
ग़ज़ल
मुहब्बत में ख़सारा कर रहे हैं।
ख़ुशी में कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं।।
तेरे नखरे तकाजा कर रहे हैं।
वही बातें दुबारा कर रहे हैं।।
किसी की याद ताजा कर रहे हैं।
सो अश्क़ों को सितारा कर रहे हैं।।
बहुत बेचैन हैं सब दोस्त मेरे।
भुलाने का इरादा कर रहे हैं।।
यकींनन चाहते हैं हम तुझे ही।
सो हम अब इश्तिख़ारा कर रहे हैं।।
नहीं सुनता किसी की बात कोई।
सभी यारब तमाशा कर रहे हैं।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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