
ग़ज़ल
आंधियों से दिया बचा कैसे।।
ये क़रिश्मा हुआ भला कैसे।।
साथ मेरे ख़ुदा नहीं था तो।
बात मेरी बनी बता कैसे।।
राख में थी जरूर चिंगारी।
घर मेरा वर्ना जल गया कैसे।।
मानते हैं सभी नबी को जब।
मस’अला फिर बता उठा कैसे।।
ज़ुल्म मजलूम पर हुआ होगा।
‘आस्मां टूटकर गिरा कैसे।। ‘
जुर्म साबित भी हो गया उसका।
मुल्तवी फैसला हुआ कैसे।।
वो मसीहा नज़र नहीं आता।
दर्द की हो भला शिफ़ा कैसे।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094