिलती है कि महिला ने अपने बच्चों सहित आत्महत्या करली।’
ऐसी दशा में हमें यह सोचना होगा कि ऐसा क्यों होता है। आधी आबादी को भी मनुष्य का हक़ मिलना ही चाहिए ।

निश्चय ही उपन्यास के इलाके में नारी – जाति पर आधारित कथानक की बनावट और बुनावट का ऐसा नया प्रयोग प्रस्तुत उपन्यास के कथारस को द्विगुणित कर देता है।

एक बात और । यह कहा और माना जाता रहा है कि एक स्त्री का दर्द दूसरी स्त्री ही भलीभाँति समझ सकती है। इस उपन्यास को पढ़ कर इस कथन की सचाई को ठीक – ठीक समझा जा सकता है।

सुषमा जी की लेखनी ने उपन्यास की नायिका के असीम दुःख – दर्द और जीवन – संघर्ष को जिस तरह से चित्रित किया है वह अत्यंत मार्मिक है । दिल और दिमाग को एक साथ झंकृत करता है।

एक औरत की ज़िंदगी का मतलब है – घर का काम करो । बच्चे पैदा करो और मर जाओ । उसकी ट्रेजेडी यह है कि शोषण का शिकार होने पर भी अपना मुँह सिलकर बैठ जाओ । मानो चुप्पी ही उसकी नियति है। सबकुछ खामोशी से बर्दास्त करो । कोई उसके दुःख को सुनने – समझने वाला नहीं है। उपन्यास में जहाँ – तहाँ पुरुष – मानसिकता को भी प्रभावी रूप में उजागर किया गया है ।

प्रस्तुत उपन्यास की महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे दुःख – दर्द भरे जीवन – संघर्ष ने स्त्री पात्र मीना को जुझारू बना दिया है।

इस उपन्यास का वैशिष्ट्य यह भी है कि इसका कथानक पाठक को प्रारंभ से अंत तक बांधे रखता है। इसकी भाषा आमजन की जीवंत भाषा है। संवेदनाएं सघन हैं । स्त्री जीवन के कारुणिक प्रसंग मर्मस्पर्शी हैं । पूरी कथा ही करुणा – वेदना – आक्रोश की कोख से जन्म लेती है।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि सुषमा चौहान ‘ किरण ‘ के उपन्यास ‘ पंख खोलती डायरी ‘ का हिंदी – जगत में व्यापक स्वागत होगा।
मेरी कामना है कि ऐसी सशक्त रचनाएँ और भी निरंतर लिखी जानी चाहिए । यह समय दुःख का दर्शन रचने का नहीं , बल्कि स्त्री – मुक्ति की राहें खोजने का है । सुषमा जी इस बात को भलीभांति जानती हैं ।

– डॉ. रमाकांत शर्मा
94144 10367
rkramakant. sharma@gmail. com
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पंख खोलती डायरी ( उपन्यास )
सुषमा चौहान ‘ किरण ‘
विद्या विहार , नई दिल्ली
मूल्य : ₹ 300 /-
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