
ग़ज़ल
वो भला सच्चाई के समझेंगे कैसे माइने।
देखकर सूरत को अपनी तोड़ते हैं आइने।।
पीठ पीछे वार करना हमको तो आता नहीं।
वार करना है जिसे आए हमारे सामने।।
फायदा ही फायदा है इस खनन में देखिए।
लोग आते क्यों नदी में यारो बजरी छानने।।
तुझसे मिल के किस तरह तेरे ही हो जाते हैं लोग।
हम भी आए हैं तेरी महफिल में ये सब जानने।।
‘दर्द’ हम तो झूठ के आगे कभी झुकते नहीं।
इसलिए भी लोग अब हमको लगे हैं मानने।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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