बच्चों में मातृभाषा के विकास के लिए बाल साहित्य जरूरी
-धाद संस्था की ओर से फूलदेई सृजन बालपर्व के तहत बाल साहित्य में वक्ताओं ने रखे विचार, रेसकोर्स स्थित आफिसर्स ट्रांजिट हास्टल में आयोजित कार्यक्रम में जुटे साहित्यकार

देहरादून: बच्चों में साहित्य के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से धाद साहित्य एकांश की ओर से फूलदेई सृजन बालपर्व के तहत बाल साहित्य के निमित्त विमर्श में वक्ताओं ने क्षेत्रीय भाषा को बचाने पर जोर दिया। कहा कि भाषाओं को बचाने की बात होगी तो बाल साहित्य सृजन इसका मुख्य आधार हो सकता है। बच्चों के मातृभाषा के विकास के लिए बाल साहित्य का होना जरूरी है।
रविवार को रेसकोर्स स्थित आफिसर्स ट्रांजिट हास्टल में आयोजित विमर्श में साहित्यकार और सामाजिक संगठन से जुड़े लोग शामिल हुए। उत्तराखंड की क्षेत्रीय भाषाओं में बाल साहित्य विषय पर वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् डा. नंदकिशोर हटवाल ने कहा कि उत्तराखंड की क्षेत्रीय भाषाओं में बाल साहित्य की कमी बनी हुई है। हिंदी व अंग्रेजी की तुलना में यहां की क्षेत्रीय भाषाओं में बाल साहित्य का सृजन न के बराकर है।
वर्तमान में उत्तराखंड की नई पीढ़ी को उनकी मातृभाषा के प्रति प्रेम जागृत करने और चेतना विकसित करने के लिए नई पीढ़ी को अवगत कराना जरूरी हे। अपनी जड़ों से और संस्कृति से जुड़ने के लिए मातृभाषा का ज्ञान जरूरी है। बच्चों के मातृभाषा के विकास के लिए बाल साहित्य होना भी जरूरी हे। भविष्य में जिस तरह से उत्तराखंड की सांस्कृतिक कार्यक्रम, उत्सव, मेले, गीत, नृत्य को संरक्षित की बात हो रही है, इसी क्रम में भाषाओं को बचाने की बात भी होनी चाहिए। बाल साहित्य सृजन इसका प्रमुख आधार हो सकता है। उत्तराखंड की सभी क्षेत्रीय भाषा में पर्याप्त मात्रा में परंपरागत व लोक बाल साहित्य उपलब्ध है। लेकिन, इसका संरक्षण ना होने से क्षेत्रीय भाषाओं का परंपरागत बाल साहित्य समाप्त हो गया है। इसके संकलित करने की जरूरत है।
बाल साहित्य संस्थान अल्मोड़ा के सचिव और बाल प्रहरी के संपादक उदय किरौला ने बाल साहित्य और सामाजिक सरोकार विषय पर विचार रखते हुए कहा कि बाल साहित्य बच्चों के लिए लिखेंगे तो बच्चा बनकर लिखना पड़ेगा। हम सभी को इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि जब भी लिख रहें हो तो बच्चों के भावना को समझकर लिखें। उन्होंने कहा कि समाज में वृद्धाश्रम खुल रहे हैं। बच्चों को संस्कारवान बनाना आज के समय में जरूरी हो गया हे। बालक-बालिका के बीच बेहतर माहौल पैदा करना भी हर परिवार के सदस्य की जिम्मेदारी है। बच्चों को संस्कारवान और बालिकाओं का सम्मान तभी होगा जब हम घर पर इस तरह का माहौल पैदा करेंगे। झूठ बोलना हम ही बच्चों को सिखाते हैं और एक समय के बाद हम बच्चों के झूठ से परेशान हो जाते हैं। हमें यह सभी समझना होगा कि बच्चों के मन में समाज में अलगव बांटने की सोच क्यों विकसित हो रही है। लोकभाषा को भूलें नहीं बल्कि बच्चों को भी बताएं। पढ़ने की खुद में आदत डालेंगे तो बच्चे भी इसे एक ना एक समय जरूर दोहराएंगे। मोबाइल की संस्कृति को बंद कर पठन-पाठन की संस्कृति को बढ़ाना आज की जरूरत है। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षा विभाग की पूर्व उपनिदेशक डा. कमला पंत जबकि संचालन कल्पना बहुगुणा ने किया। इस मौके पर सविता मोहन, प्रो. राम विनय सिंह, राजेश्वरी सेमवाल, ड. सीमा गुप्ता, डा. मनोज पंजानि, कांता घिल्डियाल, कमला कठैत, अमाया रावत, नव्या सिंह, बीरेंद्र खंडूरी, मनोहरलाल, सुरेन्द्र अमोली, गणेश उनियाल, सुधीर सुन्द्रियाल, एसपी नौटियाल, अंबर खरबन्दा, बीएम. उनियाल, साकेत रावत, डीसी नौटियाल, सीवी शुक्ला, नरेश चंद्र सिदोला, विक्रम सिंह बिष्ट, तन्मय, सुधीर नौटियाल (संस्थापक -हिमालयन इंग्लिश स्कूल घनसाली ), सुरेश कुकरेती, विजय भट्ट, देवेंद्र कांडपाल, मोहन प्रसाद डिमरी, रजनीश त्रिवेदी, आदि मौजूद रहे।
धाद ने अबतक 325 से अधिक स्कूलों में भेजी ड्राइंग शीट
‘एक कोना कक्षा का’ के मुख्य संयोजक गणेश उनियाल ने कोना कक्षा का कार्यक्रम को विस्तार से समझाते हुए बताया कि फूलदेई इस कार्यक्रम का वार्षिक आयोजन है। इसे हम पूरे एक माह तक बच्चों के लिए विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों के साथ मनाते हैं। इस बार भी हम दस हजार बच्चों के साथ इसे मनाने के संकल्प के साथ विभिन्न आयोजन कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य है कि हम अधिक से अधिक स्कूलों तक पहुंचें। अभी तक हम 325 से अधिक विद्यालयों में ड्राइंग शीट भेज चुके हैं। हमारे बहुत से साथियों ने स्कूलों के लिए शीट्स का सहयोग किया है। लेकिन, अभी भी हमें सहयोग की आवश्यकता है। ऐसे में सभी से भी निवेदन रहेगा कि आप भी किसी न किसी विद्यालय से अवश्य जुड़ें। वहां के लिए ड्राइंग शीट्स भिजवायें और नन्हे मुन्ने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरें। धाद साहित्य एकांश द्वारा आयोजित विमर्श के लिए उन्होंने एकांश का आभार व्यक्त किया।