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‘ मेरा उस्ताद कोई एक नहीं, सारी दुनिया सिखा रही है मुझे’

- अहल-ए-सुख़न की ओर से दून पुस्तकालय के सभागार में आयोजित हुआ मुशायरा

देहरादून: अहल-ए-सुख़न की ओर से शनिवार को यहां
दून पुस्तकालय के सभागार में आयोजित मुशायरा में जहां शायरों ने इश्क-मुहब्बत पर शेर सुनाए, वहीं समाज की विसंगतियों पर भी तंज कसे।

तस्मिया अकादमी के संस्थापक डॉक्टर फ़ारूक साहब और पूर्व पुलिस महानिदेशक आलोक लाल ने दीप जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके बाद शायरों ने अपनी रचनाएं सुनाने का सिलसिला शुरू किया। शायरा मोनिका मंतशा ने तरन्नुम से शेर ‘कैसा ये हाल इश्क़ में तुमने जनाब कर दिया, लिख कर लबों पे ख़ामशी चेहरा किताब कर दिया’ सुनाकर तालियां बटोरी। इसके बाद नफ़ीस अहमद नफ़ीस ने ‘मेयार का अंदाज़ा कपड़ों से नहीं होता, हालात के मारों को जाहिल न समझ लेना’ पढ़कर समां बांध दिया।राज कुमार ‘राज’ के शेर ‘रह गया हाथ में वो आने से
साँप लिपटे थे उस ख़ज़ाने से’ को भी दाद से नवाजा गया। दर्द गढ़वाली के दो शेर ‘शेर कहने का सलीक़ा आ गया है, हाथ में जैसे ख़ज़ाना आ गया है’ और ‘ तुम्हें तो मिल गया हिस्सा तुम्हारा, हमारा काम क्यों लटका हुआ है’ को भी श्रोताओं ने खूब सराहा। इम्तियाज़ कुरैशी ने तरन्नुम में’ मेरा उस्ताद कोई एक नहीं, सारी दुनिया सिखा रही है मुझे’ ग़ज़ल सुनाकर वाहवाही लूटी। इक़बाल ‘आज़र’ के इस शेर ‘था चाक-चाक जफ़ाओं से दामने-एहसास
तुम्हारा फ़र्ज़ था तुम आते और रफ़ू करते’ को भी खूब दाद मिली। कुमार विजय ‘द्रोणी’ ने अपने इस शेर ‘दर्द से गुज़र रहा हूं मैं, टूटकर बिखर रहा हूं मैं’ पढ़कर खूब दाद बटोरी। शादाब मशहदी ने प्रभावी संचालन करते हुए अपने शेर ‘चराग़ बन के जो दुनिया में जगमगाते हैं, वो अपने घर के अँधेरों से हार जाते हैं’ से तालियां बटोरी।
इसके अलावा, मेहमान शायर नदीम अनवर, जावेद आसी, चाँद देवबंदी, राजवीर सिंह राज़ के अलावा अमन रतूड़ी और अफसान ने भी अपनी ग़ज़लों से कार्यक्रम को ऊंचाइयों पर पहुंचाया। इस मौके पर जनकवि डॉ. अतुल शर्मा, डॉ. मुकुल शर्मा, सत्य प्रकाश शर्मा, डॉली डबराल, सोमेश्वर पांडेय, चंदन सिंह नेगी, रजनीश त्रिवेदी, राजकुमार बख़्शी, विवेक कोठारी, डॉ. राकेश बलूनी, रंजना शर्मा, रेखा शर्मा, सतीश बंसल, झरना माथुर, महेंद्र प्रकाशी, शांति प्रकाश जिज्ञासु, गौरव ‘सारथी’, अविरल, हरेन्द्र ‘माँझा’,अनहद आदि मौजूद थे।

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