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इंदौर के अदब पर धब्बा गोहर देवासी

- 'क़ाफ़िला मुहब्बत का..' को बेवकूफ़ बना छपवा ली किताब, सारी ग़ज़लें उस्ताद आरज़ू अश्की साहब की लेकर छपवा ली अपनी किताब 

     इंदौर के अदब के लिए 29 अक्टूबर 2024 एक काला दिन था। इंदौर के एक उस्ताद शाइर आरज़ू अश्की साहब ने परेशान होकर अपनी फेसबुक पोस्ट पर ये खुलासा किया कि शाइर गोहर देवासी की किताब ‘तलवार पर आंसू गिरे ‘ की सारी ग़ज़लें उनकी दी हुई हैं। हालांकि ये बात अब तक अदबी हल्क़े में बहुत से लोग जानते थे। लेकिन उस्ताद आरज़ू अश्की ने आज अपनी फेसबुक पोस्ट पर जब ख़ुद इसकी तस्दीक़ की तो सभी हैरान रह गए।

 गोहर देवासी पर आरज़ू अश्की साहब के इस खुलासे से ये तो पता नहीं कि गोहर देवासी को शर्मिंदगी हो रही है या नहीं लेकिन इस खुलासे के बाद इंदौर की अदबी संस्था  ‘क़ाफ़िला मुहब्बत का’ को ज़रूर शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी कि उसने अपने बैनर तले एक फ़र्ज़ी शाइर की किताब प्रकाशित करवा कर अदब के ईमानदार और हक़दार लोगों के साथ नाइंसाफी की। दरअसल इस इस संस्था द्वारा की गई ग़लती के ज़िम्मेदार वो लोग हैं, जिन्होंने गोहर देवासी को शाइर माना लिया और शहर के किसी सीनियर से मशविरा किए बग़ैर उसकी किताब छपवाने का फ़ैसला ले लिया। ‘क़ाफ़िला मुहब्बत का’ जैसी धन संपन्न संस्थाओं को ये समझना होगा कि हर अदबी काम पैसों के साथ सही फ़ैसले भी चाहता है। इस संस्था ने गोहर देवासी की पहली प्रकाशित करने का जो फ़ैसला किया था, वास्तव में वो एक ग़लत फ़ैसला था, जो साल भर में सामने आ गया। अगर संस्था शहर के सीनियर शायरों से मशविरा कर गोहर देवासी के बजाय किसी मौलिक शाइर की किताब प्रकाशित करवाती, तो यक़ीनन ये इंदौर की अदबी दुनिया के इतिहास में दर्ज हो जाती।

  आरज़ू अश्की साहब के खुलासे के बाद गोहर देवासी  और  ‘क़ाफिला मोहब्बत का’  के पास शर्मिंदगी के सिवा कुछ भी नहीं बचा है। अब लोग संस्था से जुड़े लोगों के अदबी शऊर पर उंगलियां उठाएंगे और मज़ाक़ बनायेंगे कि आपने एक फ़र्ज़ी शाइर की किताब छाप दी।

 

*आरज़ू अश्की साहब ने फ़ेसबुक पर जो खुलासा किया है, आप उसे पढ़ें। चूंकि वो उर्दू पढ़े हैं, इसलिए उनकी हिन्दी ठीक नहीं है। उनकी पोस्ट का हिंदी अनुवाद इस तरह है:

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मोहतरम पठान साहब

आपने फ़ोन पर मुझसे जो सवाल किये हैं , उनका मैं मंज़रे- आम पर जवाब दे रहा हूं। बराए- करम इसके बाद मुझे इस मामले से दूर ही रखें तो बेहतर होगा।  गोहर देवासी साहब का और आपका क्या मसअला है, क्या रंजिश है, यह आप जानें:

 

आपका पहला सवाल था-

क्या गोहर देवासी शायर नहीं हैं?

मेरा जवाब-

जी..नहीं बिल्कुल नहीं।

 

आपका दूसरा सवाल-

क्या गोहर देवासी ने  अपनी किताब ‘तलवार पर आंसू गिरे’,आपकी ग़ज़लों से छपवाई है?

जवाब – जी, बिल्कुल मेरी ही ग़ज़लें हैं।

।।।।।।।।।।

आपका तीसरा और बहोत एहेम सवाल-

क्या आप गोहर देवासी को पैसे लेकर ग़ज़लें देते थे?

जवाब-

 बिल्कुल नहीं। मैंने कभी एक चाय भी गोहर देवासी से ग़ज़लों के नाम पर नहीं पी, बल्कि उन्हें सूबाई या ऑलइंडिया तो छोड़िये, इंटरनेशनल मुशायरे अपने ख़र्च पर पढ़वाए। साथ ही मैंने उन्हें नज़राने भी दिलवाए और मैंने नहीं लिये।

।।।।।।।।।।

फिर भी अगर आप मुतमईन नहीं हों, तो इंदौर के तमाम शोअरा से मालूम कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि मेरे भाई, कि गोहर देवासी ने मेरी ग़ज़लों से अपने नाम से जो किताब छपवाई, उस पर भी मुझे एतराज़ नहीं है, तो फिर किसी और को भी नहीं होना चाहिये।

ख़ैर

आपने तीन सवाल किये थे, जिनका मैंने पूरी सच्चाई के साथ जवाब दिया है। मेहरबानी करके अब मुझसे इस मामले में राब्ता क़ायम नहीं करें। नवाज़िश होगी।।

 

*– आरज़ू अश्की इन्दौरी*

 

अब आप ख़ुद बताएं कि क्या  ऐसे फ़र्ज़ी शाइर का बायकाट नहीं होना चाहिए ? मेरा मानना है कि अपने उस्तादों के साथ धोखा कर किताब में उनका ज़िक्र करने से गुरेज़ करने वाले ऐसे शाइरों की अदबी दुनिया में कोई ज़रूरत नहीं है। शहर की अदबी संस्थाओं को भी ऐसे लोगों से परहेज़ कर अदब के सच्चे खिदमतगारों को आगे लाने का काम करना चाहिए, तभी अदब का भला होगा। वर्ना इन दिनों अदब के नाम पर जो ठिलवाइयां चल रही हैं, वो इसी तरह जारी रहेगी। इसमें अदबी संस्थाओं का रोल सबसे अहम है कि अपनी महफ़िलों से ठिलवों को दूर रखें, क्योंकि अदब एक संजीदा अमल है, इसे बरक़रार रखें।

 

✍️ *अखिल राज*

*पत्रकार-लेखक-शायर*

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