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हिंदू शायर धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’.. उस्ताद शायर भी जिसके फ़न का मानते हैं लोहा

♦️प्रदेश के एक नायाब और बेशक़ीमती नौजवान हिंदू उस्ताद शाइर के साथ म.प्र. उर्दू अकादमी का नाइंसाफी भरा रवैया, सोशल मीडिया पर हज़ारों की तादाद में हैं फालोवर्स, उस शख़्स से बिना फ़ीस के सैकड़ों हिंदू-मुस्लिम सीख रहे हैं ग़ज़ल की बारीकियां

इंदौर :  हदीसों के मुताबिक अल्लाह ने सबसे पहले क़लम को पैदा किया और हुक़्म दिया कि कायनात के पैदा होने से लेकर क़यामत तक की हर चीज़ का भविष्य लिख.. और फिर क़लम ने लोह-ए-महफ़ूज़ (संरक्षित पट्टिका) पर लिख दिया हर एक चीज़ का भविष्य जो अल्लाह के तख़्त के नीचे है और जिसे कोई नहीं पढ़ सकता।


जिस शख़्स ने अल्लाह के हुक़्म से सबसे पहले पैदा होने वाली क़लम की अहमियत समझ ली तो वो उससे मुहब्बत किए बग़ैर नहीं रह सकता क्योंकि क़लम एक प्रतीक है इल्म का.. और इल्म में सुरूर है।
आइए आज मुलाक़ात करते हैं क़लम की मुहब्बत में दीवानगी की हद पार करने वाले एक ऐसे शख़्स से जिसने इल्म की ख़ातिर अपना करियर तक दांव पर लगा दिया। और फिर जैसे बीज ज़मीन में पहले बर्बाद होता है और फिर आबाद होकर सबको हैरान कर देता है, उसी तरह ये कम उम्र हिंदू शाइर भी बर्बादियों की वादियों से गुज़रता हुआ इल्म की उन हसीन वादियों में जाकर एक बेहतरीन उस्ताद शाइर और लेखक के रूप में आबाद हुआ।


लेकिन अफ़सोस की बात ये रही कि जिसके इल्म की ख़ुशबू से अदबी दुनिया महक उठी, उसकी ख़ुशबू से म.प्र. उर्दू अकादमी ने महकने से इंकार कर दिया।
उस हिन्दू नौजवान उस्ताद शाइर जिसने कम उम्री में बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल कर ली, उस पर अकादमी ने गर्व करने से इंकार कर दिया। जबकि वो शख़्स उर्दू शाइरी में एक नया माइल स्टोन बन चुका है। आइए उस शख़्स से मुलाक़ात करते हैं इस तमहीद के साथ :

*भाषा ज्ञान- हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी।
*उम्र – 35 साल
*शिक्षा – उर्दू शाइरी और उर्दू सीखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक एंड इंस्ट्रूमेंटेशन में बीई का आख़िरी सेमेस्टर छोड़ा।
*कालेज – इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, इंदौर।
*निवासी- खजूराहो के पास गांव चंदला
किताबें-
(1)- स्पंदन (शाइरी)
(2)- वुंडेड मुंबई (अंग्रेजी उपन्यास)
(3)- ख़ामोशी रास्ता निकालेगी(शाइरी)
(4)- इल्म में सुरूर है लेकिन (अरूज़-ए-उर्दू अदब)
(5)- मैं उर्दू हूं (उर्दू भाषा के सफ़र की दास्तान)
(6)- जल्द ही एक उपन्यास और एक शाइरी का नया मजमू’आ प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है।

आप सब ये पढ़कर यही सोच रहे होंगे कि क्या सचमुच एक गांव का लड़का इतनी कम उम्र में इतने इल्म और इतनी किताबों का मालिक हो सकता है? तो मैं आपको बता दूं कि ये बिल्कुल सच है कि 35-36 साल के *धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’* अपने इल्म की बदौलत न सिर्फ़ एक मंजे हुए लेखक हैं बल्कि इस वक़्त देश में सबसे कम उम्र के उस्ताद शाइर भी हैं।

*सोशल मीडिया के सबसे चर्चित और लोकप्रिय उस्ताद शाइर हैं फ़ैयाज़-*
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उर्दू और उर्दू शाइरी के लिए अपनी पूरी होती इंजिनियरिंग की पढ़ाई को छोड़ने की हिम्मत करने वाले इस नौजवान ने पिछले सात-आठ साल में अदब की दुनिया में जो कारनामा अंजाम दिया है, उसकी कोई और दूसरी मिसाल नहीं मिलती है। उर्दू सीखने के जुनून ने उनसे इंदौर छुड़वाया और वो भोपाल पहुंच गये। वहां उर्दू का एक कायदा ख़रीदा और ख़ुद ही उर्दू का अलिफ़-बे सीखकर कुछ ही सालों में धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ ने उन पर तंज़ करने वालों को शर्मिंदा कर दिया और उनसे अपने फ़न का लोहा मनवा लिया। भोपाल में चार साल रहते हुए उर्दू व्याकरण के साथ अरूज़ पर भी महारथ हासिल की। इस दौरान ख़ूब किताबें पढ़ीं।
धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ बताते हैं कि मैंने इस दौरान बहुत से अंग्रेजी नावेल और ग़ालिब, मीर समेत कई बड़े शु’अरा को पढ़ा।
उन्होंने बताया कि मुझे शाइरी का शौक़ ‘दैनिक भास्कर’ अख़बार के ‘रसरंग’ में छपने वाली ग़ज़लें पढ़ कर लगा। उस वक़्त मैं नौवीं कक्षा में था। हमारे गांव में दैनिक भास्कर आता था और रविवार को अख़बार के साथ जब रसरंग का पन्ना आता तो मैं सबसे पहले उसमें छपी ग़ज़ल ही पढ़ता। फिर कुछ उल्टा- सीधा लिखने लगा। वो बताते हैं कि इंदौर में इंजीनियरिंग करने के दौरान पहली बार मुझे इंदौर में चंद्रसेन विराट जी से मिलने का मौक़ा मिला।‌ तब मैंने उन्हें अपनी ग़ज़लें दिखाईं। जिन ग़ज़लों को मैं ग़ज़ल समझ रहा था, दर अस्ल वो ग़ज़ल थी ही नहीं। क्योंकि वो सब बे-बह्र थीं और ये बात मुझे विराट जी ने नाराज़गी भरे लहजे में बतायी। तब मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली बार *बह्र* लफ़्ज़ सुना था।
दोस्तो!
किसी ने सोचा नहीं था कि जिस शख़्स को इंदौर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते वक़्त तक *बह्र* लफ़्ज़ का पता नहीं था, वो शख़्स कुछ साल बाद बह्र का इतना बड़ा मास्टर बन जाएगा कि बड़े-बड़े सीनियर शाइर भी इस मामले में उससे मशविरा करने लगेंगे। ये सब सच्ची लगन का कमाल है कि
आज धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ उर्दू शाइरी का एक ऐसा ब्रांड बन चुके हैं कि जिसकी किताब का लोग इंतज़ार करते हैं। सोशल मीडिया पर उनकी फैन फॉलोइंग हजारों में है। उनसे अब तक सैकड़ों लोग अपनी ग़ज़ल पर इस्लाह ले चुके हैं और ले रहे हैं। ग़ज़ल से उनका इश्क़ देखकर ही कई हिंदू और मुस्लिम लड़कों को ग़ज़ल के मैदान में आने की हिम्मत जागी है। इस दौर में ग़ज़ल को लोकप्रिय बनाने वालों में यक़ीनन एक नाम धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ का भी है।

*उर्दू अकादमी ने कर रखी है इस नौजवान उस्ताद शाइर की उपेक्षा-*
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उर्दू अकादमी का काम है कि उर्दू अदब में काम कर रही प्रतिभाओं को मंच प्रदान कर और उन्हें उचित सम्मान देना। लेकिन अकादमी का रवैया इसके ठीक उलट है। धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ उन रेयर प्रतिभाओं में है जो बहुत मुश्किल से किसी में देखने को मिलती है। लेकिन ऐसा लगता है कि प्रदेश की उर्दू अकादमी को इस नौजवान हिंदू उस्ताद शाइर और लेखक की इन उपलब्धियों से कोई सरोकार नहीं है। अकादमी ने उन पर तवज्जो तब दी जब सोशल मीडिया पर धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ फैन फॉलोइंग देखी और वो दबाव में आई । इसी दबाव के चलते उर्दू अकादमी ने उन्हें दो बार मंच प्रदान करने की औपचारिक कैसे पूरी की, वो मैं धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ के अल्फ़ाज़ में बयान करने की कोशिश करता हूं –

*मुझे दो बार उर्दू अकादमी ने भोपाल के मुशाइरे में आमंत्रित किया। जब मैं पहली बार मुशाइरे के सिलसिले में भोपाल के एक होटल पंहुचा तो अकादमी की तरफ़ से एक बंदा मुझसे मिलने कमरे में आया। उसने बताया कि आपका नाम मैडम ने ही रिकमेंड किया था। आप चलकर उनसे मिल लीजिए। तो मैंने उस शख़्स से कहा कि भाई जब मैडम ने मुझे बुलाया है तो उन्हें मुझसे मिलने आना चाहिए। मैं क्यों उनसे मिलने जाऊं। ये जवाब सुनकर वो बंदा लौट गया। अब इसका ख़मियाज़ा मुझे मुशाइरे में यूं भुगतना पड़ा कि मुशाइरे में मुझे सबसे पहले ऐसा पढ़ाया जैसे मुशाइरा अभी शुरू ही नहीं हुआ हो। उसके बाद दूसरे मुशाइरे में भी मुझे बुला कर ऐसी ही हरकत कर दी गई। उसके बाद से अकादमी ने मुझे बुलाना बंद कर दिया। कुछ लोगों ने जब इस बाबत पूछा तो कहा गया कि उन्हें मुशाइरा पढ़ना नहीं आता। धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ कहते हैं कि मैं एक शाइर हूं। मैं सिर्फ़ शे’र पढ़ता हूं। मैं औरों की तरह नौटंकी या गायकी नहीं कर सकता। जिसे अच्छी शाइरी सुनना है तो मैं सुना सकता हूं लेकिन मैं दाद पाने के लिए भोंडी हरकतें नहीं कर सकता।*

दोस्तो!
अकादमी को वैसे भी हमेशा से वो ही शाइर पसंद हैं जो गले बाज़ हों या शकील आज़मी जैसे हाथ कंपकंपाते हुए चारों तरफ़ घूम-घूमकर और झूमते हुए शाइरी सुनाकर वाह-वाह करवा सकें। अकादमी को अच्छी और अदबी शाइरी से कोई सरोकार नहीं है तभी तो आज धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ जैसे टैलेंटेड शख़्स को उन्होंने हाशिए पर धकेल रखा है जबकि अगर अकादमी चाहती तो प्रदेश में उन्हें ग़ज़ल का एक ब्रांड एम्बेसडर बना सकती थी और नयी पीढ़ी के लिए उनकी सेवाएं ले सकती थी।

*सरकार से सवाल-*
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क्या राज्य सरकारों के अधीन आने वाली उर्दू अकादमियां पर सरकार का कोई दख़ल नहीं है जो ये बेधड़क अपनी मनमानी किए जा रही हैं?
क्या इन उर्दू अकादमियों की वजह से वो लोग जो धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ की तरह अपने कैरियर को दांव पर लगा कर उर्दू अदब में काम कर रहे हैं, उन हिंदू शु’अरा और अदीबों के साथ यही भेद-भाव जारी रहेगा और सरकार चुपचाप इस नाइंसाफी का तमाशा देखती रहेगी? आख़िर क्यों? जबकि इस उर्दू ज़बान पर हिंदुओं का भी उतना ही हक़ है जितना मुसलमानों का।
क्या इसका कोई जवाब मिलेगा सरकार कि कब तक आपकी उर्दू अकादमी धीरेन्द्र सिंह ‘फैयाज़’ जैसे बेशक़ीमती हिंदू शु’अरा की कुर्बानी लेती रहेगी ?
(शेष आगे..)

✍️ अखिल राज
(पत्रकार,लेखक,शाइर)

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