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मैं पुरस्कारों की राजनीति में नहीं पड़ता: सुभाष पंत

करीब दो साल पहले कमलेश भारतीय को दिए इंटरव्यू में बोले थे कथाकार सुभाष पंत

देहरादून: प्रसिद्ध कथाकार सुभाष पंत नहीं रहे। उन्हें पिछले माह ही उत्तराखंड साहित्य भूषण पुरस्कार 2024 से नवाजा गया था, हालांकि सुभाष पंत ने 25 जून 2023 में कमलेश भारतीय को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वह पुरस्कारों की राजनीति में नहीं पड़ते। लेकिन उत्तराखंड सरकार ने उम्र के आखिरी पड़ाव में ही सही सुभाष पंत को पुरस्कृत कर खुद को शर्मिंदा होने से बचा लिया। उत्तराखंड से ज्यादा देश के अन्य राज्यों में पहचाने जाने वाले सुभाष पंत को उम्र के आखिरी पड़ाव में पुरस्कृत किया जाना सुखद था, हालांकि उन्हें यह पुरस्कार बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। बहरहाल सुभाष पंत के इस दुनिया से महाप्रयाण के दिन यह इंटरव्यू प्रसारित तो नहीं करना चाहता था, लेकिन गूगल में सर्चिंग के दौरान यह इंटरव्यू पढ़ा तो साझा करने से रोक नहीं पाया।
पहली ही कहानी ‘गाय का दूध’ से साहित्य जगत में पहचान बनाने वाले सुभाष पंत की क्या सोच थी, यह उनके प्रशंसक भली-भांति जानते हैं। बहुचर्चित उपन्यास ‘पहाड़ चोर’ से तो वह बुलंदियों पर पहुंच गए थे। उनकी ‘रोटी की महक’ कहानी तो गढ़वाल विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाई जाती है। बहरहाल, कथाकार सुभाष पंत का इंटरव्यू कमलेश भारतीय से माफी मांगते हुए shabdkrantilive.com के पाठकों के लिए हूबहू प्रस्तुत कर रहा हूं।

अब क्लासिक लिखने का समय नहीं रहा। क्लासिक लिखने की कोई गुंजाइश नहीं बची इस डिजीटल व भागदौड वाले युग में ! यह कहना है प्रसिद्ध कथाकार व मेरे प्रिय मित्र व बड़े भाई सुभाष पंत का ! हम दोनों सन् 1975 के बाद मिले देहरादून में उनके डोभालवाला स्थित खूबसूरत आवास पर । सच ! कितनी कितनी बार सोचता था कि कभी फिर देहरादून जाऊं और सुभाष पंत से बतियाऊं ! यह अवसर बन ही गया । जब सन् 1975 में मिला था तब वे फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट में वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत थे और अब सन् 1999 में वे क्लिनिकल अस्सिटेंट के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और इंस्टीट्यूट का नाम भी बदल कर आई सी एफ आर ई कर दिया गया है । कितना कुछ बदल गया इन 48 सालों में पर नहीं बदले तो सुभाष पंत ! इनकी दो कहानियां ‘छोटा होता आदमी’ और ‘गाय का दूध’ आज तक मन पर छाई रहती है और ‘गाय का दूध’ तो मैने हरियाणा ग्रंथ अकादमी की पत्रिका कथा समय के प्रवेशांक में पंत जी से अनुमति लेकर प्रकाशित की थी । आज इतने वर्षों बाद इनके घर पहुंचा तो दोनों की नयी पीढ़ी भी आपस मे परिचित हुई । इनका बेटा प्रथम और बहू आशा सभी मिले । मेरी दोनों बेटियां रश्मि और प्राची , विनय व दोहिता लक्ष्य । बहुत ही खुशी का अवसर बन गया ।
खैर ! वहीं चाय की चुस्कियों के बीच मैंने फटाफट क्रिकेट की तरह इंटरव्यू शुरू कर ली ।
-मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं आप ?
-वैसे तो कुमाऊं से है मेरे पूर्वजों की जड़ें लेकिन अठारहवीं सदी में पूर्वज देहरादून आ गये थे तो मैं देहरादून का ही हूं । यहीं मेरी पढ़ाई लिखाई हुई । एम एस सी गणित तक ।
-पहली जाॅब ?
-पहली और वही आखिरी जाॅब एफ आर आई में । सन् 1998 में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में सेवानिवृत । अब फ्रीलांस लेखक !
-आपके प्रिय लेखक ?
-ये देखिये चेखव ।
-पहली कहानी कौन सी ?
-गाय का दूध ।
-कैसे लिखी ?
-अहमदाबाद जा रहा था अपनी गाड़ी में । रास्ते में अपने भोजन की बची हुई जूठन फेंकी तो देखता क्या हूं कि एक मां अपनी दो छोटी सी बेटियों के साथ उस जूठन पर झपट पड़ी! इस दृश्य ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा और आखिरकार पहली कहानी गाय का दूध लिखी गयी जो ‘सारिका’ में प्रकाशनार्थ भेजी तो संपादक कमलेश्वर का खुद अपनी लिखावट में स्वीकृति पत्र आया तो खुशी का पारावार न रहा । अब महसूस करता हूं कि यह शायद अभिव्यक्ति का संकट रहा होगा । यह कहानी ‘सारिका’ के विशेषांक में आई और इसने मुझे चर्चित कथाकार बना दिया । इसके न केवल अनेक भाषाओं में अनुवाद हुए बल्कि नाट्य मंचन भी हुए । पहली कहानी से ही खूब खूब सराहना मिलने से कथा लेखन में मेरी रूचि बढ़ती चली गयी !
-अब तक कितनी पुस्तकें आ चुकीं ?
-दो उपन्यास , एक नाटक और दस कथा संग्रह ! अभी एक उपन्यास पूरा किया है ।
-कहानी आपकी नजर में कितना फासला तय कर आई इन सालों में ?
-मैं तो पक्का किस्सागो हूं । जब कथा लेखन में कदम रखा था तब अकहानी का दौर था यानी कहानी ही नहीं ! कहानी होती ही नहीं थी ! पर मेरा मानना है कि कहानी में कहानीपन जरूर होना चाहिये ।
-अब कब से कहानी नहीं लिखी ?
-मेरी कहानी ‘सिंगिंग वेल’ पहल के विशेषांक में आई थी । इसके बाद आई थी -‘चिता-हसीना के साथ संवाद’ ! तब से कहानी नहीं लिखी कोई !
-अब कहानी क्यों नहीं लिख रहे ?
-मूंवमेंट नहीं रही और कहानी के लिये मूवमेंट चाहिये । आखिरकार जीवन से ही तो आती है कहानी ! वैसे सबके पास कोई न कोई कहानी होती है । अभी अपना उपन्यास -एक रात का फासला फाइनल किया है ।
-देहरादून के कितने लोग , रचनाकार याद आते हैं ?
-कवि सुखबीर विश्वकर्मा , आर्टिस्ट और रचनाकार अवधेश कुमार और कवि हरजीत ! सब याद आते हैं । धीरेन्द्र अस्थाना मुम्बई में है तो सुरेश उनियाल भी बरसों से देहरादून से बाहर । दिल्ली में सारिका के संपादक मंडल में रहा । पक्का यार है मेरा ! सूरज प्रकाश को भी याद कर लेता हूं !
-कोई बहुत महत्त्वपूर्ण बात ?
-मेरा उपन्यास आया था -पहाड़ चोर सन् 2005 में । अभी उसका नया संस्करण आया है !
-कोई महत्त्वपूर्ण पुरस्कार/सम्मान ?
-मैं पुरस्कारों की राजनीति में नहीं पड़ता !
-कोई मंत्र नये रचनाकारों के लिये ?
-समय बहुत तेज़ी से बदल रहा है । प्रेमचंद का समय रुका हुआ समय था । तब क्लासिक लिखे जा सकते थे । अब क्लासिक की कोई गुंजाइश नहीं रही । तब अभिव्यक्ति का माध्यम पत्र पत्रिकायें ही थीं । अब अभिव्यक्ति का माध्यम बदल गये । डिजीटल युग आ गया । तब मुशिकल से साल भर में चार छह किताबें ही सामने आ पाती थीं।

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