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अंग्रेजी या चाइनीज नहीं हिंदी है विश्व की पहले नंबर की भाषा

विश्व हिंदी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष, हिंदी के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल के शोध में यह बात हुई उजागर, हिंदी को पीछे धकेलने की जानबूझकर हो रही थी कोशिशें

हमारे देश के धर्म, ज्ञान – विज्ञान, इतिहास , भाषा और संस्कृति के बारे में एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत झूठ परोसा जाता था ताकि हम भारतीय स्वयं को विदेशियों से हीन समझते रहें । किसी भी देश को गुलाम बनाए रखने के लिए यह एक प्रभावी रणनीति होती है, इसलिए हमारे लेखकों, साहित्यकारों , पत्रकारों और इतिहासकारों को प्रलोभन देकर अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाए रखने के लिए हमारी भाषा , संस्कृति और इतिहास से सत्य को छिपा कर गलत सूचनाएँ दी गई । आजादी मिलने के बाद भी अँग्रेजी मानसिकता के लोगों ने इसमे सुधार के प्रयास नहीं किए । यह संतोष का विषय है कि अब भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने के प्रयास हो रहे हैं ।

हिन्दी के बारे में भी इसी प्रकार की गलत जानकारी दी गई और सब जगह यह प्रचारित किया गया कि हिन्दी की रैंकिंग विश्व में तीसरे स्थान पर है । हिन्दी केवल गँवारों की भाषा है , परंतु सच तो यह है कि विश्व की भाषाओं में हिन्दी पहले स्थान पर है । आज हिन्दी का साहित्य विश्व के श्रेष्ठ साहित्य से बेहतर और समृद्ध है ।

विश्व में हिन्दी की रैंकिंग के संबंध में एक शोध 1981 में शुरू हुआ और दो साल बाद 1983 में इसका पहला संस्करण जारी हुआ जो दिल्ली में आयोजित तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन में वितरित किया गया । उसके उपरांत हर दो वर्ष में 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर इस शोध को अद्यतन करके प्रकाशित किया जा रहा है । वर्ष 2025 का यह शोध इसका बीसवाँ संस्करण है । पिछले 19 संस्करणों मेँ हिन्दी भाषा और अन्य भाषाओं की रैंकिंग से संबन्धित विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है । इन सभी संस्करणों का समुचित प्रमाणीकरण कराया गया । यह शोध उच्च शिक्षा विभाग , भारत सरकार के प्रतिलिप्याधिकार अधिनियम के अधीन मेरे नाम पर भारत सरकार के पंजीयक कार्यालय में पंजीयन संख्या L – 26910 / 2006 पंजीकृत है ।

गत 44 वर्ष से जारी इस शोध में निर्विवाद रूप से यह सिद्ध हुआ कि विश्व की भाषाओं की रैंकिंग में हिन्दी पहले स्थान पर है । भाषाओं की रैंकिंग जारी करनेवाली अमेरिकी संस्था “एथ्नोलोग” द्वारा जारी प्रकाशनों में 5 वर्ष पहले तक मंदारिन ( चीनी भाषा ) को पहले स्थान पर दिखाया जाता था लेकिन गत 5 वर्षों से अँग्रेजी को पहले स्थान पर दिखाया जा रहा है . हिन्दी को हमेशा ही तीसरे स्थान पर दिखाया जाता रहा है , जबकि भारत के प्रख्यात भाषाविद के उक्त शोध से यह निर्विवाद रूप से यह सिद्ध हो गया कि न अँग्रेजी और न ही मंदारिन बल्कि हिन्दी विश्व की भाषाओं की रैंकिंग में पहले स्थान पर है ।

हिन्दी को तीसरे स्थान पर दिखाये जाने संबंधी तथ्य पर किसी का ध्यान इसलिए नहीं गया कि जन सामान्य यह मानता आया है कि चीन की जनसंख्या सबसे अधिक है इसलिए मंदारिन पहले स्थान पर होगी ही , लेकिन सच यह नहीं है , चीन में भी भारत की तरह कई भाषाएँ बोली जाती हैं । चीनी भाषा का मानक रूप मंदारिन है । भारत में हिन्दी का जो स्थान और स्थिति है चीन में मंदारिन का वही स्थान और स्थिति है ।

इस शोध के प्रत्येक संस्करण का संस्थागत प्रमाणीकरण कराया गया। शोध रिपोर्ट 2023 को उत्तराखंड सरकार की भाषा एवं साहित्य की शीर्ष संस्था , उत्तराखंड भाषा संस्थान कि विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रामाणिक माना गया है । इतना ही नहीं कर्नाटक विश्व विद्यालय धारवाड़ , कर्नाटक की उच्च स्तरीय विशेषज्ञ सामिति ने भी इस शोध को प्रामाणिक शोध घोषित किया । इसके अलावा भी भारत सरकार की एवं अन्य प्रतिष्ठित संस्थाओं ने इस शोध को प्रामाणिक माना है ।

विश्व में भाषाओं की रैंकिंग अमेरिकी संस्था एथ्नोलोग करती है । इसमे भाषा के ज्ञान के आधार पर कई स्तरों पर भाषाओं की गणना की जाती है । विश्व की भाषाओं की रैंकिंग , भाषा के जानकारों के आधार पर होती है । उदाहरण के लिए अँग्रेजी भाषा की गणना के लिए उन सभी व्यक्तियों को शामिल किया गया है जो थोड़ी बहुत अँग्रेजी जानते हैं । अर्थात जिन्हें अँग्रेजी का काम चलाऊ ज्ञान है उन्हें भी अँग्रेजी के जानकारों में शामिल किया गया है, चाहे उनकी मातृ भाषा कोई भी क्यों न हो । उदाहरण के लिए कोई मराठी भाषी अँग्रेजी जनता है तो उसकी गिनती मराठी भाषियों में भी होगी और अँग्रेजी भाषियों में भी । इसी सिद्धान्त के आधार पर एथ्नोलोग अँग्रेजी के जानकारों की संख्या विश्व में 1 अरब 50 करोड़ दिखाता है लेकिन आज भी अर्थात वर्ष 2025 में हिन्दी के जानकारों की संख्या 60 करोड़ ( 608 मिलियन ) दिखाता है। यह संख्या कई वर्षों से 60 करोड़ ही दिखाई जा रही है जबकि अँग्रेजी के आंकड़े हर वर्ष अद्यतन कर के दिखाये जाते हैं । वास्तविकता तो यह है कि भारत के 11 हिन्दी भाषी राज्यों की वर्ष 2025 की जनसंख्या 69 करोड़ है अर्थात 690 मिलियन है । इन 11 राज्यों / संघ शासित क्षेत्रों मे सभी अर्थात 100% जनता हिन्दी जानती है । अकेले इन 11 राज्यों में 69 करोड़ जनता हिन्दी जानती है तो एथ्नोलोग सिर्फ 60 करोड़ क्यों दिखा रहा है ? यह प्रश्न हर भारतवासी को एथ्नोलोग से पूछना चाहिए । आज विश्व में हिन्दी जाननेवालों की संख्या 159 करोड़ है ।

भारत में अन्य भाषा – भाषी भी हिन्दी जानते हैं , उनकी संख्या को हिन्दी जाननेवालों में शामिल नहीं किया गया है यह प्रश्न भी एथ्नोलोग से पूछा जाना चाहिए । इसी प्रकार हर उर्दूभाषी हिन्दी जानता है , उन्हें भी हिन्दी जाननेवालों में शामिल नहीं किया गया है जबकि उन्हें हिन्दी के जानकारों मे शामिल किया जाना चाहिए , जैसा की अँग्रेजी और अन्य भाषाओं के मामले में किया जाता है । , एथ्नोलोग का यह दोहरा मापदंड ठीक नहीं । एथ्नोलोग द्वारा जब “अमेरिकन अँग्रेजी” और “ब्रिटिश अँग्रेजी” में भेद नहीं किया जाता है और इनकी संख्या अँग्रेजी के जानकारों मे गिनी जाती है तो हिन्दी और उर्दू में भेद क्यों किया जाता है ? अँग्रेजी के मामले में सभी प्रकार की अँग्रेजी को शामिल किया जाता है लेकिन हिन्दी के मामले में हिन्दी जानकारों की वास्तविक संख्या को घटा कर दिखाया जाता है । यही कारण है कि एथ्नोलोग हिन्दी को तीसरे स्थान पर दिखाए जा रहा है और अँग्रेजी को पहले स्थान पर जो हर दृष्टि से अनुचित है ।

भाषाओं की रैंकिंग के लिए जो आंकड़े दिये जाते हैं उनमें भाषा के सभी स्तर के जानकारों को शामिल किया जाता है । इस प्रकार हिन्दी बोलने वालों / हिन्दी जाननेवालों की कुल संख्या एथ्नोलोग की गणना पद्धति के मानदंडों के अनुसार निम्नवत है :

1. भारत सरकार , राजभाषा विभाग के वार्षिक कार्यक्रम 2024 – 2025 के अनुसार भारत के 11 राज्य/ संघ शासित क्षेत्र जहां 100 % जनता हिन्दी जानती है अर्थात “ क “ क्षेत्र 69 करोड़

2. भारत सरकार , राजभाषा विभाग के वार्षिक कार्यक्रम 2024 – 2025 के अनुसार भारत के 6 राज्य/ संघ शासित क्षेत्र जहां 90 % जनता हिन्दी जानती है अर्थात “ ख “ क्षेत्र 21 करोड़

3. भारत सरकार , राजभाषा विभाग के वार्षिक कार्यक्रम 2024 – 2025 के अनुसार भारत के 20 राज्य/ संघ शासित क्षेत्र जहां 25 से 90 % जनता हिन्दी जानती है अर्थात “ ग “ क्षेत्र )30 करोड़

4. विश्व के 37 देशों में जहां बड़ी मात्रा में हिन्दी के जानकार हैं। एथ्नोलोग ने माना है कि यहाँ हिन्दी जाननेवाले हैं राष्ट्र वार तालिका इस शोध रिपोर्ट में दी गई है । 4. 5 0 करोड़

5. विश्व के 42 देशों में हिन्दी के जानकार काफी मात्रा में हैं , लेकिन एथ्नोलोग ने इनको गणना में शामिल नहीं किया है । इनकी राष्ट्र वार तालिका इसी शोध रिपोर्ट में दी गई है । 9.40 करोड़

6. विश्व के 129 देशों में हिन्दी के जानकार कम मात्रा में हैं , लेकिन एथ्नोलोग ने इनको भी गणना में शामिल नहीं किया है । इनकी राष्ट्र वार तालिका इसी शोध रिपोर्ट में दी गई है । 11 लाख

7. राजस्थानी ( हिन्दी ) बोलनेवाले घुमंतू ( रोमा ) जो किसी भी देश के नागरिक नहीं हैं । 50 लाख

8. विश्व में उर्दू भाषी जो हिन्दी जानते हैं । 22. 60 करोड़

9. भारत में अवैध आप्रवासी जो हिन्दी बोलते हैं । 2.40 करोड़

इस प्रकार विश्व में हिन्दी जानने वालों की संख्या 159 करोड़ से अधिक है । अँग्रेजी जननेवाले 15 करोड़ हैं तथा मंदारिन ( चीनी ) जानने वाले 110 करोड़ है इसलिए हिन्दी पहले स्थान पर है।


लेखक जयंती प्रसाद नौटियाल का संक्षिप्त परिचय

हिंदी के विद्वान डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल का जन्म 3 मार्च 1956 को देहरादून में हुआ। डॉ. नौटियाल, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से उप महाप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर देहरादून में निवास कर रहे हैं। डॉ. नौटियाल ने अनेक राष्ट्रीय एवं विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन्हे विश्व का सर्वाधिक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति होने का गौरव प्राप्त है। इनका बायोडाटा विश्व का सबसे वृहद एवं अद्वितीय है। यह 10 खंडों में है तथा 5508 पृष्ठों में है । इसमें डॉ. नौटियाल की 5791 उपलब्धियां दर्ज हैं । डॉ. नौटियाल ने एमए, पीएचडी, डीलिट, एमबीए, एलएलबी सहित 82 डिग्री/डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स किए हैं। इन्होंने 96 पुस्तकों के लेखन में योगदान दिया है। इसमें से 38 पुस्तकें स्वयं लिखी हैं, 18 पुस्तकें संयुक्त रूप से लिखी हैं , 6 पुस्तकों का सम्पादन किया है तथा 34 पुस्तकों मेन एक अध्याय लिखा है। इनकी 20 से अधिक पुस्तकें विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तक व संदर्भ पुस्तकों के रूप में चल रही हैं। इनके 1521 लेख प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं , इनहोने 129 शोध पत्र विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में प्रस्तुत किए हैं , जिनमें अधिकांश शोध पत्र प्रकाशित हैं। पत्रकारिता में 113 रिपोर्ताज़ और 117 संपादकीय लिखने के अलावा 93 रेडियो / दूर दर्शन कार्यक्रम लिखे व प्रस्तुत किए हैं । 99 प्रक्रिया संबंधी पुस्तकों का संयुक्त रूप से अनुवाद भी किया है । इस प्रकार इन्होंने ( 96 पुस्तकें + 99 अनुवाद , +1521 लेख + 113 पत्रकारिता साहित्य + 117 संपादकीय + 129 शोध पत्र प्रकाशित करके ) हिंदी साहित्य को 2168 रचनाओं से समृद्ध किया है।

इन्हें हिंदी भाषा और साहित्य के लिए 115 अवॉर्ड, सम्मान, और पुरस्कार मिल चुके हैं। इनके सेवा कार्य और शोध के लिए 361 प्रशंसा पत्र प्राप्त हुए हैं । राष्ट्र की 154 शीर्ष समितियों में इन्होंने प्रतिनिधित्व किया है । इन्होने 61 शोध छात्रो का शोध निर्देशन किया है। इन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में 734 व्याख्यान दिए हैं। इन्होंने 183 प्रकार के बौद्धिक कार्यों में योगदान दिया है तथा 27 प्रकार के असाधारण कार्य सम्पन्न किए हैं । इन्हें 76 प्रकार के व्यवसायों/ पदों पर कार्य करने का अनुभव है। इनके विवरण / उद्धरण 1175 से अधिक वेबसाइटों में उपलब्ध हैं। प्रिंट मीडिया में 299 और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 107 स्थानों पर भी देखे जा सकते हैं । हिंदी विकिपीडिया और अंग्रेजी विकिटिया जैसे अन्य पोर्टलों पर इनके विवरण उपलब्ध हैं। डॉ. नौटियाल से 9900068722 पर अथवा dr.nautiyaljp@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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